13 वर्ष बाद भी नहीं बनी स्थानीयता नीति : टेटे

रांचीः झारखंडी बुद्धिजीवियों के साझा मंच ‘साल सकम’ की ओर से ‘स्थानीयता के बाहर, स्थानीयता के भीतर’ विषय पर विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें वंदना टेटे ने कहा कि राज्य गठन के 13 वर्षो के बाद भी स्थानीयता नीति नहीं बनी है. इससे असमंजस की स्थित बनी हुई है. राज्य में विकास का समुचित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 18, 2013 3:57 AM

रांचीः झारखंडी बुद्धिजीवियों के साझा मंच ‘साल सकम’ की ओर से ‘स्थानीयता के बाहर, स्थानीयता के भीतर’ विषय पर विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें वंदना टेटे ने कहा कि राज्य गठन के 13 वर्षो के बाद भी स्थानीयता नीति नहीं बनी है. इससे असमंजस की स्थित बनी हुई है. राज्य में विकास का समुचित माहौल नहीं बन रहा है. स्थानीयता नीति में आदिवासियों व मूलवासियों का हित देखना जरूरी है. उनकी भाषा-संस्कृति को भी ध्यान में रखा जाये.

स्थानीयता तय करने के लिए महाराष्ट्र का फॉमरूला अपनाया जा सकता है, जिसमें स्थानीयता के कई स्तर हैं. स्थानीयता के आधार पर ही वहां रहने वालों को प्राथमिकता दी जाती है. उन्होंने कहा कि स्थानीयता तय करने में ग्राम सभा की भूमिका महत्वपर्ण होनी चाहिए. इसलिए इसे और सशक्त बनाने की आवश्यकता है.

इस दौरान स्थानीयता नीति के पक्ष- विपक्ष में कई विचार आये. संबोधित करने वालों में राम सेवक तिवारी, काली दास मुमरू, जसिंता केरकेट्टा,नितिशा खलखो, विजय किशोर पांडेय, अनुराग मिंज, अविनाश, शंभु महतो, पंकज कुजूर, वशिष्ट तिवारी, अश्विनी पंकज, लाल सिंह बोयपाई, बंधु भगत, अरविंद अविनाश, प्रो विनय भरत, अनिल सिकदर व अन्य शामिल थे. आयोजन सूचना भवन सभागार में किया गया.

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