रांची : जेपीएससी की पांचवीं सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम को लेकर जारी विवाद के बीच सरकार ने बुधवार को विधानसभा में सर्वदलीय कमेटी बनाने की घोषणा की़ इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों को शािमल िकया गया है. कमेटी की अध्यक्षता संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय करेंगे. कमेटी एक माह के अंदर सरकार को िरपोर्ट देगी. विधानसभा में खाद्य आपूर्ति विभाग की अनुदान मांग पर चर्चा के दौरान सीएम रघुवर दास ने कहा : जेपीएससी व एसएससी के मामले को सत्ता पक्ष व विपक्ष के विधायक उठ रहे हैं. नियुक्ति प्रक्रिया पिछली सरकार की नियमावली के आधार पर शुरू हुई़ पिछली सरकार की गलतियों में सुधार को लेकर सरकार सर्वदलीय कमेटी बनायेगी़ सरकार कमेटी के सुझाव पर काम करेगी़.
राज्यपाल को दी जानकारी
उधर, पांचवीं सिविल सेवा परीक्षा के रिजल्ट को लेकर विपक्ष ने बुधवार को राजभवन मार्च किया़ राज्यपाल से मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया़ नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने बताया : पूरे विषय की जानकारी राज्यपाल को दी गयी है. उन्हें बताया गया है कि पांचवीं जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की नियुक्ति में गड़बड़ी हुई है. इसकी जांच सीबीआइ या न्यायिक आयोग से करायी जाये.
सदन में चर्चा के बाद वोटिंग कराये सरकार
उन्होंने कहा : सत्ता पक्ष दबाव बना कर सदन में विपक्ष को चुप कराना चाहता है. लेकिन, ऐसा नहीं होनेवाला है. सरकार सदन में चर्चा करना चाहती है. इस पर विपक्ष भी सहमत है, लेकिन चर्चा के बाद वोटिंग होनी चाहिए. इससे सरकार भाग रही है. सरकार अगर मांगें नहीं मानती, तो पूरा विपक्ष बैठ कर आगे की रणनीति बनायेगा़.
न्याय नहीं मिला, तो जनता के पास जायेंगे
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सह विधायक सुखदेव भगत ने कहा : महामहिम से हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है. परीक्षा में धांधली हुई है. एक ही कोचिंग सेंटर से कई विद्यार्थी चुने गये हैं. आरक्षण के नियमों का पालन नहीं हुआ है. जेपीएससी भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है. झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने कहा : विपक्ष ने लड़ाई को एक पायदान ऊपर पहुंचाया है. पहले हम सदन में विरोध कर रहे थे, अब लड़ाई को राजभवन तक लेकर आ गये हैं. यहां से भी न्याय नहीं मिला, तो हम जनता के पास जायेंगे.
सदन में आजसू विधायक ने उठाया मामला
आजसू विधायक रामचंद्र सहिस ने सदन में कहा कि जेपीएससी की विसंगति को लेकर विपक्ष सदन बाधित कर रहा है़ झारखंड राज्य चयन आयोग की नियुक्ति के लिए निकाले गये विज्ञापन में भी विसंगति है. सहायक कारापाल की नियुक्त में से क्षेत्रीय भाषा की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है. पंचायत सचिव की नियुक्ति में स्थानीय निवास पत्र नहीं मांगा जा रहा है. इससे झारखंड के शिक्षित नौजवानों का हक मारा जायेगा.
कौन-कौन गये राजभवन
हेमंत सोरेन, सुखदेव भगत, प्रदीप यादव, आलमगीर आलम, स्टीफन मरांडी, मनोज यादव, निर्मला देवी, गीता कोड़ा, जोबा मांझी, इरफान अंसारी, बादल, अनिल मुरमू, नलिन सोरेन, अरुप चटर्जी, सीता सोरेन, योगेंद्र महतो, रवींद्र महतो, चंपई सोरेन, जय प्रकाश भाई पटेल, अमित महतो, जगरनाथ महतो, कुणाल षाड़ंगी, दीपक बिरुआ, शशिभूषण सामड, प्रकाश राम,निरल पूर्ति, विदेश सिंह, विनोद पांडेय, सुप्रीयो भट्टाचार्या आदि.
…इधर, विधानसभा में : वॉक-आउट, बिना विपक्ष के चला सदन
विपक्ष के सभी विधायकों ने सदन की कार्यवाही का वाॅक-आउट किया
सुबह में कार्यवाही शुरू होते ही झामुमो और कांग्रेस के विधायक वेल में घुस गये, नारेबाजी की़ स्पीकर ने कार्यवाही दिन के 12़10 बजे तक के लिए स्थगित कर दी
सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होते ही हंगामा, नेता प्रतिपक्ष ने रिजल्ट
में गड़बड़ी का आरोप लगाया
बाद में विपक्ष के विधायकों ने कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया़ सदन बिना विपक्ष के चला
जेपीएससी: रिजल्ट का विरोध, सड़क से सदन तक हो रहा है हंगामा, 15 साल में भी नहीं बनी िनयमावली
रांची: जेपीएससी में हुई बहाली की जांच की मांग काे लेकर चार दिनाें से झारखंड विधानसभा नहीं चल रही है. विपक्ष सीबीआइ या न्यायिक जांच कराने की मांग पर अड़ा हुआ है. बुधवार काे सदन बिना विपक्ष के चला. उधर, विपक्षी विधायक राज्यपाल से मिले आैर बहाली में गड़बड़ी का आराेप लगाते हुए जांच की मांग की.
विपक्ष का यह आराेप है कि बहाली में (सामान्य वर्ग व अनारक्षित काेटा में) बड़ी संख्या में राज्य के बाहर के विद्यार्थियों का चयन हुआ है. इसमें झारखंड में रहनेवालों (अनारक्षित) के हिताें की अनदेखी की गयी है. इधर, सरकार आैर कानून के ज्ञाता का कहना है कि यह राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है. इसमें भारतीय संविधान के मुताबिक देश के दूसरे राज्य के उम्मीदवार परीक्षा दे सकते हैं, उन्हें कानूनन राेका नहीं जा सकता है.
देश के अन्य राज्याें में भी ऐसा ही हाेता है. यहां तक कि झारखंड के भी छात्र अन्य राज्याें में इसी प्रावधान के तहत ऐसी परीक्षा में शामिल हाेते हैं आैर सफल होकर नाैकरी भी कर रहे हैं.झारखंड में सारा विवाद अनारक्षित पदाें पर दूसरे राज्याें के उम्मीदवाराें की बड़ी संख्या में हुई नियुक्ति पर है. अारक्षित काेटा पर काेई विवाद नहीं है. झारखंड में 272 पदाें के एवज में 269 पदाें का रिजल्ट निकला. इसमें आरक्षण के प्रावधान के तहत 105 पद (एसटी-55, एससी-23, बीसी वन-19, बीसी टू-08)आरक्षित थे. कुल 164 पद अनारक्षित थे. इन 164 पदाें में 96 उम्मीदवार (चयनित) झारखंड तथा 68 अन्य राज्याें के हैं. चुने गये इन 68 उम्मीदवारों में बिहार के 62 हैं.
आंदाेलनरत छात्राें आैर विपक्षी विधायकाें का आराेप है कि इतनी बड़ी संख्या में (लगभग 42 फीसदी) दूसरे राज्याें के छात्र इसलिए चुने गये, क्याेंकि उन्हें राेकने के लिए राज्य में काेई नियमावली नहीं बनायी गयी है. राज्य बने 15 साल से ज्यादा हाे गये, लेकिन किसी भी सरकार ने इस संबंध में ऐसी नियमावली नहीं बनायी, जिससे झारखंड के छात्राें का हित हाे. किसी भी सरकार के लिए भी काेई ऐसी नियमावली बनाना आसान नहीं था, क्याेंकि भारतीय संविधान किसी काे भी देश में कहीं भी नाैकरी करने की आजादी देता है. हां कुछ राज्याें ने भाषा की आड़ में अपने राज्य के छात्राें के हित में कुछ रास्ता निकाला है.
जेपीएससी ने अपनी स्थिति स्पष्ट की
रांची: झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने पांचवीं सिविल सेवा परीक्षा में आरक्षण सहित गड़बड़ी के लगे आरोप पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है. आयोग ने कहा है कि पांच दिसंबर 2013 को आयोजित पीटी में कुल 73,288 उम्मीदवार (35,589 अनारक्षित, 17,647 एसटी, 6,895 एससी व 6,900 बीसी वन तथा 6,257 बीसी टू) शामिल हुए थे. पीटी से प्रत्येक कोटि के लिए रिक्तियों से 13 गुणा अभ्यर्थियों का चयन मुख्य परीक्षा के लिए किया गया था. 25 मई 2015 को आयोजित मुख्य परीक्षा में कुल 824 उम्मीदवार (504 अनारक्षित, 165 एसटी, 72 एससी, 58 वीसी वन तथा 24 बीसी टू )सफल हुए. नि:शक्त के लिए आरक्षण के मामले में अधियाचना के अनुरूप अभ्यर्थी उपलब्ध नहीं होने के कारण आयोग द्वारा अनुशंसा नहीं की गयी. ये पद प्रशासी विभाग को वापस भेजा जायेगा, जो अगली भरती में शामिल होंगे. कुल मिलाकर 105 (एसटी 55, एससी 23, बीसी वन 19 तथा बीसी टू आठ ) अभ्यर्थियों का चयन आरक्षित कोटि में किया गया है, जो झारखंड के निवासी के लिए ही अनुमान्य है. इसके अतिरिक्त आरक्षित कोटि के लिए कुल 47 अभ्यर्थी (एसटी 9, एससी 5, बीसी वन 13 तथा बीसी टू 20) मेधा के आधार पर अनारक्षित वर्ग में चयनति हुए हैं. ये भी झारखंड के ही हैं. अनारक्षित कोटि से चयनित 70 अभ्यर्थी इस राज्य के निवासी हैं. इस प्रकार कुल अनुशंसिक 269 के विरूद्ध 201 अभ्यर्थी झारखंड के निवासी हैं. आयोग ने कहा है कि राजपत्रित पदों के लिए भारत का कोई भी नागरिक किसी राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल हो सकता है.
झारखंड राज्य के उम्मीदवार भी अन्य राज्यों की परीक्षाअों में शामिल होते हैं अौर सफल होने पर चयनित भी होते हैं. उच्च न्यायालय में दायर पीके सिद्धार्थ बनाम झारखंड राज्य में अोएमआर पत्रक के मामले में उठाये गये बिंदु पर लोक सेवा आयोग द्वारा अपना पक्ष रखा गया अौर लोकसेवा अायोग से परीक्षाफल के प्रकाशन के संबंध में मौखिक निर्देश यह प्राप्त हुआ कि परीक्षाफल के प्रकाशन में कोई रोक नहीं है. जहां तक एक ही कोचिंग में पढ़े हुए अभ्यर्थियों के चयन का संबंध है,तो ऐसी सूचना का कोई आधार नहीं है.
एंथ्रोपोलॉजी विषय के अधिकतर उम्मीदवारों के चयन का संबंध है, इसे एक पत्र के रूप में रखते हुए कुल 71 अभ्यर्थी चयनित हुए हैं, जबकि श्रम एवं समाज कल्याण विषय से कुल 158, इतिहास से 53. भूगोल से 57, लोक प्रशासन ने 31 तथा राजनीति विज्ञान से छह अभ्यर्थियों का चयन हुआ है. श्रम एवं समाज कल्याण विषय में मुख्य परीक्षा में 2,414 उम्मीदवार में अंतिम रूप से 156 उम्मीदवार का चयन हुआ. इनमें एंथ्रोपोलॉजी में 443 में 71, भूगोल में 829 में 57, इतिहास में 1,233 में 53, लोक प्रशासन में 796 में 31, राजनीति विज्ञान में 132 में छह उम्मीदवारों का चयन हुआ है.
स्थानीय भाषा का एक पत्र अनिवार्य बनाया जा सकता है
भारतीय संविधान समानता का अधिकार प्रदान करता है. यह किसी में विभेद नहीं करता है. सिविल सेवा की परीक्षाअों में अनारक्षित कोटे में देश के दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को शामिल होने से रोका नहीं जा सकता है. उन्हें डिबार भी नहीं किया जा सकता है.स्थानीय भाषा के एक पत्र को अनिवार्य बना कर भी बाहरी उम्मीदवारों के चयन की संभावना को कम किया जा सकता है. सरकार सिर्फ स्थानीय के लिए सीटें अधिक या कम कर सकती हैं. झारखंड लोक सेवा आयोग ने पांचवीं संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा के लिए जो विज्ञापन जारी किया था, उसमें भारत के लोगों से आवेदन मांगा गया था. नियुक्ति प्रक्रिया के दाैरान उसमें कोई बदलाव भी नहीं किया जा सकता है. आयोग ने रिजल्ट जारी कर दिया है, लेकिन नियुक्ति नहीं हुई है. वैसी परिस्थिति में सरकार चाहे, तो रिजल्ट रद्द भी कर सकती है. स्थानीय नीति बनाने के बाद ही स्थानीय उम्मीदवारों के हितों को सुरक्षित किया जा सकता है. स्थानीय नीति के बाद सरकार को नियोजन नीति बनाने की भी जरूरत पड़ेगी.
आरएस मजूमदार, पूर्व महाधिवक्ता व वरीय अधिवक्ता झारखंड हाइकोर्ट