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राजनीति में भी रहा बांग्ला साहित्य का प्रभाव: प्रणब मुखर्जी
रांची: राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने रविवार काे होटवार स्थित खेल गांव में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के 88वें वार्षिक सम्मेलन का उदघाटन किया. तीन दशकों से संगठन के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि बांग्ला साहित्य का प्रभाव राजनीति पर भी रहा है. डॉ मुखर्जी ने कहा : सम्मेलन का […]
रांची: राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी ने रविवार काे होटवार स्थित खेल गांव में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के 88वें वार्षिक सम्मेलन का उदघाटन किया. तीन दशकों से संगठन के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि बांग्ला साहित्य का प्रभाव राजनीति पर भी रहा है. डॉ मुखर्जी ने कहा : सम्मेलन का शुरुआती नाम ‘प्रवासी बंग साहित्य सम्मेलन’ था और इसका गठन 1922 में किया गया था. रवींद्रनाथ टैगोर ने 1923 में वाराणसी में इसके पहले वार्षिक सम्मेलन की अध्यक्षता की थी.
12 बार अध्यक्ष रह चुका हूं : डॉ मुखर्जी ने कहा : मैं 12 बार इसका अध्यक्ष रह चुका हूं. तीन दशक तक इस संस्था के साथ पूरी तरह से जुड़ा रहा. वर्ष 1980 में जमशेदपुर में आयोजित अधिवेशन के उदघाटनकर्ता के रूप में मौजूद रहा.इसके बाद काफी समय तक अध्यक्ष के रूप में काम किया. राष्ट्रपति बनने के साथ ही मैंने सभी पद छोड़ दिया. यह संस्था पूरे देश में है. पहले इसका नाम प्रवासी बंग साहित्य सम्मेलन था. इसका उद्देश्य था कि काम के सिलसिले में बंगाल से बाहर रह रहे लोगों को उनकी भाषा संस्कृति की जानकारी दी जाये. देवेश दास के प्रयास से इसका नाम बदल कर निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन पड़ा.
कवि माइकल मधुसूदन दत्त को याद किया
उन्होंने कहा कि 19वीं सदी के मध्य में बंगाली साहित्य में उपन्यास आये थे. राष्ट्रपति ने कवि माइकल मधुसूदन दत्त को याद करते हुए कहा कि दत्त ने बंगाली भाषा में अमृताक्षर छंद, महाकाव्यों और काव्यों की शुरुआत की थी और 1860 में प्रकाशित हुआ उनका पहला महाकाव्य ‘तिलोत्तमा संभव काव्य’ अमृताक्षर छंद में लिखी गयी पहली बांग्ला कविता थी. इसके अगले साल दत्त की महानतम रचना ‘मेघनाद वध काव्य’ प्रकाशित हुई. 19वीं सदी के बंगाल ने बिहारीलाल चक्रवर्ती, रमेेश चंदर दत्त और मीर मुशर्रफ हुसैन जैसे कई दूसरे प्रख्यात बंगाली साहित्यकार पैदा किये.
काजी नजरुल इसलाम काे याद किया
डॉ मुखर्जी ने काजी नजरुल इसलाम के योगदानों को याद करते हुए कहा कि उनकी रचनाओं ने सीमा पार भी ख्याति अर्जित की. रवींद्रनाथ की तरह नजरूल इसलाम भी बंगाल के लिए गर्व हैं. कहा कि शरदचंद्र चटोपाध्याय बंगाली साहित्य के एक दूसरे दिग्गज थे.
प्रदीप भट्टाचार्य नेकी अध्यक्षता
इससे पहले डॉ मुखर्जी ने कार्यक्रम में आये लोगों को अंगरेजी नववर्ष की शुभकामनाएं दी. कार्यक्रम की अध्यक्षता निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद प्रो प्रदीप भट्टाचार्य ने की. माैके पर डॉ सीआर लाहा, एके देबनाथ, जयंतो घोष, सत्यराय चौधरी, सुदिप्तो मुखर्जी माैजूद थे. 12 जनवरी तक चलनेवाले सम्मेलन में समेत विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. सम्मेलन में बांग्ला साहित्य के विभिन पहलुओं पर चर्चा की जायेगी.
समाज का दर्पण होता है साहित्य : द्रौपदी मुरमू
राज्यपाल द्रौपदी मुरमू ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. यह समाज की दशा-दिशा को दर्शाता है. साहित्य व समाज एक -दूसरे के अभिन्न अंग हैं. बांग्ला साहित्य समृद्ध है. किसी कवि ने कहा है कि जिस प्रकार गंगा में स्नान करने से लोग पवित्र हो जाते हैंं, उसी प्रकार कला साहित्य पढ़ने से पवित्रता आती है. चैतन्य महाप्रभु ने संस्कृति को नया आयाम दिया. विद्यापति का भी बांगला साहित्य पर प्रभाव रहा.
बंकिम चंद्र ने वंदेमातरम लिख कर संपूर्ण देश को देशभक्ति की ओर प्रेरित करने का काम किया. साहित्य ने बाल विवाह, डायन प्रथा समेत कई कुरीतियों पर प्रहार किया है.
आठ करोड़ से रांची में बनेगा रवींद्र भवन : रघुवर दास
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सम्मेलन में आठ करोड़ की लागत से रांची में रवींद्र भवन बनाने की घोषणा की. कहा कि साहित्य और संस्कृति में चोली -दामन का संबंध है. साहित्य संस्कृति से बांग्ला भाषियों का जो प्रेम रहा है, उसकी बड़ी वजह है देश के छोटे-बड़े शहरों में साहित्यिक मंदिर के रूप में रवींद्र भवन की स्थापना. रवींद्र भवन साहित्य और संगीत साधना के केंद्र रहे हैं. यहां कला साधना के उर्वर तत्व मिलते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि आज की पीढ़ी में युग के विकास के साथ चलने की ललक है. यही वजह है कि युवा पीढ़ी ने रवींद्र भवन की ओर निहारना कम कर दिया है. आज भी सांस्कृतिक साहित्यिक विरासत के रूप में जमशेदपुर, चाईबासा जैसे शहरों में रवींद्र भवन तो हैं, परंतु इनका पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा है. युग के विकास के साथ साहित्य मर्म भी कठिन होता जा रहा है. बंग्ला साहित्य ने भारतीय भाषाओं के साहित्य का नेतृत्व किया है.
बांग्ला साहित्य ने छायावाद, प्रगतिवाद और जनवाद की अगुवाई की है. मुझे लगता है कि बंगला साहित्य में ऐसा आकर्षण है, जो किसी और भाषाई साहित्य में नहीं है. इसके आकर्षण की मुख्य वजह है बंग्ला साहित्य की जीवंतता.
पूर्वी भारत को विकसित करने की जरूरत : सरयू
खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि बंग साहित्य देश के समृद्ध साहित्य में से एक है. कहावत है कि बंगाल आज जो सोचता है, कल पूरा देश सोचता है. बंगाल से जुड़े साहित्यकारों की लंबी कतार है. इन्होंने राजनीति, साहित्य, दर्शन को नया आयाम दिया है. पहले झारखंड, बिहार और बंगाल एक साथ थे. अलग होने के बाद से बंग साहित्य की गतिविधियों में कमी आ गयी. फिलहाल पूर्वी भारत में विकास की गति धीमी है. इसके लिए पूर्वी राज्यों का फेडरेशन बना कर विकास की गति को तेज करने की जरूरत है. इसका रास्ता बंगाल से निकल सकता है. मुझे उम्मीद है कि सभी राज्य मिल कर इस क्षेत्र के विकास में उचित योगदान करेंगे.
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