टिप्पणी: अफसरों के सुस्त रवैये पर हाइकोर्ट ने कहा, ब्यूरोक्रेट को माइंड सेट में बदलाव लाना होगा

रांची: झारखंड हाइकोर्ट ने जनहित के मुद्दों पर अफसरों के सुस्त रवैये को गंभीरता से लिया है. चीफ जस्टिस विरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने बुधवार को ब्यूरोक्रेट की कार्य प्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की. खंडपीठ ने कहा कि जनहित के मुद्दों पर ब्यूरोक्रेट संवेदनशील नहीं है. तीन साल तक अफसराें के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 9, 2016 1:16 AM
रांची: झारखंड हाइकोर्ट ने जनहित के मुद्दों पर अफसरों के सुस्त रवैये को गंभीरता से लिया है. चीफ जस्टिस विरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने बुधवार को ब्यूरोक्रेट की कार्य प्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की. खंडपीठ ने कहा कि जनहित के मुद्दों पर ब्यूरोक्रेट संवेदनशील नहीं है. तीन साल तक अफसराें के पास मामला पड़ा रहता है, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है. ब्यूरोक्रेट को माइंड सेट में बदलाव लाना होगा. उन्हें काम करना होगा. समझना होगा कि वे पब्लिक सर्वेंट (लोक सेवक) हैं.

ब्यूरोक्रेसी को जवावदेह बनाना होगा. अदालत ने सरकार को हिदायत देते हुए कहा कि ऐसी स्थिति नहीं आने दी जाये कि अदालत को मजबूर होकर ब्यूरोक्रेट के वेतन से राशि कटाने का आदेश देना पड़े. खंडपीठ ने दीनबंधु दास की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की.

सरकार 16 तक रिपाेर्ट दे : याचिका में ईचागढ़ में नहर मरम्मत कराने के लिए सरकार को निर्देश देने का आग्रह किया गया है. कहा गया कि तीन साल बीत जाने के बाद भी सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. इस पर अदालत ने सरकार को 16 दिसंबर तक प्रगति रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया.
बच्चों की जान चली जाती है, मां समझती है डायन ने मारा
उदाहरण देते हुए अदालत ने कहा कि गांवों में अधारभूत सुविधाएं नहीं होती हैं. हेल्थ सेंटर में एंबुलेंस नहीं होता है. इसके चलते कई बच्चों की जान चली जाती है. उसकी मां समझती है कि उनका बच्चा डायन-बिसाइन के चक्कर में मर गया. आधारभूत संरचना के अभाव में दूसरी तरह की समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं.
गरीब चंदा जमा कर दायर करते हैं याचिका
अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि गरीब लोग अफसरों तक नहीं पहुंच पाते हैं. उनकी बात नहीं सुनी जाती है. जनप्रतिनिधि भी अपना क्षेत्र नहीं होने पर इनकी मांगों को नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसे में गरीबों के पास जनहित याचिका दायर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है. गांव के लोगों से सात सौ रुपये तक चंदा लेकर याचिका दायर की गयी है. वकील ने भी अपनी फीस नहीं ली है. ऐसे में सरकार और ब्यूरोक्रेट को जनता के प्रति जवाबदेह होना होगा.

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