हाइकोर्ट के आदेश पर बननेवाले भवनों का निर्माण भी समय पर पूरा नहीं हुआ, पर ठेकेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार ने वर्ष 2009 में पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने की घोषणा की, ताकि पर्यटन का विकास हो सके. लेकिन पर्यटन नीति 2015 में बनी सरकार के पास पर्यटन को विकसित करने के लिए कोई दीर्घकालीन नीति भी नहीं है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने पर्यटन और उससे जुड़े काम के ऑडिट के बाद सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया है.
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पर्यटन विकास के नाम पर बने करोड़ों के भवन बेकार
रांची : राज्य में पर्यटन विकास के नाम पर सिर्फ रांची, जमशेदपुर, कोडरमा और डालटनगंज में 15 करोड़ की लागत से बने टूरिस्ट कांप्लेक्स, हेल्थ क्लब, कांफ्रेंस हॉल आदि बेकार पड़े हुए हैं. जिन भवनों का उदघाटन मुख्यमंत्रियाें ने किया था, उनकी दीवारों में दरारें पड़ गयी हैं. कई भवनों का निर्माण पूरा होने का […]
रांची : राज्य में पर्यटन विकास के नाम पर सिर्फ रांची, जमशेदपुर, कोडरमा और डालटनगंज में 15 करोड़ की लागत से बने टूरिस्ट कांप्लेक्स, हेल्थ क्लब, कांफ्रेंस हॉल आदि बेकार पड़े हुए हैं. जिन भवनों का उदघाटन मुख्यमंत्रियाें ने किया था, उनकी दीवारों में दरारें पड़ गयी हैं. कई भवनों का निर्माण पूरा होने का प्रमाण पत्र जारी होने के पहले ही उसे इस्तेमाल के लिए सौंप दिया गया.
हाइकोर्ट के आदेश पर बननेवाले भवनों का निर्माण भी समय पर पूरा नहीं हुआ, पर ठेकेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार ने वर्ष 2009 में पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने की घोषणा की, ताकि पर्यटन का विकास हो सके. लेकिन पर्यटन नीति 2015 में बनी सरकार के पास पर्यटन को विकसित करने के लिए कोई दीर्घकालीन नीति भी नहीं है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने पर्यटन और उससे जुड़े काम के ऑडिट के बाद सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया है.
जमशेदपुर में ‘साकची सराय’ बेकार
वर्ष 2007 में पटना के राज कंस्ट्रक्शन को 3.99 करोड़ रुपये की लागत पर जमशेदपुर में साकची सराय के निर्माण का काम दिया गया था. इसे अक्तूबर 2008 तक पूरा करना था. बाद में इसकी लागत बढ़ा कर 4.86 करोड़ रुपये कर दी गयी. ठेकेदार ने जनवरी 2009 में काम पूरा किया. ठेकेदार को 4.63 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, पर काम में देरी के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी. ठेकेदार द्वारा अंतिम बिल नहीं दिये जाने की वजह से निर्माण कार्य पूरा होने का प्रमाण पत्र अक्तूबर 2014 तक नहीं मिल सका था. हालांकि उसके बिना ही मार्च 2012 में इसे पीपीपी मोड पर चलाने के लिए झारखंड पर्यटन विकास निगम(जेटीडीसी) के हवाले कर दिया गया. भवन बनने के बाद जमशेदपुर नोटिफाइड एरिया से बनाने की अनुमति ली गयी. ‘साकची सराय’ अब तक बेकार पड़ा हुआ है.
बैंक्वेट हॉल की दीवारों में दरारें
कोडरमा के उरवां में पर्यटन स्थल पर 2.31 करोड़ की लागत से बैंक्वेट हॉल और कांफ्रेंस हॉल बनाने का काम राम प्रवेश सिंह नामक ठेकेदार को सितंबर 2009 में दिया गया था. इसे सितंबर 2010 तक पूरा करना था. हालांकि जुलाई 2010 तक ठेकेदार को पहले तल्ले का डिजाइन ही नहीं दिया गया था. सितंबर 2011 में निर्माण कार्य पूरा हुआ. तत्कालीन मुख्यमंत्री ने फरवरी 2012 में इन भवनों का उदघाटन किया. हालांकि अभी तक सारे भवन बेकार पड़े हैं. इन भवनों के निचले हिस्से में पानी भर गया है और दीवारों में दरारें पड़ गयी हैं. सितंबर 2009 में 1.41 करोड़ की लागत से हेल्थ क्लब बनाने का काम ठेकेदार आरके मिश्रा को दिया गया. एक साल में पूरा करना था. पर अब तक अधूरा है. मार्च 2015 मेें इसे इस्तेमाल के लिए जेटीडीसी को हस्तांतरित कर दिया गया है.
हाइकोर्ट के आदेश के बाद भी काम पूरा नहीं
हाइकोर्ट ने दिसंबर 2013 में सरकार को झरनों के पास पर्यटकों के आराम और बच्चों के खेलने की जगह बनाना का आदेश दिया था. इसके मद्देनजर सरकार ने सीता फॉल, जोन्हा फॉल, दशम फॉल, हिरनी फॉल, हुंड्रू फॉल और पंच घाघ में पर्यटकों के आराम के लिए भवन बनाने का फैसला किया. इसके अलावा जोन्हा, हुंड्रू और दशम फॉल में बच्चों के खेलने के लिए जगह बनाने का फैसला किया. इसके लिए टेंडर निकाल कर 47.93 लाख रुपये की लागत पर काम आवंटित किया. इन सभी निर्माण कार्यों को 26 जनवरी 2014 तक पूरा करना था. हालांकि हुंड्रू फॉल को छोड़ कर शेष स्थानों का काम अब तक पूरा नहीं हो सका है.
साढ़े चार साल देर से काम पूरा
कोडरमा के उरवां में बना फूड कोर्ट और टूरिस्ट कॉटेज भी बेकार बड़ा हुआ है. फूड कोर्ट के निर्माण का काम सितंबर 2009 में 2.14 करोड़ रुपये की लागत पर मनीषा पावर कंस्ट्रक्शन को दिया गया था. इसके मई 2010 तक पूरा करना था. निर्धारित समय से करीब साढ़े चार साल बाद जनवरी 2015 में यह पूरा हुआ. जुलाई 2015 में इसे जेटीडीसी को दे दिया गया, हालांकि अब तक भवन के पूर्ण होने का प्रमाण पत्र नहीं जारी हो सका है. उरवां टूरिस्ट कॉटेज की स्थिति भी एेसी ही है. इसे बनाना का काम एपी बरियार नामक ठेकेदार को दिया गया था. सितंबर 2009 में 75.06 लाख रुपये की लागत से शुरू हुए इस काम को मई 2010 तक पूरा करना था. ड्राइंग और डिजाइन समय पर उपलब्ध नहीं कराये जाने की वजह से काम पूरा करने में देर हुई. इसे पूरा करने के लिए ठेकेदार को दिसंबर 2012 तक का समय दिया गया था. हालांकि अब तक यह अधूरा है. काम पूरा हुए बिना ही इसे इस्तेमाल के लिए मार्च 2015 में ही हस्तांतरित कर दिया गया.
टूरिस्ट कांप्लेक्स डालटनगंज भी बेकार
डालटनगंज में 1.34 करोड़ रुपये की लागत से टूरिस्ट कांप्लेक्स बनाने का काम कॉसमिक कंस्ट्रक्शन को वर्ष 2007 में दिया गया था. इसे निर्धारित समय सीमा ( सितंबर 2008) के करीब तीन साल बाद अक्तूबर 2011 में पूरा किया गया. निर्माण कार्यों से जुड़े मामलों में तकनीकी स्वीकृति आदि देने में हुई देर की वजह से अक्तूबर 2014 तक ठेकेदार को भुगतान किया गया. पर, 2012 में ही इसे चलाने और देखरेख की जिम्मेवारी जेटीडीसी को दे दी गयी. टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स अब तक बेकार पड़ा हुआ है. बहरागोड़ा में पर्यटकों के लिए ‘आराम’ नाम का भवन बनाने का काम बिना एकरारनामा के ही भारत कंस्ट्रक्शन कंपनी को फरवरी 2008 में दिया गया. ठेकेदार ने मई 2009 में निर्माण कार्य बंद कर दिया. ठेकादार को 30.88 लाख रुपये का भुगतान भी किया गया. ठेकेदार ने अब तक फाइनल बिल नहीं दिया है और निर्माण का यह मामला उलझा हुआ है.
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