मछली की पांच नयी प्रजातियों का उत्पादन शुरू
रांची: मछली उत्पादन के क्षेत्र में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में राज्य सरकार ने प्रजाति बदलने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. लिये गये निर्णयों पर अमल भी शुरू कर दिया गया है. झारखंड के तालाबों में पहली बार मछली की पांच नयी प्रजातियों का उत्पादन शुरू किया गया है. इसमें कवई, नीलो टीका, […]
रांची: मछली उत्पादन के क्षेत्र में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में राज्य सरकार ने प्रजाति बदलने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. लिये गये निर्णयों पर अमल भी शुरू कर दिया गया है. झारखंड के तालाबों में पहली बार मछली की पांच नयी प्रजातियों का उत्पादन शुरू किया गया है. इसमें कवई, नीलो टीका, अमूर कॉर्प, जयंती रोहू व कतला की उन्नत नस्ल को शामिल किया गया है.
ये मछलियां आहार आधारित हैं. कवई मछली काफी महंगी होती है. बाजार में इसकी कीमत लगभग 280 से लेकर 400 रुपये तक है. यह पश्चिम बंगाल, उत्तर बिहार के लोगों का पसंदीदा भोजन है. वहीं नीलो टीका मछली 110 रुपये से लेकर 150 रुपये के बीच बेची जाती है. मिली जानकारी के अनुसार राज्य के माैसमी तालाबों में संचित जल को देखते हुए प्रजाति बदल कर उत्पादन बढ़ाने का सरकार ने निर्णय लिया है. उक्त प्रजाति की मछलियों की वृद्धि कम समय में तेजी से होती है. वे चार से सात माह के अंदर 400 ग्राम से लेकर एक किलोग्राम वजन की हो जाती है. एक एकड़ के तालाब में डेढ़ टन तक अमूर कॉर्प मछली का उत्पादन संभव है. चालू वित्तीय वर्ष के 1.20 लाख मीट्रिक टन वार्षिक लक्ष्य हासिल करने के लिए 147 करोड़ मछली जीरा तैयार किया गया था. अगले साल (2016-2017) के लिए 225 करोड़ जीरा तैयार किया जा रहा है.
देसी प्रजाति की मछलियों की वृद्धि में लगता है समय: कतला, रोहू, मृगल, सिंघी आदि देसी प्रजाति की मछलियों की वृद्धि में अधिक समय लगता है. राज्य के मत्स्य निदशेक राजीव कुमार ने बताया कि देसी प्रजाति की मछलियाें की वृद्धि दर कम थी. उनका विकास तेजी से नहीं हो पा रहा था. माैसमी तालाब है. अधिकतर तालाब गरमी में सूख जाते हैं. वर्ष 2015 में बारिश भी कम हुई है. तालाबों में कम पानी संचित है. इसे देखते हुए ही नयी प्रजाति का उत्पादन शुरू किया गया है. वर्ष 2015 से ही नयी प्रजाति के उत्पादन पर कार्रवाई शुरू कर दी गयी थी.
क्या मिलता है मछली में
मछली में 55 प्रतिशत प्रोटीन मिलता है. अोमेगा फैटी एसिड, विटामिन-ए, विटामिन-डी का यह प्राकृतिक स्रोत है तथा ये इसमें प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं. इसमें व्हाइट कालेजन फाइबर पाया जाता है, इसके साथ ही मछली सुपाच्य भी है.
नयी प्रजाति-कम समय में तेजी से वृद्धि
कवई 200-400 ग्राम
नीलो टीका 300-500 ग्राम
अमूर कॉर्प एक किलोग्राम तक
जयंती रोहू एक किलोग्राम तक
कतला एक किलोग्राम तक