हत्या के पक्ष में नहीं थे कुछ नक्सली
रांची: स्पेशल ब्रांच के इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या में शामिल कुंदन पाहन दस्ते के नक्सली रमेश प्रामाणिक ने पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया. फ्रांसिस इंदवार की हत्या वर्ष 2009 में अड़की में हुई थी. इस संबंध में अड़की थाना में कांड संख्या 22/09 के तहत मामला दर्ज है. शनिवार को सरेंडर नीति के […]
रांची: स्पेशल ब्रांच के इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या में शामिल कुंदन पाहन दस्ते के नक्सली रमेश प्रामाणिक ने पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया. फ्रांसिस इंदवार की हत्या वर्ष 2009 में अड़की में हुई थी. इस संबंध में अड़की थाना में कांड संख्या 22/09 के तहत मामला दर्ज है. शनिवार को सरेंडर नीति के तहत पुलिस ने रमेश प्रामाणिक को 50 हजार रुपये नकद दिये. रमेश प्रमाणिक (पिता बोका प्रमाणिक) तमाड़ के डुगीरडीह गांव का निवासी है. उसने मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की है.
यह जानकारी शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में एसएसपी भीम सेन टूटी और ग्रामीण एसपी एसके झा ने दी. एसएसपी के अनुसार रमेश प्रामाणिक वर्ष 2004 में संगठन में शामिल हुआ. वह वर्ष 2008 में पहली बार जेल गया. नौ माह बाद जमानत पर बाहर आने के बाद वह दोबारा नक्सली गतिविधियों में शामिल हो गया.
रमेश प्रामाणिक ने पुलिस को बताया कि नक्सलियों की योजना अपहरण के बाद फ्रांसिस इंदवार की हत्या करने की नहीं थी. कुछ नक्सलियों ने उसकी हत्या करने का विरोध भी किया था. लेकिन, फ्रांसिस इंदवार नक्सलियों के बारे काफी जानकारी एकत्र कर चुके थे. इस कारण उनकी हत्या कर दी गयी. हत्या करने में संजय प्रामाणिक, राम मोहन, दुर्गा लोहरा, राज किशोर मुंडा, अशोक मुंडा, राम मोहन और अशोकजी सहित अन्य नक्सली शामिल थे.
रमेश प्रमाणिक कैसे बना नक्सली
रमेश प्रमाणिक ने बताया कि वर्ष 2004 में उसके गांव में कुछ नक्सली आये थे. नक्सलियों ने गांववालों के साथ बैठक की. बैठक में नक्सलियों ने कहा, पुलिस के पास किसी विवाद को सुलझाने के लिए जाने का कोई फायदा नहीं. विवाद सुलझाने के नाम पर पुलिस रुपये मांगते हैं. गांव में होनेवाले विवाद का फैसला अब ग्रामीण ही करेंगे. नक्सलियों की इस बात से वह काफी प्रभावित हुआ. बैठक के बाद नक्सलियों ने गांव के सात लोगों को मिला कर किसान क्रांतिकारी कमेटी (केकेसी) का गठन किया, जिसमें वह भी शामिल हो गया.
कुंदन पाहन तक सूचना पहुंचाता था
रमेश ने बताया कि वह वर्ष 2008 से पूर्व कुंदन पाहन और उसके दस्ते के सदस्यों तक सामान और सूचना पहुंचाना था. जंगल के अंदर कैंप तैयार करता था. जेल से बाहर निकलने के बाद वह नक्सलियों के मारक दस्ते में शामिल हो गया. रमेश ने कहा वह 2010 के अंत में संगठन से अलग हो गया था. इस दौरान पुलिस से बचने के लिए इधर- उधर भागता रहा. इससे उसके घरवाले भी परेशान रहते थे. इसके बाद वह पुलिस के संपर्क में आया और सरकार की सरेंडर नीति से प्रभावित होकर सरेंडर कर दिया.