रुक्का में आठ फीट घटा पानी

रांची : कम बारिश की वजह से डैमों की स्थिति खराब है. इस साल गरमी के मौसम से पहले ही राजधानी के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है. अपवाद छोड़ दें, तो डैमों का वर्तमान जलस्तर गुजरे सालों में जनवरी-फरवरी तक पहुंचता था. पिछले वर्ष की तुलना में रुक्का डैम का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 12, 2015 1:06 AM

रांची : कम बारिश की वजह से डैमों की स्थिति खराब है. इस साल गरमी के मौसम से पहले ही राजधानी के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है. अपवाद छोड़ दें, तो डैमों का वर्तमान जलस्तर गुजरे सालों में जनवरी-फरवरी तक पहुंचता था. पिछले वर्ष की तुलना में रुक्का डैम का पानी आठ फीट कम हो गया है. गत वर्ष 11 अक्तूबर को रुक्का डैम में 1932 फीट पानी था, जबकि इस वर्ष 11 अक्तूबर को वहां 1924 फीट पानी है. इसी तरह गोंदा डैम का पानी भी पिछले वर्ष की तुलना में दो फीट घट गया है. पिछले साल रुक्का में इसी समय 2124 फीट पानी था. वह कम हो कर इस साल 2122 फीट पर पहुंच गया है.

साल के अंत तक शुरू हो सकती है पानी की कटौती
इस वर्ष जलस्तर नीचे जाने की वजह से ठंड के पहले ही हटिया डैम से पानी की राशनिंग शुरू की जा रही है. जल्द ही हटिया डैम से सप्ताह में केवल चार दिन ही पानी की सप्लाई की जा सकेगी. रुक्का और गोंदा डैम की स्थिति देख कर विशेषज्ञ वर्षांत में ही दोनों डैमों से पानी की राशनिंग किये जाने का अनुमान लगा रहे हैं. हालांकि अधिकारी इससे इनकार करते हैं. गोंदा डैम के कार्यपालक अभियंता राजेश रंजन ने कहा कि उनके पास गरमियों तक के लिये पर्याप्त पानी मौजूद है. उनकी ही तरह रुक्का डैम के कार्यपालक अभियंता अरुण कुमार भी पानी की किल्लत से इनकार करते हैं. उन्होंने जलस्तर की पिछले वर्ष से तुलना को भी निरर्थक ठहराया. कहा कि पिछले वर्ष पानी जरूरत से अधिक था. इस वर्ष भी पेयजलापूर्ति के लिये पानी की कोई कमी नहीं है. वर्तमान जलस्तर बना हुआ है. वर्तमान हालात में भी अगले वर्ष जुलाई महीने तक पानी की आपूर्ति की जा सकती है.

जलसंकट के लिए हम ही हैं जिम्मेवार
डैमों की लगातार खराब होती स्थति और भूमिगत जलस्तर के लगातार नीचे जाने की वजह जनता ही है. पानी की लगातार बर्बादी और पानी रोकने का कोई उपाय नहीं करने की आदत से परेशानी आम लोगों को ही हो रही है. डैमों तक पानी पहुंचाने वाले जलस्रोतों पर अतिक्रमण कर लोगों ने नदियों को नाला और नालों को सूखी जमीन में बदल दिया है. रही-सही कसर प्रदूषण ने पूरी कर दी है. भूमिगत जल के साथ भी यही बात है. भूमिगत जल का लगातार दोहन करने के बाद उसे दोबारा भरने का कोई प्रयास नहीं किया जाता. वाटर हारवेस्टिंग कागजों पर ही की जाती है. रुपये बचाने के लिये न तो कोई घर में वाटर हारवेस्टिंग करता है और ना ही बहुमंजिली इमारतों में पानी रोकने का कोई इंतजाम किया जाता है. नतीजतन तालाब सूख रहे हैं. फेल होनेवाले चापानल और बोरिंग की संख्या में रोज गुणात्मक वृद्धि हो रही है.

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