हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन के बच्चों का जन्म
हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन के बच्चों का जन्म वरीय संवाददाता, रांची हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन के बच्चों का जन्म होता है.झारखंड में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं. इनमें से 29 हजार बच्चे तो अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते. ये कम वजनवाले व बेहद कमजोर […]
हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन के बच्चों का जन्म वरीय संवाददाता, रांची हर वर्ष 2.25 लाख कम वजन के बच्चों का जन्म होता है.झारखंड में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं. इनमें से 29 हजार बच्चे तो अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते. ये कम वजनवाले व बेहद कमजोर होते हैं. राज्य में जन्म लेनेवाले करीब आधे (चार लाख) बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. राज्य में पांच साल तक के जिन बच्चों की मौत होती है, उनमें से 45 फीसदी की मौत का कारण कुपोषण होता है. रैपिड सर्वे अॉफ चिल्ड्रेन (अारएसअोसी) 2013-14 के अनुसार अभी पांच साल तक के कुल बच्चों में से 18 लाख बच्चे नाटे (कम ऊंचाई वाले), 16 लाख कम वजन (2.5 किलो से कम) वाले, छह लाख कमजोर तथा 23 लाख एनिमिक हैं. नाटे बच्चे वे हैं, जिनकी ऊंचाई अौसत स्वस्थ बच्चे से करीब 10 सेंटीमीटर कम होती है. बच्चे स्वस्थ पैदा हों तथा आगे भी स्वस्थ रहें. इसके लिए झारखंड पोषण मिशन शुरू किया गया है. इसके तहत नवजात के पहले हजार दिन पर सरकार फोकस करेगी. इसमें गर्भ का नौ माह (270 दिन) भी शामिल हैं. मिशन का लक्ष्य किशोरी बालिकाअों, गर्भवती व धात्री ( दूध पिलाने वाली या लेक्टेटिंग) महिलाअों, शून्य से छह माह तक के शिशु तथा तथा इसके बाद छह माह से 24 माह तक के बच्चों के सेहत व पोषण की देखभाल करना भी है. मोटे तौर पर आज भी यह काम हो रहा है. पर मिशन के तहत अब इनके क्रियान्वयन (इंप्लिमेंटेशन), मूल्यांकन (इवैल्यूएशन) तथा अनुश्रवण (माॅनिटरिंग) का काम प्रभावी तरीके से होना है. इन 10 बिंदुअों का करना है सुनिश्चित- जन्म के पहले घंटे में अनिवार्य स्तनपान- पहले छह माह तक सिर्फ स्तनपान- छह माह पर सप्लिमेंट्री (ऊपर के) भोजन की शुरुआत- सप्लिमेंट्री फूड की मात्रा, गुणवत्ता व बारंबारता (फ्रिक्वेंसी) छह से 23 माह तक कायम रखना- सप्लिमेंट्री फूड सुरक्षित व स्वच्छ तरीके से हैंडल करना- पूर्ण टीकाकरण तथा वर्ष में दो बार विटामिन-ए की खुराक सहित कृमिनाशक भी देना – बीमार या कमजोरी के बाद खानपान पर विशेष ध्यान तथा री-हाइड्रेशन व जिंक दिया जाना- सभी बच्चो खास कर कुपोषित बच्चों को समय पर तथा गुणवत्तापूर्ण अौषधियुक्त भोजन देना- एनिमिया रोकने के लिए किशोरियों को शिक्षा के साथ बेहतर भोजन व पोषण की खुराक देना- गर्भधारण से पहले, इस दौरान तथा धात्री (दूध पिलाती) माताअों को बेहतर भोजन व पोषाहार देना झारखंड संबंधी आरएसअोसी की रिपोर्ट- 0-23 माह के बच्चों में पहले घंटे का स्तनपान : 32.7 फीसदी – पांच माह तक सिर्फ स्तनपान वाले बच्चे : 64.3 फीसदी- सप्लिमेंट्री फूड लेने वाले छह से आठ माह के बच्चे : 53.7 फीसदी- छह से 23 माह के बीच कम से कम नयूनतम स्तनपान करने वाले : 35.7 फीसदी- कम वजन वाले बच्चे : 42.1 फीसदी- अौसत से कम ऊंचाई वाले बच्चे : 15.6 फीसदी- कमजोर व कुपोषित बच्चे : 47.4 फीसदी- 6-59 माह में कृमिनाशक (डीवोर्मिंग) लेने वाले बच्चे : 11.7 फीसदी- इस दौरान आयरन व फोलिक एसिड लेने वाले : 6.3 फीसदी- इस दौरान विटामिन-ए लेने वाले : 18.7 फीसदी- सांस्थिक प्रसव : 56.6 फीसदीमिशन के तहत कुपोषण मुक्ति की रणनीति- स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति, शिक्षा, समाज कल्याण, कल्याण, कृषि व पशुपालन तथा पेयजल व स्वच्छता विभाग के बीच आपसी समन्वय से कार्यक्रमों का क्रियान्वयन. – वस्तुस्थिति की जानकारी के लिए तीन सर्वे होगा. बेसलाइन (2015-16), मिड-टर्म (2020-21) तथा इंड-लाइन सर्वे (2025-26).- पोषण मिशन की विभागवार जिम्मेवारी तय की गयी है.क्रियान्वयन, मूल्यांकन व अनुश्रवण (इवैल्यूएशन एंड माॅनिटरिंग)झारखंड पोषण मिशन का गठन मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में किया गया है. खाद्य अापूर्ति सह समाज कल्याण सचिव विनय चौबे को मिशन का महानिदेशक बनाया गया है. मिशन के क्रियान्वयन, मूल्यांकन व अनुश्रवण के लिए कई कमेटियां होंगी. सबसे पहले राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मिशन स्टेयरिंग कमेटी होगी. विभिन्न मंत्रियों व यूनिसेफ हेड सहित इसके कुल 14 सदस्य होंगे. इसके बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में स्टेट एग्जिक्यूटिव कमेटी होगी. विभिन्न सचिवों व यूनिसेफ के प्रतिनिधि सहित इसके कुल 11 सदस्य होंगे. समाज कल्याण सचिव की अध्यक्षता वाली स्टेट माॅनिटरिंग एंड इंप्लिमेंटिंग कमेटी में कुल 13 सदस्य होंगे. अंत में विभिन्न जिलों के उपायुक्त की अध्यक्षता में जिला टास्क फोर्स होगा, जिसमें जिला परिषद के ब्यूरोक्रेटिक हेड सहित कुल 11 सदस्य होंगे. मिशन का लक्ष्य (वर्ष 2025 तक)- कम वजन वाले बच्चों की संख्या 20 फीसदी तक कम करना- कमजोर व कुपोषित बच्चों की संख्या 20 फीसदी तक कम करना- कम ऊचाई वाले बच्चे 10 फीसदी तक कम करना- एनिमिया 30 फीसदी तक कम करना