आनंद लोक अस्पताल: आधे से कम खर्च पर इलाज

रांची/कोलकाता: चाहे वह आंख का ऑपरेशन हो, लैंस लगाना हो, बाइपास सजर्री हो या फिर आइसीयू में मरीजों को रखना, झारखंड में काफी महंगा है. यही कारण है कि इलाज के लिए झारखंड से लोग बाहर जा रहे हैं. राज्य की बड़ी राशि बाहर जा रही है. ऐसी बात नहीं है कि हर जगह इलाज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 19, 2015 1:09 AM
रांची/कोलकाता: चाहे वह आंख का ऑपरेशन हो, लैंस लगाना हो, बाइपास सजर्री हो या फिर आइसीयू में मरीजों को रखना, झारखंड में काफी महंगा है. यही कारण है कि इलाज के लिए झारखंड से लोग बाहर जा रहे हैं. राज्य की बड़ी राशि बाहर जा रही है. ऐसी बात नहीं है कि हर जगह इलाज महंगा है.

देश में ऐसे भी अस्पताल हैं जहां कम से कम पैसे में लोगों का इलाज हो रहा है. ऐसा ही एक अस्पताल है कोलकाता का आनंद लोक अस्पताल. झारखंड में जहां मोतियाबिंद का सामान्य ऑपरेशन भी 30-40 हजार में होता है, वही मोतियाबिंद का ऑपरेशन आनंद लोक में पांच हजार से नौ हजार के बीच होता है. सिर्फ मोतियाबिंद ही क्यों, बाइपास सजर्री के लिए झारखंड के बड़े निजी अस्पतालों में 1.05 लाख से लेकर 1.35 लाख तक लिये जाते हैं. आइसीयू, बेड का चार्ज लेकर यह राशि दो लाख तक पहुंच जाती है जबकि आनंद लोक में यही इलाज 85 हजार में होता है.


झारखंड के अस्पतालों में आइसीयू का चार्ज लगभग तीन हजार प्रतिदिन है जबकि आनंद लोक में यह चार्ज सिर्फ 75 रुपये प्रतिदिन है. ऐसी बात नहीं है कि इतने कम में इलाज करने के कारण अ़ानंद लोक अस्पताल को घाटा होता है.
आनंद लोक के चेयरमैन देव कुमार सर्राफ बताते हैं कि वे कम से कम मुनाफा पर इलाज करते हैं, उसके बावजूद उनके अस्पताल को गत वर्ष 10 करोड़ का मुनाफा हुआ है. यह बताता है कि कैसे झारखंड के अस्पताल भारी मुनाफा कमा रहे हैं. ज्ञातव्य है कि देव कुमार सर्राफ एक ट्रस्ट के जरिये अस्पताल का संचालन करते हैं. उन्होंने अपनी सारी संपत्ति ट्रस्ट को दान कर दी है. पश्चिम बंगाल में कई जगहों पर उनका अस्पताल है. 12-13 वर्ष पहले भी आनंद लोक अस्पताल को झारखंड (खासकर जमशेदपुर) लाने का प्रयास किया गया था लेकिन तत्कालीन सरकार द्वारा जमीन उपलब्ध नहीं कराने के कारण यह कार्य नहीं हो सका था.

मेडिकल क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि अगर आनंद लोक अस्पताल को झारखंड लाने में सरकार सफल रहती है तो मरीजों का सस्ती दर पर बेहतर इलाज हो सकता है. वैसे भी रांची में 180 करोड़ की लागत से सदर अस्तपाल का बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर तो बन गया लेकिन तीन साल से बेकार पड़ा है. अगर सदर अस्पताल को सरकार खुद चलाना चाहती है, उसके बावजूद अन्यत्र जमीन देकर आनंद लोक जैसे अस्पताल (जो ट्रस्ट के जरिये चलता है) को झारखंड लाने का प्रयास किया जा सकता है. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि गरीबों के लिए झारखंड में सिर्फ रिम्स ही है. एम्स पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है.

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