सड़क दुर्घटनाओं से 13 साल में 54,321 लोगों की मौत
रांची: झारखंड सहित देश भर में वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. जिस रफ्तार से वाहनों में वृद्धि हुई है, उसी रफ्तार से सड़क दुर्घटनाओं में भी इजाफा हुआ है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2014 में देश भर में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 1.69 लाख लोगों की […]
रांची: झारखंड सहित देश भर में वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. जिस रफ्तार से वाहनों में वृद्धि हुई है, उसी रफ्तार से सड़क दुर्घटनाओं में भी इजाफा हुआ है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2014 में देश भर में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 1.69 लाख लोगों की मौत हुई है, वहीं 4.77 लाख लोग घायल हुए हैं. चूंकि पुलिस के पास सड़क दुर्घटनाओं में घायल सभी लोगों के मामले नहीं आते, इसलिए घायलों की संख्या में अधिक हो सकती है. इधर, झारखंड में वर्ष 2001 से 2013 तक 54,321 लोग सड़क हादसे में मारे गये हैं.
सड़क दुर्घटना में अपनों को खोनेवाले किसी परिवार या व्यक्ति की पीड़ा समझी जा सकती है. किसी युवा की असामयिक मौत से हम प्रतिभा और महत्वपूर्ण मानव संसाधन दोनों खोते हैं. ऐसी स्थिति में देश भर में सड़क सुरक्षा तथा सुरक्षित यात्रा को लेकर कई तरह की पहल हो रही है. केंद्र सरकार भी इस महत्वपूर्ण मसले की गंभीरता को समझ रही है. रोड ट्रांसपोर्ट एंड सेफ्टी बिल-2015 इसी का परिणाम है, जिसे संसद के बजट सत्र में लाया जा सकता है. जस्टिस के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित सर्वोच्च न्यायालय की रोड सेफ्टी कमेटी इस क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका अदा कर रही है. सरकार को बेहतर निर्देश जारी करने के साथ-साथ इस मामले की मॉनिटरिंग भी कर रही है.
इधर, रांची के रहनेवाले युवक राजेश दास ने सड़क दुर्घटना रोकने के लिए एक अभियान शुरू किया है. कुछ वर्ष पहले सड़क दुर्घटना में अपने छोटे भाई को खोने के बाद श्री दास के मन में ऐसे अभियान की बात अायी. इसके बाद सड़क सुरक्षा पर जागरूकता के लिए उन्होंने इंडिया विल नॉट डाइ अॉन रोड्स कैंपेन शुरू किया है. इसके तहत देश भर में सड़क सुरक्षा को लेकर एडवोकेसी ग्रुप बन रहे हैं.
ऐसे लोगों व परिवार का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है, जिन्होंने सड़क दुर्घटना में अपनों को खोया है. अभियान के तहत गत 27 जनवरी को झारखंड आये सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को एक ज्ञापन दिया गया. इससे पहले रोड ट्रांसपोर्ट एंड सेफ्टी बिल के संदर्भ में सांसदों का ध्यान 10 बिंदुअों की अोर दिलाया गया है. अभी नोएडा में लगे अॉटो एक्सपो-2016 में भी श्री दास ने विभिन्न अॉटो कंपनियों को सुझाव दिया था कि वे सड़क सुरक्षा को अपने सीएसआर का हिस्सा बना सकते हैं. यहां कुछ महत्वपूर्ण सुझावों का जिक्र किया जा रहा है, जो इंडिया विल नॉट डाइ अॉन रोड्स कैंपेन के तहत दिये गये हैं.
वाहन कंपनियों को सीएसआर के तहत सुझाव
व्यवसायिक लिहाज से बेहतर चुनिंदा पांच-10 शहरों में रोड सेफ्टी के नये प्रोजेक्ट शुरू करें.
अपने डिस्ट्रिब्यूटर को उनके टारगेट क्षेत्र में स्थित कम से कम 10 स्कूलों में रोड सेफ्टी क्लब शुरू करने को कहेंं, जहां साल भर एक तय अंतराल पर सड़क सुरक्षा संबंधी सत्र अायोजित किये जायें.
व्यावसायिक प्रचार के दौरान अपने ब्रांड एंबेसेडर से सड़क सुरक्षा संबंधी संदेश भी दिलवाएं.
अपने वाहन तथा यात्रियों की सुरक्षा के लिए वाहन की डिजाइनिंग लगातार बेहतर करना.
चार पहिया वाहनों की स्टेयरिंग के बीचों-बीच सड़क सुरक्षा संबंधी लोगो लगाना, जिससे चालक की सतर्कता बनी रहे.
बेचे जानेवाले वाहनों के साथ चालकों के लिए क्या करें तथा क्या न करें संबंधी हैंडबुक अनिवार्य रूप से दिये जायें.
टोल फ्री कोई नंबर उपलब्ध हो, जो काउंसेलिंग, सड़क सुरक्षा संबंधी नियमों की जानकारी तथा सड़क दुर्घटना में घायलों व उनके परिवार को जरूरी तकनीकी व अन्य सहायता के बारे में बता सके.
मोबाइल वैन के जरिये राष्ट्रीय उच्च पथों के ठहराव वाले ठिकानों पर सड़क सुरक्षा संबंधी जागरूकता व प्रचार-प्रसार किया जाये.
सड़क सुरक्षा के लिए मैराथन दौड़ तथा फिल्मों के प्रीमियर जैसे कार्यक्रम आयोजित किये जायें
जन प्रतिनिधियों काे िदलाया गया ध्यान
दोपहिया वाहनों की स्पीड लिमिट निर्माता कंपनियां कम (50-60 किमी प्रति घंटा) रखें. आंकड़े के अनुसार सड़क दुर्घटना में 26.4 फीसदी मरनेवाले दोपहिया वाहन चला रहे होते हैं. इनमें युवाअों की संख्या अधिक होती है.
हमें इस बात पर भी चर्चा करनी चाहिए कि क्यों न हर माह के किसी एक तारीख को नेशनल स्लो डाउन डे घोषित किया जाये. इससे लोगों में कम से कम एक दिन गाड़ी आराम से व कम स्पीड पर चलाने संबंधी जागरूकता आयेगी.
वाहन निर्माता, टायर निर्माता, हार्ड ड्रिंक निर्माता तथा टोल मैनेजमेंट कंपनियों को अपने सीएसआर के तहत सरकार की सहायता के लिए रोड सेफ्टी प्रोजेक्ट चलाने के लिए प्रेरित किया जाये.
सड़क दुर्घटना में घायल/भुक्तभोगी, खासकर गरीबों को सरकार कम से कम 50 हजार की सहायता उसके घर जाकर पहुंचाये.
सड़क दुर्घटना में मोटर ह्वेकिल एक्ट-1988 के तहत सेटलमेंट की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है. कई मामले में तो इस दौरान भुक्तभोगी या उसके परिवार के लोगों का निधन भी हो जाता है. इसका ट्रायल प्राथमिकता के आधार पर करना सुनिश्चित किया जाये.
हेलमेट, सीट बेल्ट, ड्राइविंग लाइसेंस के कानून में जीरो टोलरेंस रखा जाये. सख्ती से ही दुर्घटना व मौत कम किये जा सकते हैं.
स्कूली पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा व यातायात नियमों संबंधी चैप्टर (पाठ) अनिवार्य किये जायें.