जल के मुख्य स्रोत की व्यवस्था ईशान कोण में करें

जल के मुख्य स्रोत की व्यवस्था ईशान कोण में करेंऑनलाइन वास्तु काउंसलिंग रांची. शुक्रवार को प्रभात खबर कार्यालय में ऑनलाइन वास्तु काउंसलिंग का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के दौरान वास्तु विशेषज्ञ रेणु शर्मा ने पाठकों के सवालों के जवाब दिये. उन्होंने बताया कि वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी भवन के निर्माण की संरचना उस स्थान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2015 6:15 PM

जल के मुख्य स्रोत की व्यवस्था ईशान कोण में करेंऑनलाइन वास्तु काउंसलिंग रांची. शुक्रवार को प्रभात खबर कार्यालय में ऑनलाइन वास्तु काउंसलिंग का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के दौरान वास्तु विशेषज्ञ रेणु शर्मा ने पाठकों के सवालों के जवाब दिये. उन्होंने बताया कि वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी भवन के निर्माण की संरचना उस स्थान की दिशा पर आधारित होती है. दिशा के आधार पर ही पूरे भवन के हिस्सों को व्यवस्थित किया जाता है. यदि भवन वास्तु के अनुकूल दिशा में व्यवस्थित हो, तो उसका प्रभाव सकारात्मक होता है. अन्यथा दोष के कारण परिवार के सदस्यों को लंबे समय तक कष्ट का सामना करना पड़ता है. भवन में एक मुख्य व्यवस्था है जल. जल के मुख्य स्रोत जैसे कुंआ, बोरिंग या भूमिगत टैंक के रूप में होती है. वास्तुशास्त्र के अनुसार जल की अचल व्यवस्था ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) यानी पूर्व दिशा में की जानी चाहिए. यहां पर जल की व्यवस्था रखना सबसे उत्तम और शुभ होता है. यदि किसी कारणवश पानी जमा करना हो, तो उसके लिए उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा ही उत्तम होती है. पानी जमा रखने के लिए भूमिगत टैंक का निर्माण किया जाता है, जिसके लिए जमीन में गडढा बनाया जाता है. गडढा बनाने का मतलब उस स्थान को नीचा करना है जो कि वास्तु के अनुसार महत्वपूर्ण होता है. गलत दिशा में गडढा होने से घर में कर्ज से संबंधित समस्या, रोग व दूसरी प्रकार की परेशानियां रहती हैं. यदि गलत दिशा में टैंक का निर्माण किया गया है, तो इसे वास्तु शास्त्र के नियमों द्वारा सही किया जा सकता है.

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