झारखंड के आदिवासी कर रहे हैं सरना धर्म कोड की मांग

रांची: प्रकृतिपूजक आदिवासियों ने अपनी अलग धार्मिक पहचान की मांग को लेकर कमर कस ली है़ झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य आदिवासी बहुल राज्यों में धरना–प्रदर्शन का दौर जारी है़ झारखंड के आदिवासी अपने लिए ‘सरना धर्म कोड’ की मांग कर रहे है़ं ‘आदिवासी’ धर्म कोड और ‘आदि सनातन धर्म’ के नाम भी चर्चा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2015 12:56 AM
रांची: प्रकृतिपूजक आदिवासियों ने अपनी अलग धार्मिक पहचान की मांग को लेकर कमर कस ली है़ झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य आदिवासी बहुल राज्यों में धरना–प्रदर्शन का दौर जारी है़ झारखंड के आदिवासी अपने लिए ‘सरना धर्म कोड’ की मांग कर रहे है़ं ‘आदिवासी’ धर्म कोड और ‘आदि सनातन धर्म’ के नाम भी चर्चा में है़ं राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के धर्मगुरु बंधन तिग्गा का दावा है कि कि झारखंड में 62 लाख सरना आदिवासी है़ं.
वर्ष 2011 की जनगणना में झारखंड के 42 लाख और देश भर के छह करोड़ लोगों ने अपना धर्म सरना लिखाया था, जिसे अन्य में शामिल किया गया है़ सरना धर्मकोड की अपनी मांग में उन्होंने एक-एक करोड़ की आबादी वाले गोंड और भील आदिवासियों को शामिल नहीं किया है, क्योंकि वे गाेंडी व भीली धर्म मानते है़ं रांची विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर, पद्मश्री स्व. डॉ रामदयाल मुंडा ने भी अपनी कई पुस्तकों में आदिवासियों की पृथक धार्मिक पहचान को रेखांकित किया है़.

कहां गये झारखंड के 30 लाख आदिवासी ?
नवीनतम जनगणना (2011) के अनुसार झारखंड की आबादी 3,29,88,134 है, जिसमें आदिवासियों की संख्या 86,45,042 है़ ये सरकारी आंकड़े है़ं धर्म आधारित जनगणना ने ईसाईयों की संख्या 14,18,608 बतायी है़ यह उल्लेखनीय है कि राज्य के लगभग शत-प्रतिशत ईसाई आदिवासी मूल के है़ं धर्मगुरु बंधन तिग्गा व रांची विश्वविद्यालय में सोशल साइंसेज के डीन डॉ करमा उरांव कहते हैं कि जनगणना के अन्य धर्म कॉलम में दर्ज 42,35,786 लोग ही सरना आदिवासी है़ं मुसलिम धर्म की ओर उनका उन्मुखीकरण कम और सिख, बौध व जैन धर्म की ओर बिल्कुल नहीं हुआ है़ ऐसी स्थिति में यह सवाल उभरता है कि बाकी 30 लाख आदिवासियों की गणना किस धर्म में हो गयी? क्या वे हिंदू बन गये हैं? इस सवाल पर धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने कहा कि लगभग दस लाख आदिवासी हिंदू बने है़ं लगभग 20 लाख आदिवासियों ने अन्य कारणों से अपना धर्म हिंदू लिखाया है, जिसे अगली जनगणना तक सुधार लिया जायेगा़

हिंदुत्व व ईसाइयत की रस्साकशी
राज्य के आदिवासी इलाकों में हिंदुत्व और ईसाइयत की रस्साकशी तेज है़ दोनों पक्ष एक–दूसरे पर आदिवासियों धर्मांतरण का आरोप लगाते है़ं कुछ समय पहले रांची के एक चर्च में ईसा मसीह और माता मरियम के आदिवासी के रूप में चित्रण ने काफी तूल पकड़ा था़ वहीं, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम द्वारा आदिवासियों को हिंदू घोषित करने के बयान ने भी काफी बवाल मचाया़

तीसरी बड़ी धार्मिक आबादी
सरना नेता कहते हैं कि पूरे देश में मात्र 45 लाख की आबादी वाले जैन धर्मावलंबियों को जब अलग धर्मकोड मिल सकता है, तो उन्हें क्यों नहीं? इससे कहीं अधिक तादाद तो सिर्फ झारखंड के सरना आदिवासियों की होगी़ देश में उनकी संख्या 11- 12 करोड़ से कम नहीं है. अलग धर्म कोड मिलने पर यह देश की तीसरी सबसे बड़ी धार्मिक आबादी बन जायेगी़ रांची महानगर सरना प्रार्थना सभा ने मिशन 2021 के तहत अपने स्तर पर राज्य के सरना आदिवासियों की जनगणना भी शुरू कर दी है़

मजबूरी हो गयी है सजगता
ऐसे तमाम कारणों ने राज्य के सरना आदिवासी नेतृत्व को सजग होने पर मजबूर किया है़ आदिवासियोें के लिए अलग धर्म–कोड की वकालत पूर्व विधायक और आदिवासी सरना महासभा के संरक्षक देवकुमार धान भी कर रहे है़ं वह चाहते हैं कि देश के आदिवासियों को अलग धर्म–कोड मिले. उनके अनुसार यह झारखंड में आदिवासी (सरना) और दूसरे राज्यों में आदिवासी–गोडी, आदिवासी–भीली कोड हो सकता है. उधर, गुमला से भाजपा विधायक शिवशंकर उरांव ने अपनी पुस्तक ‘जनजाति समाज और धर्म कॉलम’ में ‘आदि सनातन धर्म’ नाम की वकालत की है. इसमें उन्होंने कहा है कि सनातन धर्म सभी धर्मों का मूल है. यदि यह कहा जाये कि जनजाति समुदाय आदि सनातन धर्मावलंबी है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. जनजाति समुदाय के अस्तित्व को वृहद वैदिक समाज के पांचवे स्वतंत्र अंग के रूप में हमेशा स्वीकार किया गया है. पिछले दिनों केंद्रीय सरना समिति के करम मिलन समारोह में सरना धर्म कोड की मांग पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा था कि इस पर देश की अस्मिता व अक्षुण्ता को ध्यान में रखकर विचार करेंगे.

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