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किस दिशा में जा रहा है समाज!
सफायर इंटरनेशनल स्कूल में छात्र विनय की हत्या ने समाज में एक नयी बहस छेड़ दी है. इस हत्या से समाज के लोग काफी मर्माहत हैं. इस हत्या ने एक सवाल खड़ा किया है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है. जब शिक्षक ही भक्षक बनने लगे हैं, तो हम किस पर विश्वास […]
सफायर इंटरनेशनल स्कूल में छात्र विनय की हत्या ने समाज में एक नयी बहस छेड़ दी है. इस हत्या से समाज के लोग काफी मर्माहत हैं. इस हत्या ने एक सवाल खड़ा किया है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है. जब शिक्षक ही भक्षक बनने लगे हैं, तो हम किस पर विश्वास करें. हमने इस विषय पर शिक्षाविदों, अभिभावकों और मनोवैज्ञानिक से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि आखिर किन कारणों से ऐसी वारदातें हो रही हैं और इसके रोकथाम के क्या उपाय हैं.
बदल रही है बच्चों की मानसिकता
हमारा समाज गलत दिशा में जा रहा है़ इस कारण बच्चों की मानसिकता बदल रही है़ वह आधुनिक तकनीक का गलत उपयोग कर रहे है़ माेबाइल में जैसा चाहें, वैसा साइट देख रहे है़
अभिभावक अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से निभाये़ बच्चों को सामाजिक बनाने की शुरूआत घर से करें. उनमें संस्कार भरें. अगर कोई भी परेशानी होती है, ताे काउंसलर के पास जाये़ स्कूल प्रबंधन काउंसलिंग की व्यवस्था करे़ं विशेषज्ञ बच्चों को सही-गलत समझाये़ भारतीय संस्कृति में अश्लीलता को परदे में रखा गया है. बच्चों को इससे दूर रखा जाता है.
उम्र के साथ बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास होता है. एेसे में अभिभावकों की जिम्मेवारी बनती है कि उन्हें बढ़ती उम्र के साथ सही-गलत की अवश्य जानकारी दें. उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें, ताकि वह आपसे अपनी हर समस्या शेयर कर सके. विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों की समय-समय पर काउंसलिंग जरूरी है. डॉ शाहिद हसन, मनोविज्ञानी
कम उम्र में बच्चों पर विशेष ध्यान जरूरी
आठ से 10 साल की उम्र में प्यार व इश्क नहीं होता है. इसको आकर्षण व घनिष्ठता कह सकते हैं. इस उम्र में बच्चे का मन कच्चा होता है. जिससे उसका मन मिलता है, उसके प्रति आकर्षण बढ़ जाता है. कम उम्र के बच्चों में अच्छे व बुरे की समझ नहीं होती है, इसलिए उस पर विशेष ध्यान देना चाहिए. तकनीक के युग में बच्चे तो कम उम्र में ही बड़े हो रहे हैं, इसलिए मोबाइल व पैसा देने से अभिभावक बचें. डॉ अशोक प्रसाद, मनोचिकित्सक, रिम्स
समाज का नैतिक पतन हुआ है
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बदलते परिवेश में समाज का नैतिक पतन हुआ है. इसके लिए परिवार भी जिम्मेवार हैं. इस भौतिक युग में परिवार अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं.
बच्चे टीवी/मोबाइल के संपर्क में ज्यादा रहने लगे हैं. वैज्ञानिक युग में ज्ञान का विस्तार होना जरूरी है, लेकिन परिवार व शिक्षक की जिम्मेवारी बनती है कि बच्चे किस तरह के ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, इसका ध्यान रखें. अभिभावक अपने बच्चे से कम उम्र में ही ज्यादा से ज्यादा उम्मीद रखने लगे हैं, जिससे वे दिशाहीन होने लगे हैं. इस बारे में हम सभी को सोचना होगा.
डॉ टुलू सरकार, प्रोफेसर, रांची विवि
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