पर्यावरण संरक्षण के लिए हो प्रभावी प्रावधान

सरयू राय सर्वविदित है कि झारखंड राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है़ ये संसाधन राज्य के विकास का आधार है़ं व्यवस्था के तंत्र इनके दोहन की नीति का अनुपालन जनहित और राज्यहित में करें तो राज्य में विकास की परिकल्पना साकार हो सकती है़ परंतु आधारभूत संरचनाओं के निर्माण, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं आर्थिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 22, 2016 1:30 AM
सरयू राय
सर्वविदित है कि झारखंड राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है़ ये संसाधन राज्य के विकास का आधार है़ं व्यवस्था के तंत्र इनके दोहन की नीति का अनुपालन जनहित और राज्यहित में करें तो राज्य में विकास की परिकल्पना साकार हो सकती है़ परंतु आधारभूत संरचनाओं के निर्माण, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के दौरान निर्धारित नीतियों एवं नियमों–परिनियमों का विवेकपूर्ण अनुपालन नहीं होने के कारण इनका प्रतिकूल प्रभाव प्रकृति, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी पर परिलक्षित हो रहा है़ जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं, धरती के सतह की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, आसमान कलुषित हो रहा है, भूगर्भीय संसाधन विनष्ट हो रहे है़ं.

इसका सर्वाधिक कुप्रभाव जनस्वास्थ्य पर पड़ रहा है़ इससे आंखें मूंदे रहना भविष्य के लिए घातक होगा़ जिन गतिविधियों का राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर वहन क्षमता से अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, वे गतिविधियां चाहे सार्वजनिक क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की, उन्हें नियंत्रित करना, नियंत्रण का उल्लंघन करने वालों पर कठोर कार्रवाई करना, इनके द्वारा हुए एवं हो रहे नुकसान की भरपाई करना तथा कराना और इसके बावजूद नहीं मानने वालों की गतिविधियों पर रोक लगाने की जरूरत है़


राज्य के आगामी वार्षिक बजट में समुचित प्रावधानों के माध्यम से इसकी शुरुआत की जा सकती है़ फिलहाल राज्य का वन एवं पर्यावरण विभाग तथा राज्य का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस संदर्भ में राज्य के नियंत्रक उपकरण के रूप में चिह्नित है, पर इन दोनों की भूमिका अप्रभावी है़ दोनों ही वस्तु स्थिति एवं अपने दायित्व के प्रति जाने अनजाने संवेदनशील, क्षमतावान और ईमानदार नहीं है़ जरूरत है कि राज्य के किसी एक विभाग या बोर्ड के भरोसे रहने के बजाय संबंधित सभी विभागों में इस संदर्भ में समुचित प्रावधान किये जाये, जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाये और इन विभागों की गतिविधियों के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ चुके, पड़ रहे तथा पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के लिये इन्हें सीधे जिम्मेदार ठहराया जाये और राज्य के बजट में इसके लिए समुचित वित्तीय, वैधानिक एवं दंडात्मक प्रावधान किये जाये. केंद्र और राज्य सरकार के कतिपय प्रतिष्ठान भी भूतल को, भूर्गभ को, नदियों को और आसमान को घोर प्रदूषित कर रहे हैं. पतरातू एवं तेनुघाट ताप बिजली घर तथा बोकारो स्टील, सीसीएल, बीसीसीएल,डीवीसी की ईकाइयां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है़ं राज्य और केंद्र के नियंत्रक संस्थान इन पर लगाम नहीं लगा पा रहे है़ं इनके द्वारा अबतक प्रकृति पर किये गये अमानवीय अत्याचार का आकलन कर इनके कारण हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए इन्हें विवश किया जाये. इन्हें न केवल नुकसान की भरपाई करने के लिए विवश किया जाये, अपितु दीर्घकालीन कार्य योजना बनाकर हो चुके नुकसान को चरणबद्ध दुरुस्त करने के लिए इन्हें निर्देशित किया जाये. इसके लिये इनकी क्षमता संवर्द्धन हेतु उपयुक्त शर्तों के अधीन बजटीय उपबंध किये जाये़

राज्य सरकार को आगामी बजट के माध्यम से इस दिशा में सार्थक प्रयत्न करना चाहिए. सरकार के कतिपय विभागों में कतर्व्यपरायणता के अभाव के कारण इनके कार्यक्रमों से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंच रहा है़ इनमें वन एवं पर्यावरण विभाग, खनन विभाग, उद्योग विभाग,जल संसाधन विभाग, परिवहन विभाग, पथ निर्माण विभाग, भवन निर्माण विभाग, नगर विकास विभाग, ऊर्जा विभाग आदि की गतिविधियां प्रमुख है़ं

उदाहरण स्वरूप लंबे समय से पतरातू ताप बिजली घर ने दामोदर की सहायक नदी नलकारी को और तेनुघाट विद्युत निगम ने तेनुघाट डैम को ही अपना ऐश पौंड बना लिया है़ इसी प्रकार सीसीएल की कदेला केलवाशरी ने चुटुआ नाला का और बीसीसीएल की मधुबन कोलवाशरी जमुनिया नदी का इस्तेमाल ऐश डिस्पोजल के लिए कर रहे है़ं डीवीसी के बोकारो व चंद्रपुरा थर्मल, बोकारो स्टील तथा सीसीएल–बीसीसीएल की अन्य कई इकाइयों में भी ऐसा ही हो रहा है़ पथ निर्माण विभाग ने सारंडा सघन वन क्षेत्र एवं अन्य वन क्षेत्रें में वन विभाग की मुरम सड़कों को जिस निर्ममता से चार गुना–पांच गुना चौड़ा कर उनका कालीकरण–पीसीसीकरण किया है़ उससे न केवल वहां का पर्यावरण प्रभावित हुआ है, पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. जैव विविधता को नुकसान पहुंचा है, बल्कि वन्य प्राणियों की गतिविधियों पर भी प्रतिकूल असर हुआ है़ वन्यप्राणियों का स्वाभाविक भ्रमण क्षेत्र अवरुद्ध हुआ है़ इतना ही नहीं पथ निर्माण विभाग ने इसके लिये नियमानुसार आवश्यक वन और पर्यावरण अनुमति भी नहीं लिया है़ आरक्षित वन क्षेत्रें में प्रकृति का यह नुकसान वन एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारियों की नाक के नीचे और उनकी पूरी जानकारी में हुआ है़ ऐसे नुकसान की भरपाई कौन करेगा?

भरपाई के लिए आवश्यक कार्य योजना लागू करने के लिए निधि का उपबंध कहां से होगा या इस नुकसान को यूं ही भगवान भरोसे छोड़ दिया जायेगा? इसके लिये जो भी जिम्मेदार हैं वे सरकारी तंत्र का हिस्सा हैं. अंतत: इसकी जिम्मेदारी सरकार की ही होगी़ सरकार को ही इसे ठीक करना होगा, पर सरकार के संबंधित विभागों के बजट में इसका कोई उपबंध नहीं है़ (जारी ) त
(लेखक झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री हैं और लेख में दिये गये सुझाव उन्होंने मुख्यमंत्री को भी भेजा है)

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