आज भी साजिश कर हो रहा मनोरोग अस्पताल में भरती का प्रयास ……..
आज भी साजिश कर हो रहा मनोरोग अस्पताल में भरती का प्रयास …….. रिनपास के लीगल एड क्लीनिक से सुलझ रहे कई मामले मनोज सिंह रांची : हाल में एक ऑडियो कई लोगों को भेजा गया था. उसमें एक महिला ने अपने पति पर रिनपास में जबरदस्ती भरती करा देने का आरोप लगाया था. महिला […]
आज भी साजिश कर हो रहा मनोरोग अस्पताल में भरती का प्रयास …….. रिनपास के लीगल एड क्लीनिक से सुलझ रहे कई मामले मनोज सिंह रांची : हाल में एक ऑडियो कई लोगों को भेजा गया था. उसमें एक महिला ने अपने पति पर रिनपास में जबरदस्ती भरती करा देने का आरोप लगाया था. महिला का कहना था कि उसके पति की पहुंच बड़े लोगों तक है. इसकी जानकारी जब लड़की के परिजनों को लगी, तब वे रिनपास पहुंचे. परिजनों ने वहां अधिकारियों को बताया कि उनकी बेटी मानसिक रोगी नहीं है. इसकी जानकारी रिनपास में संचालित लीगल एड क्लिनिक को भी मिली. उन्होंने जब लड़की के परिजनों से संपर्क किया, तो पता चला कि पति अस्पताल से अपनी पत्नी को छुड़ाने को तैयार हैं. लड़की को उसके घर वाले छुड़ा कर अपने साथ ले गये. यह एक सत्य घटना है. आज भी लोग अपने परिजनों को जबरदस्ती मनोरोगी बनाने में लगे हुए हैं. इससे निपटने के लिए उच्च न्यायालय की पहल पर रांची इंस्टीट्यूट ऑप न्यूरो साइकेट्री (रिनपास) में एक लीगल एड क्लिनिक खोला गया है. यहां से पीड़ितों को राहत मिलने लगी है. इसकी स्थापना रिनपास में 2012 में हुई थी. लेकिन, इसका विधिवत संचालन आठ जुलाई 2013 से हो रहा है. अब तक करीब साढ़े पांच हजार मामले यहां आये हैं. इनमें कई मामले क्लिनिक की पहल पर सुलझ गये हैं. यहां न्यायालय से नियुक्त दो अधिवक्ता नियमित रूप से हर वर्किंग दिन में 10 से 12 बजे तक बैठते हैं. जरूरत मंद की समस्या सुनते हैं. समस्या के समाधान की कोशिश करते हैं.केस-1छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का एक युवक इलाज के लिए रिनपास आया था. उसकी शादी लातेहार जिले में हुई थी. शादी के बाद उसके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घर जमाई बने. ससुराल वाले युवक को प्रताड़ित भी करते थे. नहीं मानने पर उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. उसके खिलाफ वारंट भी निकल गया था. रिनपास आने पर उसे लीगल एड क्लिनिक के बारे में पता चला. उसने वहां संपर्क किया. क्लिनिक से उसे माता-पिता से बात करने को कहा गया. माता-पिता से बात कर अधिवक्ता ने पूरी जानकारी ली. अधिवक्ता ने ससुराल वालों को बताया कि ज्यादा दबाव देने से उन पर केस किया जा सकता है. उनको भी जेल जाना पड़ सकता है. इसके बाद ससुराल वालों ने केस वापस लिया. दोनों परिवार अब अच्छे से रह रहे हैं.केस-2बोकारो के चास में मुसलिम लड़की की शादी संपन्न परिवार में हुई थी. लड़के का भाई विदेश में नौकरी करता है. आर्थिक विषमता के कारण लड़की और लड़के के संबंध में तनाव हो गया था. तनाव के कारण लड़की सिर दर्द की शिकायत करने लगी. उसका इलाज कराने के बहाने पति उसे रिनपास लेकर आया. वहां उसका इलाज मनोचिकित्सक से कराने लगा. यहां से हर माह उसे दवा दी जाने लगी. इसी दौरान लड़की ने सेल के अस्पताल में एक चिकित्सक से अपनी इलाज करायी. उसने अपनी सलाह में लिखा कि लड़की को मानसिक रोग नहीं लगता है. उसके बाद लड़की अपनी बहन के साथ इलाज कराने रिनपास आयी. रिनपास के चिकित्सक ने ही उसे लीगल एड क्लिनिक भेजा. वहां अधिवक्ता ने पूरे मामले की जानकारी ली. बात करने पर पता चला कि पति ने लड़की से तलाक की अरजी दे दी है. लड़की को दूसरी बार अपने पति के साथ आने को कहा गया. पति से बात करने पर अधिवक्ताओं ने बताया कि लड़के पर भी आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. उसकी पत्नी मनोरोगी नहीं है. इसके बाद पति और पत्नी ठीक से रहने लगे हैं.केस-तीनयह मामला नवादा (बिहार) का है. करीब तीन माह पहले भारत सरकार की एक टीम सीआइपी और रिनपास के दौरे पर आयी थी. टीम के दौरे के क्रम में नवादा की महिला ने बताया कि उसके भाई ने संपत्ति की लालच में यहां भरती करा दिया है. उसकी शादी नहीं हुई है. दो दिनी दौरे के दौरान ही क्लिनिक को पूरे मामले को पता करने की जिम्मेदारी दी गयी. क्लिनिक ने पूरे मामले की जानकारी के लिए नवादा के डालसा को दी. उनसे सहयोग मांगा. एक दिन में ही उसके भाई का फोन नंबर झालसा के सचिव नवनीत कुमार और सह सचिव संतोष कुमार को उपलब्ध करा दी गयी. दोनों ने उसके भाई से बात की. पता चला कि भाई ने गलत पता सीआइपी में लिखा दिया था. उन्होंने भाई से बात कर बहन को उचित इलाज कराने की सलाह दी. चिकित्सकों ने भी मनोरोगी होने की पुष्टि की थी. पूरे मामले को समय-समय पर देखने की जम्मेदारी लिगल एड क्लिनिक के संजय कुमार को दी गयी. संजय कुमार नियमित रूप से उसके भाई से बात करते रहे. दबाव के बाद लड़की का भाई उसे अस्पताल से छुड़ाकर घर ले गया.क्या कहते हैं डालसा के सचिव रजानीकांत पाठक सवाल : कब गठन हुआ था लीगल एड क्लिनिक का? जवाब : इसका गठन झालसा के निर्देश के बाद फरवरी 2014 में हुआ था. यह अपने तरह का पूरे देश का एक मात्र प्रयास है. यहां मरीजों (विशेषकर मनोरोगियों) को कानूनी सहायता दी जाती है. उनको अपने अधिकार के बारे में बताया जाता है. यहां अभी संजय कुमार शर्मा और मधुसुदन गांगुली नाम के दो अधिवक्ता कानूनी सलाह देते हैं. दो पीएलवी भी हैं. सवाल : अपने उद्देश्य में यह कितना सफल है? जवाब : गठन के बाद से कई लोगों को इसका लाभ मिल चुका है. दूसरे राज्यों या जिलों के झालसा या डालसा के सहयोग से जरूरतमंदों को सहायता दी जाती है. दक्षिण में एक बार बिहार और झारखंड की पांच महिला भटक गयी थी. उनको डालसा के सहयोग से रिनपास में भरती कराया गया है. क्या कहते हैं अधिवक्ताअधिवक्ता संजय कुमार शर्मा का कहना है कि मनोरोगियों को यहां नि:शुल्क सलाह और सहयोग दिया जाता है. इसमें रिनपास के प्रबंधन का भी सहयोग मिल रहा है. कई बार दो रिनपास प्रबंधन ने लोगों को सलाह के लिए भेजा है. जिला विधिक प्राधिकार के तहत इसका संचालन होता है.