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प्रेमचंद लिखित कहानी कफन का मंचन

प्रेमचंद लिखित कहानी कफन का मंचनफोटो ट्रैक पर हैसंवाददाता,रांची प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक कफन का मंचन रांची की प्रसद्धि नाटक संस्था देशप्रिय क्लब के द्वारा कांति कृष्ण कला भवन गोरखनाथ लेन रांची में किया गया़ इसका नाट्य रूपांतर भगवान चंद्र घोष ने किया है और निर्देशन सुकुमार मुखर्जी ने किया़ नाटक आरंभ होता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2015 10:31 PM

प्रेमचंद लिखित कहानी कफन का मंचनफोटो ट्रैक पर हैसंवाददाता,रांची प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक कफन का मंचन रांची की प्रसद्धि नाटक संस्था देशप्रिय क्लब के द्वारा कांति कृष्ण कला भवन गोरखनाथ लेन रांची में किया गया़ इसका नाट्य रूपांतर भगवान चंद्र घोष ने किया है और निर्देशन सुकुमार मुखर्जी ने किया़ नाटक आरंभ होता है मुंशी प्रेमचंद की आत्मा के साथ जो कहानी के किरदार और समाज में उस समय की व्यवस्था के बारे में बताते है प्रेमचंद बताते हैं कि समाज में दो किरदार रिशु और माधव इस प्रकार होते है जो बहुत ही आलसी प्रवृत्ति के होते है इतने आलसी कि वह जीवन यापन के लिए कुछ भी काम करना नहीं चाहते हैं चाहते हैं कि बना बनाया खाना उसे मिल जाए अब खाना खाने के लिए हाथ भी उठाना ना पड़े खाना कोई उसके मुंह में डाल दे़ं माधव की शादी एक बुधिया से होती है जो उसे अच्छे तरीके से खाना बनाती है खिलाती है कहानी का आरंभ होता है उस समय जब माधव की पत्नी गर्भवती थी और प्रसव में कराह रही थी, कभी भी उसका बच्चा जन्म ले सकता था , उसे अस्पताल ले जाने के लिए रिशु और माधव किसी भी प्रकार से तैयार नहीं होते है और रात भर प्रसव वेदना मैं तड़पती बुधिया दम तोड़ देती है तब उसके क्रिया कर्म के लिए माधव और जमींदार से जाकर पैसे मांगते है जमींदार ना चाहते हुए भी उस को पैसे दे देता है और माधव लकी से उस पैसे से कफन खरीदने जाते है तो सोचते हैं कि कफन का क्या होगा वह भी तो आखिर जल ही जाता है ना और फिर इस पैसे से अगर हम लोग का मौज-मस्ती हुआ है तो ज्यादा अच्छा होगा यह सोचकर दोनसे जाकर दारू पीते है मौज मस्ती करते है जिसे उनका पैसा खत्म हो जाता है और जब वे लोग महसूस करते है कि पैसा खत्म हो गया है तो फिर सोचते है अब क्या होगा़ गांव वाले तो हमे मारेंगे लेकिन माधव कहता है कि घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस तरह इन लोगों ने पैसे दिए उसी तरह यह फिर हमारी मदद करेंगे बस फर्क इतना होगा इस बार यह लोग वैसे हमारे हाथ में नहीं देंगे खुद ही सारा इंतजाम करेंगे और तुम्हारी बहू की अंत्येष्टि बड़े आराम से हो जाएगी़ सारा क्रिया करम आराम से हो जाएगा निर्देशक ने नाटक में जो मैसेज दिया है ना वह यह है कि समाज में इस तरह के व्यक्ति इस तरह की सोच रखने वाले ने उस युग में भी थे और इस युग में भी है़ं ऐसे बहुत सारे व्यक्ति है जो आज भी माधव हो और किसी की तरह किसी दूसरे के पैसे पर ही अपना साम्राज्य फैलाना चाहते है़ अपना सारा सुख-दुख उसी में जीना चाहते है नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार है प्रेमचंद की आत्मा की भूमिका में मेल यूनुस उर्फ राजू बनवारी माधव की भूमिका में फैजल इमाम दिशु की भूमिका ने अमित कुमार बहू की भूमिका में इस मृदुला और जमींदार की भूमिका में कैलाश मानव जबकि नाटक का मेकअप और नाटक में लाइट ऋषिकेश लाल के द्वारा दिया गया और प्रस्तुति में युवा नाट्य संगीत अकादमी रांची का सहयोग रहा.

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