अपने आप में एक संस्था थे डॉ वद्यिार्थी

अपने आप में एक संस्था थे डॉ विद्यार्थी संस्मरण डॉ एलपी विद्यार्थी (पूरा नाम डॉ ललिता प्रसाद विद्यार्थी) का नाम शिक्षा जगत में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है. डॉ विद्यार्थी अपने आप में एक संस्था थे. उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए जो दिशा बोध कराया था, वह बाद में राष्ट्रीय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2015 8:36 PM

अपने आप में एक संस्था थे डॉ विद्यार्थी संस्मरण डॉ एलपी विद्यार्थी (पूरा नाम डॉ ललिता प्रसाद विद्यार्थी) का नाम शिक्षा जगत में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है. डॉ विद्यार्थी अपने आप में एक संस्था थे. उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए जो दिशा बोध कराया था, वह बाद में राष्ट्रीय नीति बनी अौर योजना आयोग ने जनजातीय लोगों के विकास के लिए अधिक राशि अौर विशेष योजनाएं अावंटित किये. बहुत ही सहज अौर सरल रहनेवाले डॉ विद्यार्थी ने अपनी पुस्तक द ट्राइबल कल्चर अॉफ इंडिया में लिखा है कि पांचवीं व छठी पंचवर्षीय योजनाअों में जनजातीय लोगों के विकास के लिए पहली बार मानवशास्त्री, प्रशासक व नीति निर्धारकों ने एक साथ बैठ कर बेहतरी के लिए उपाय ढूंढ़ा. मैं भी इनका शिष्य रह चुका हूं. इनके निर्देशन में पीएचडी की डिग्री हासिल की. ये एक ऐसे शिक्षाविद थे, जिन्होंने अपने छात्रों को शिक्षा देने के अलावा उन्हें एक सफल नागरिक होने के भी गुर सिखाये. उन्होंने बताया कि शिक्षा अौर शोध से प्राप्त ज्ञान का उपयोग समाज के विकास में कैसे किया जा सकता है. वे समाज के लोगों की संवेदना अौर दर्द को महसूस करने का जिक्र विद्यार्थियों से करते थे. डॉ विद्यार्थी ने 28 नवंबर 1985 को बिहार क्लब दुर्गा समिति भवन का शिलान्यास किया था. रात में ही उन्हें ब्रेन हेंब्रेज हुआ अौर उन्हें आरएमसीएच (अब रिम्स) में भरती कराया गया था. उनके मित्र रहे डॉ सच्चिदानंद सिंह ने आरएमसीएच में 30 नवंबर को उनसे भेंट की अौर रांची विवि के कुलपति के रूप में योगदान किया था. यह उनकी अंतिम भेंट थी. -डॉ अजीत कुमार सहाय, विभागाध्यक्ष, पीजी मानवशास्त्र

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