रांची : सुप्रीम कोर्ट में छठी जेपीएससी संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा को लेकर दायर स्पेशल लीव पिटीशन पर गुरुवार को भी सुनवाई हुई. जस्टिस अजय रस्तोगी व जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. लगातार तीन दिनों तक सुनवाई चलने के बाद गुरुवार को बहस पूरी कर ली गयी.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अगर हाइकोर्ट के फैसले को सही भी माना जाये, तो जेपीएससी को संशोधित परिणाम मेंस के मेरिट लिस्ट के आधार पर ही बनाना चाहिए, लेकिन जेपीएससी ने इसे फाइनल मेरिट लिस्ट के आधार पर तैयार किया और यह गलत है. सुनवाई के दौरान कुछ दस्तावेज भी पेश किये गये.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जेपीएससी की नियुक्ति में जब अनियमितता नहीं हुई है, तो संशोधित परिणाम कैसे जारी किया जा सकता है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि परिणाम के आधार पर उनकी नियुक्ति की गयी. ट्रेनिंग भी हो चुकी है. ऐसे में अब पद से हटाया जाना सही नहीं होगा. वहीं जेपीएससी की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने हाइकोर्ट के आदेश को सही करार देते हुए कहा कि संशोधित परिणाम नियमों के तहत जारी किया गया है.
विज्ञापन में शर्तों का स्पष्ट विवरण दिया गया है. वहीं पूरी प्रक्रिया को रद्द करने की मांग कर रहे प्रतिवादी दिलीप कु सिंह की अोर से अधिवक्ता सुभाशीष रसिक सोरेन ने पक्ष रखा. झारखंड सरकार ने 20 जुलाई को हलफनामा दाखिल कर कहा था कि संशोधित परिणाम जारी होने के बाद नौकरी से बाहर होनेवाले अभ्यर्थियों को समायोजित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि रिक्त पदों की संख्या 38 है.
इस पर सभी को समायोजित नहीं किया जा सकता है. प्रार्थी फैजान सरवर, वरुण व अन्य की ओर से एसएलपी दायर कर हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गयी है. हाइकोर्ट की एकल पीठ ने 326 अभ्यर्थियों की नियुक्ति को अमान्य घोषित कर दिया था. बाद में जेपीएससी ने संशोधित मेरिट लिस्ट जारी की थी, जिसमें पूर्व की मेरिट लिस्ट में शामिल लगभग 62 अभ्यर्थी बाहर हो गये थे.
Posted By: Sameer Oraon