ऐसे हुई थी कायस्थों की उत्पत्ति

ऐसे हुई थी कायस्थों की उत्पत्ति कायस्थों का इतिहासप्रणव कुमार बब्बूकश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं. यही वह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2015 7:26 PM

ऐसे हुई थी कायस्थों की उत्पत्ति कायस्थों का इतिहासप्रणव कुमार बब्बूकश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं. यही वह ऐतिहासिक वर्ग है, जो श्री चित्रगुप्तजी के वंशज हैं. इस वर्ग की भी चर्चा पुराण और वेद करते हैं. यह वर्ग 12 उपवर्गों में विभाजित किया गया है, यह 12 वर्ग श्री चित्रगुप्त जी की पत्नियों देवी शोभावति और देवी नंदिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है. कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र. तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी. फिर ब्रह्मा 11000 वर्षों के लिए ध्यान साधना में लीन हो गये और जब उन्होंने आंखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात-स्याही, पुस्तक तथा कमर में तलवार बांधे पाया. तब ब्रह्मा जी ने कहा कि हे पुरुष! क्योंकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिए तुम्हारी संतानों को कायस्थ कहा जायेगा और जैसा कि तुम मेरे चित्र (शरीरी) में गुप्त (विलीन) थे, इसलिए तुम्हें चित्रगुप्त कहा जायेगा. श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से संबोधित किया गया है. श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुए, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/ नंदिनी जो सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे चार पुत्र हुए. दूसरी पत्नी ऐरावती/शोभावति धर्मशर्मा (नागवंशी क्षत्रिय) की कन्या थी, इनसे सात पुत्र हुए अत: कायस्थ की 12 शाखाएं हैं- श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीक, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अंबष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ. इन बारह पुत्रों का वृतांत नीचे दिया जा रहा है. जिसका उल्लेख धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी दिया गया है. श्री चित्रगुप्त जी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की 12 कन्याओं से संपन्न हुआ. जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है. माता नंदिनी के चार पुत्र काश्मीर के आसपास जाकर बसे तथा ऐरावती/शोभावती के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओड़िशा तथा बंगाल में जा बसे. बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था. पद्म पुराण में इसका उल्लेख किया गया है. माता सूर्यदक्षिणा/ नंदिनी के पुत्रों का विवरण : 1- भानु (श्रीवास्तव) श्री भानु माता नंदिनी के जेष्ठ पुत्र थे. उनकी राशि धर्मध्वज थी. श्रीभानु मथुरा में जाकर बसे. इसलिए भानु परिवार वाले माथुर कायस्थ कहलाने के साथ-साथ सूर्यवंशी भी कहलाये. 2- विभानु (सूर्यध्वज) भटनागर उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला एक जाति का नाम है, जो कि हिंदुओं की कायस्थ जाति में आते हैं. इनका प्रादुर्भाव श्री चित्रगुप्त जी की प्रथम पत्नी दक्षिणा नंदिनी के द्वितीय पुत्र विभानु के वंश से हुआ है. महाराज चित्रगुप्त ने इन्हें भट्ट देश में मालवा क्षेत्र में भट नदी के पास भेजा था. इन्होंने वहां चित्तौर और चित्रकूट बसाये. ये वहीं बस गये और इनका वंश भटनागर कहलाया. इनका वास स्थान भारत के वर्तमान पंजाब प्रदेश में भट्ट प्रदेश था. 3- विश्वभानु (बाल्मीकि) श्री विश्वभानु माता नंदिनी के तृतीय पुत्र थे. उनका राशि नाम दीनदयाल था. श्री विश्वभानु का परिवार गंगा-यमुना देआब, जिसको प्राचीन काल में साकब द्वीप कहते थे, में जाकर बसे, इसलिए विश्वभानु परिवार वाले सक्सेना कायस्थ कहलाने के साथ-साथ सूर्यवंशी भी कहलाये. 3- वीर्यभानू (अष्ठाना) श्री वीर्यभानू माता नंदिनी के सबसे छोटे पुत्र थे. उनका राशि नाम माधवराव था. श्री वीर्यभानू का परिवार बांस देश (कश्मीर) में जाकर बसे, इसलिए वीर्यभानु परिवार वाले श्रीवास्तव कायस्थ कहलाने के साथ-साथ सूर्यवंशी भी कहलाये. माता ऐरावती/ शोभावति के पुत्रों का विवरण 1- चारु (माथुर) श्री चारु माता ऐरावती/ शोभावति के जेष्ठ पुत्र थे. उनका राशि नाम पुरांधर था. श्री चारु का परिवार सूर्यदेश (बिहार) देश में जाकर बसे और उनके राष्ट्रध्वज का चिह्न सूर्य होने के कारण सूर्यध्वज कहलाये. 2- सुचारु (गौड़)- श्री सुचारु माता ऐरावती/ शोभावति के द्वतीय पुत्र थे. उनका राशि नाम सारंगधार था. श्री सुचारु का परिवार पश्चिम बंगाल के अंबष्ठ जनपद में जाकर बसे. इस कारण अंबष्ठ कहलाये. 3- चित्र (चित्राख्य) (भटनागर) श्री चित्र माता ऐरावती / शोभावति के तृतीय पुत्र थे. उनका राशि नाम सारंगधार था. श्री चित्र का परिवार गौड़ देश (बंगाल) में जाकर बसे इस कारण गौड़ कहलाये. 4- मतिभान (हस्तीवर्ण) (सक्सेना) निगम उत्तर भारतीय कायस्थ होते हैं. श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के चौथे पुत्र थे. उनका राशि नाम रामदयाल था. श्री मतिभान ( हस्तीवर्ण) का परिवार निगम देश (काशी), में जाकर बसे इस कारण निगम कहलाये. 5- हिमवान (हिमवर्ण) अंबष्ठ श्री हिमवान (हिमवर्ण) माता ऐरावती/ शोभावति के पांचवें पुत्र थे. उनका राशि नाम सारंधार था. श्री हिमवान (हिमवर्ण) का परिवार गौड़ देश (बिहार), में प्राचीन करनाली नामक ग्राम में जाकर बसे इस कारण कर्ण कहलाये. 6- चित्रचारु (निगम) श्री चित्रचारु माता ऐरावती/ शोभावति के छठवें पुत्र थे. उनका राशि नाम सुमंत था. श्री चित्रचारू का अष्ठाना देश (छोटा नागपुर), जो नागदेश से भी प्रसिद्ध है, में जाकर बसे इस कारण अष्ठाना कहलाये. 7. चित्रचरण (कर्ण) – श्री चित्रचरण माता ऐरावती / शोभावति के सातवें पुत्र थे. उनका राशि नाम दामोदर था. श्री चित्रचरण का परिवार बंगाल में नदियां जो बंगाल की खाड़ी में स्थित है, में जाकर बसे. सेवा की भावना के कारण अपने कायस्थ कुल में श्रेष्ठ माने गये. इस कारण कुलश्रेष्ठ कहलाये. 8- अतिद्रिंय (जितेंद्रिय) (कुलश्रेष्ठ) श्री अतिद्रिंय (जितेंद्रिय) माता ऐरावती / शोभावति के सबसे छोटे पुत्र थे. उनका राशि नाम सदानंद था. श्री अतिद्रिंय (जितेंद्रय) का परिवार बाल्मीकि देश (पुराना मध्य भारत) में जाकर बसे इस कारण बाल्मीकि कायस्थ कहलाये. कायस्थ भाई दूज के दिन श्री चित्रगुप्त जयंती मनाते हैं. इस दिन पर वे कलम, दवात और तलवार की पूजा करते हैं. यह वह दिन है, जब भगवान श्री चित्रगुप्त का उद्भव ब्रह्माजी के द्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये. इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है और कायस्थ, श्रीचित्रगुप्त जयंती मनाते हैं. (लेखक रांची जिला चित्रगुप्त महापरिवार के कार्यकारी अध्यक्ष हैं)\\\\B

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