सियासी मसलों में उलझे कई अहम काम
राज्य गठन के 14 वर्षों के बाद रघुवर दास के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनी है़ आम-अवाम को उम्मीद है कि बिना दबाव के सरकार काम करेगी़ इसके लिए अफसरशाही को एकांउटेबल बनाने व सचिवालय से लेकर ब्लॉक और थाने तक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जरूरत है़ सरकार के एक वर्ष हो गये़ कई मौके पर सरकार ने घोषणाएं भी की़ पर उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका़ नीतियों के बनाने की बात हो या फिर विकास के नये प्रतिमान गढ़ने की, कई मामले सियासी मसलों में उलझ कर रह गये.
स्थानीय नीति नहीं, पूरी सरकार भी नहीं बन पायी
रांची: रघुवर दास की सरकार के लिए स्थानीय और नियोजन नीति बड़ी चुनौती है़ इस महत्वपूर्ण मसले को सुलझाने के लिए सरकार ने पहल तो की, लेकिन बात नहीं बनी. पिछले बजट सत्र के दौरान 13 मार्च को विधानसभा में सरकार ने घोषणा की थी कि दो महीने में स्थानीय नीति की घोषणा कर दी जायेगी़ लेकिन मामला फंस गया़ सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलायी़ पिछले कई सर्वदलीय बैठकों की तरह इस बार भी वही हश्र हुआ़ सर्वदलीय बैठक में सहमति नहीं बनी़ इसके बाद बिहार चुनाव आ गया़ सियासी राजनीति में झारखंड की स्थानीय नीति फंस गयी़ पिछले 14 वर्षों की तरह झारखंड में स्थानीयता की नीति को लेकर केवल राजनीति होती रही. 14 वर्षों से बारी-बारी सबने शासन संभाला. स्थानीयता के मसले पर आग में हाथ सेंकने की राजनीति झारखंड में होती रही. वर्तमान सरकार के लिए स्थानीय नीति का पेंच सुलझाना और समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रख कर नीति बनाना बड़ा टास्क है़
नहीं हुआ पूर्ण मंत्रिमंडल का गठन, उठ रहे सवाल : रघुवर की सरकार पिछले एक वर्ष में 12वें मंत्री की तलाश नहीं कर पायी़ अब तक पूर्ण मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो पाया है. विपक्ष इसको लेकर सवाल उठाता रहा है़ पिछली हेमंत सोरेन सरकार में पूर्ण मंत्रिमंडल का गठन नहीं होने पर विपक्ष ने सरकार को घेरने का भी काम किया था़ सरयू राय ने इसको लेकर राज्यपाल को भी पत्र लिखा था़ इस बार दांव उलट गया़ रघुवर सरकार को अब झामुमो घेर रहा है़ झामुमो के विधायक पूर्ण मंत्रिमंडल नहीं होने की शिकायत लेकर राज्यपाल के पास भी पहुंचे़ झामुमो इस सरकार को असंवैधानिक करार दे रहा है़ वर्तमान सरकार को अपने 12वें मंत्री की तलाश करनी होगी़ इसके लिए सरकार को अपने सहयोगी दल का भरोसा जीतना है़
स्कूल से बदतर कॉलेज की स्थिति
रांची. राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति काफी खराब है़ राज्य गठन के बाद झारखंड में विश्वविद्यालयों की संख्या तीन से बढ़कर पांच हो गयी, लेकिन केवल संख्या ही बढ़ी, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ़ राज्य के कॉलेजों की स्थित हाइस्कूलों से भी बदतर है़ राज्य गठन के बाद बने नीलांबर-पितांबर विश्वविद्यालय व कोल्हान विश्वविद्यालय का अब तक कैंपस नहीं बन सका़ शहरी क्षेत्र के कई डिग्री कॉलेजों में विद्यार्थियों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है़ 64 अंगीभूत कॉलेजों में से लगभग में स्थायी प्राचार्य नहीं है़ं राज्य गठन के बाद से अब तक मात्र एक बार वर्ष 2008 में लगभग 850 शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी़ राज्य में राष्ट्रीय औसत की तुलना में कॉलेजों की संख्या भी काफी कम है़ राष्ट्रीय स्तर पर 18 से 22 वर्ष आयु वर्ग की प्रति एक लाख जनसंख्या पर 25 कॉलेज है, जबकि झारखंड में एक लाख पर मात्र सात कॉलेज है़ं राज्य में कॉलेजों की वर्तमान संख्या में चार गुणा बढ़ोतरी की आवश्यकता है़
कौशल विकास का लक्ष्य नहीं हुआ पूरा
रांची: झारखंड में कौशल विकास मिशन का हाल ठीक नहीं है. राज्य में 20 से 30 वर्ष आयु वर्ग के अनुमानित युवक-युवतियों की संख्या 1.10 करोड़ है. सरकार की मानें, तो राज्य के 4.90 लाख से अधिक युवक-युवतियों का कौशल विकास कर उन्हें रोजगार के लायक बनाने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया था. इसके लिए कृषि, बागवानी, वन, तसर, हस्तशिल्प, लघु औद्योगिक इकाइयों की जरूरतें और अन्य क्षेत्रों में युवाओं को रोजगारोन्मुखी बनाने का कार्यक्रम तय किया गया था. कौशल विकास मिशन के तहत सरकार ने श्रम विभाग के लिए 30 करोड़ रुपये का बजट भी दिया है. कल्याण विभाग में आइआइटी गुरुकुल को दो वर्ष पहले अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी और अन्य जाति के कौशल विकास को लेकर 20 करोड़ रुपये से अधिक की राशि भी दी गयी है. गुमला और रांची को छोड़ कहीं भी गुरुकुल का कार्यक्रम शुरू नहीं हो पाया है.
पिछले वर्ष से आयी है गति
राज्य में कौशल विकास मिशन का गठन 2012 में किया गया था. 2014 से मिशन के क्रियाकलापों में तेजी आयी है. 29 मई 2015 को झारखंड में इस मिशन को श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण और कौशल विकास विभाग के अधीन लाया गया. सरकार की तरफ से स्किल मैनेजमेंट इंफाॅरमेशन सिस्टम पोर्टल (एस-एमआइएस) की शुरुआत की गयी है. कहने को सरकार ने कौशल विकास मिशन के तकनीकी सपोर्ट के लिए प्राइस वाटर हाउस कूपर, फिक्की, नैबकोंस और इडीआइआइ का चयन तीन वर्षों के लिए किया है.
15 जनवरी से जिलावार कार्यक्रम चलाने की घोषणा : सरकार की तरफ से पायलट प्रोजेक्ट के तहत 15 जनवरी 2016 से कौशल विकास संबंधी प्रशिक्षण चलाया जायेगा. इसमें कंप्यूटर प्रशिक्षण, ऑफिस मैनेजमेंट, राज मिस्त्री, बढ़ईगिरी, इलेक्ट्रिशियन और अन्य कोर्स शामिल हैं.
नहीं सुधरी पुलिस की छवि, अपराध भी बढ़े
रांची. आम लोगों के बीच पुलिस की छवि सुधारने के लिए कई कोशिशें हुईं. शपथ दिलाने से लेकर कड़ी कार्रवाई तक की गयी, लेकिन पुलिस की छवि में सुधार नहीं हुआ. राज्य में इस साल कानून-व्यवस्था की स्थिति भी खराब होती गयी. अॉर्गनाइज्ड क्राइम के साथ-साथ कई जिलों में सांप्रदायिक दंगे की घटना में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. कुल घटनाओं में वृद्धि के साथ-साथ बैंक लूट, बैंक डकैती, डायन हत्या, िफरौती के लिए अपहरण और रंगदारी जैसे ऑर्गनाइज्ड क्राइम में बढ़ोतरी दर्ज की गयी. कोयला क्षेत्र (धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़ व चतरा) एवं रांची और जमशेदपुर में व्यवसायियों से रंगदारी की मांग लगातार की जा रही है. पुलिस अपराधियों को पकड़ नहीं पा रही है. आर्गनाइज्ड क्राइम बढ़ने को लेकर मुख्यमंत्री भी चिंता जता चुके हैं. जानकारी के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले इस साल (30 सितंबर तक) डायन हत्या के मामले में नौ, बैंक डकैती की पांच, बैंक लूट की दो, फिरौती के लिए अपहरण की चार, चोरी की 750, दंगा की 247 और दुष्कर्म की 83 घटनाएं ज्यादा हुई हैं. उल्लेखनीय है कि राज्य में इस साल बैंक लूट व डकैती की घटना में रिकाॅर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. वर्ष 2014 में बैंक लूट व डकैती की कुल चार घटनाएं हुई थी, जबकि इस साल अब तक बैंक लूट व डकैती की 15 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं.कुल अपराध में पांच हजार से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. इस साल चतरा जिला में सबसे अधिक बैंक डकैती व लूट की घटना हुई. रांची जिला में सबसे अधिक लूट और धनबाद में सबसे अधिक डकैती की घटना हुई. पुलिस की छवि में सुधार लाने के लिए कई कोशिशें की गयीं. डीजीपी का पद संभालने के साथ ही डीके पांडेय ने पुलिसकर्मियों को शपथ दिलवाने की परंपरा शुरू की.
सही नहीं है मंत्री-अधिकारियों की ट्यूनिंग
राज्य के मंत्रियों और अधिकारियों के बीच सब कुछ सही नहीं है. सरकार के कई मंत्रियों की अपने विभागीय सचिवों से नहीं बन रही है. कुछ मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से बात कर अपने सचिवों का तबादला कराया. कई ने मनपसंद अफसर को सचिव बनवाया. वहीं, कुछ मंत्री ऐसे भी रहे, जिनको मनपसंद सचिव या अफसर नहीं मिले. कल्याण मंत्री और सचिव के एकमत नहीं होने के कारण कई मामले लटके पड़े हैं. नियुक्ति से लेकर टेंडर तक का मामला फंसा है. विधानसभा कैंटीन के लिये हुए टेंडर को लेकर श्रम मंत्री और श्रमायुक्त आमने-सामने हो गये. मंत्री के आदेश पर भी टेंडर की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई. इधर, जल संसाधन व पेयजल मंत्री नयी योजनाएं नहीं लिये जाने की वजह से अपने अफसरों से खफा-खफा रहते हैं. राजनीतिक गलियारों में मंत्री पर अंकुश रखने के लिये उनको चुनिंदा अफसर दिये जाने की चर्चा है. ग्रामीण विकास मंत्री, पर्यटन, खेलकूद सह भू-राजस्व मंत्री और कृषि मंत्री भी अपने अफसरों से खास खुश नहीं हैं. इन विभागों में मंत्री-अफसर के बीच अधिकारियों का तबादला-पदस्थापन और टेंडर निष्पादन बड़ा मुद्दा है. स्वास्थ्य मंत्री और शिक्षा मंत्री भी अपने अफसरों से दुखी हैं. नियमों का हवाला देकर अफसरों ने दोनों मंत्रियों का दिल कई बार तोड़ा है. कई मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के पास जाकर भी अपना दुखड़ा रोया है. नगर विकास मंत्री और कल्याण मंत्री को उनके आग्रह पर ही मनपसंद अफसर दिये गये. पर, कई बार मामलों में प्रशासनिक कारणों से मंत्रियों को मनपसंद अफसर नहीं मिले. ऐसे विभागों में मंत्री-अधिकारी ट्यूनिंग में गड़बड़ी का असर विभाग के कार्यों पर भी पड़ रहा है. सबसे ज्यादा दिक्कत टेंडरों के निपटारे में हो रही है. टेंडरों का निपटारा नहीं होने से विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं. योजनाओं के धरातल पर उतरने में समय लग रहा है.
ट्रैफिक व्यवस्था में नहीं हुआ खास बदलाव
राजधानी में ट्रैफिक पुलिस ने अब तक जो भी योजनाएं बनायी, उसमें बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ़ पिछले एक साल में कई योजनाएं बनी लेकिन उनमें से अधिकतर योजनाएं धरातल पर उतर नहीं पायी. पिछले एक साल में ट्रैफिक व्यवस्था में कुछ बदलाव देखने काे मिला़ लेकिन कई समस्याओं के समाधान के लिए बनी योजनाएं अब भी जस की तस है़ं
बिना हेलमेट के नहीं मिलेगा पेट्रोल
वर्ष 2013 में नियम बनाया गया था कि पेट्रोल पंप पर बिना हेलमेट के पेट्रोल नहीं मिलेगा़ लेकिन आज उसे देखनेवाला कोई नहीं है़ आज भी बिना हेलमेट के वाहन चालक धड़ल्ले से पेट्रोल ले रहे हैं. इस संंबंध में ट्रैफिक एसपी मनोज रतन चोथे का कहना है कि डीटीओ द्वारा यह नियम बनाया गया था़ लेकिन नियम बनने के बाद उस पर अमल हाे रहा है या नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं है़ पुलिसकर्मियों की कमी के कारण पेट्रोल पंप पर पुलिस लगाना संभव नहीं है़
स्टैंड पर नहीं रुकती सिटी बस
सिटी बस को स्टैंड पर ही रुकने का नियम बनाया गया था, लेकिन सिटी बस स्टैंड पर नहीं रुकती़ इस सबंध में ट्रैफिक पुलिस का कहना है कि नगर निगम को स्थान चिह्नित कर उस पर अमल करने को कहा गया है़ इसके लिए नगर निगम कमिश्नर को स्पॉट विजिट करना था, लेकिन यह काम नहीं हुआ.
कांटाटोली चौक पर जाम की स्थिति अब भी वही
कांटाटोली पर जाम की समस्या वर्षों से बनी हुई है़ इसके लिए कई बार प्रयास किया गया, लेकिन कांटाटोली पर जाम की समस्या नहीं सुधरी़ यहां तैनात ट्रैफिक पुलिस का कहना है कि सिटी बस, ऑटो वाले कार्रवाई होेने पर कुछ दिन ठीक रहते हैं, फिर से उनका रवैया वही हो जाता है़ कई बार उनपर जुर्माना भी लगाया जाता है, फिर भी वे नहीं सुधरते़ यहां जब तक फ्लाई ओवर नहीं बनेगा, जाम की समस्या से निजात नहीं मिलेगी.
मेन रोड में जाम की स्थिति नहीं सुधरी
मेन रोड में फुटपाथ दुकानदारों के अतिक्रमण के कारण जाम लगता है़ कई बार ट्रैफिक व जिला प्रशासन द्वारा कार्रवाई की जाती है, कुछ दिन तक ठीक रहता है़, फिर वही स्थिति पैदा हो जाती है़
अपर बाजार में वन वे नियम ध्वस्त
अपर बाजार में वन वे नियम बनाया गया था़ लेकिन वर्तमान में यह नियम पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है़ इस कारण अपर बाजार में पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है़ इस संबंध में ट्रैफिक एसपी मनोज रतन चाेथे ने कहा कि चेंबर के लोगों के साथ बैठक हुई है, शीघ्र ही वन वे लागू हो जायेगा़
अन्य मुख्य बातें
| नये साल 2016 से शुरू हो जायेगी इ-चालान व्यवस्था़ हर पोस्ट पर इ-चालान काटा जायेगा़
| बिना हेलमेट, ट्रिपल राइड, बिना लाइसेंस, बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के वाहन चालकों पर हो रही है कार्रवाई़
| दिसंबर माह में अब तक ट्रैफिक पुलिस ने वसूला 15-17 लाख रुपये जुर्माना़
| तीन साल से 22 स्थानाें पर लगे खराब ट्रैफिक लाइट को ठीक किया गया़
| नये साल में हर स्कूल में चलेगा ट्रैफिक जागरूकता अभियान
| सरकुलर रोड वन वे किया गया, लेकिन केवल ऑटो के लिए़
| मेन रोड पर दोनों चलने के लिए फुटपाथ नहीं बने़
‘ ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार का प्रयास किया गया है, शीघ्र ही कई नयी व्यवस्था लागू की जायेगी़ जिससे लोगों को ट्रैफिक जाम व अन्य ट्रैफिक की समस्या से निदान मिलेगा़ ‘
मनोज रतन चोथे, ट्रैफिक एसपी
नहीं बना फ्लाई ओवर
पिछले 15 सालों में राजधानी में भीड़ कम करने के लिए एक भी फ्लाई ओवर नहीं बनायी जा सकी़ जबकि इसके लिए दो बार डीपीआर बना. अब तीसरी बार रघुवर सरकार ने फ्लाई ओवर बनाने की कवायद शुरू की है़
सबसे पहले क्या थी योजना
शुरुआती दौर में तत्कालीन पथ निर्माण विभाग मंत्री सुदेश महतो ने पहल की और कांके रोड (राजभवन) से लेकर रातू रोड मुख्य चौराहा होते हुए हरमू पुल के पहले तक के फ्लाई ओवर का डीपीआर बनवाया था, पर डीपीआर पड़ा ही रह गया़
दूसरी बार तीन फ्लाई ओवर की योजना
दूसरी बार राजधानी की सड़कों को जाम मुक्त बनाने के लिए तीन फ्लाई ओवर बनाने के लिए डीपीआर तैयार कराया गया.
मेन रोड फ्लाई ओवर
इसे उर्दू लाइब्रेरी से लेकर अलबर्ट एक्का चौक व विश्वविद्यालय परिसर होते हुए कचहरी रोड तक बनाना है.
सुजाता फ्लाई ओवर
इसके तहत बिग बाजार से सुजाता चौक होते हुए राज अस्पताल तक बनाना था.
लालपुर फ्लाई ओवर
इसे डंगरा टोली चौक के पहले से लालपुर चौक होते हुए सर्कुलर रोड से नियोजनालय तक बनाना था.
अभी क्या होना है
फिलहाल रातू रोड मुख्य पथ पर जमीन उपलब्धता को देखते हुए फ्लाई ओवर बनाना है. वहीं दूसरी योजना कांके रोड (राजभवन) से रातू रोड मुख्य चौराहा होते हुए हरमू रोड तक की है. यह योजना सबसे पहले की योजना ही है.
फ्लाई ओवर बनने से क्या होंगे लाभ
फ्लाई ओवर बनने से सड़कों पर से वाहनों का बोझ कम हो जायेगा. वाहनों का आवागमन फ्लाई ओवर से हो सकेगा. नतीजतन ट्रैफिक डायवर्ट होगी और जाम की समस्या से निजात मिलेगी.