रांची: विशु नंदी की उम्र लगभग 85 वर्ष है. खुद अविवाहित विशु चार बहनों व दो भाइयों में पांचवें नंबर पर हैं. तीन बहनों व एक भाई के बाद. गत 50 वर्षो से रांची से नाता रखनेवाले व करीब 40 वर्षो से यहीं रह रहे विशु दा ने अब रांची छोड़ने का फैसला किया है. किसी गुस्से, क्षोभ, असंतुष्टि या गम के कारण नहीं, अपनी इच्छा से. दरअसल यह फैसला सांझ को किसी पक्षी के अपने घोंसले की ओर उड़ चलने जैसा है. विशु कोलकाता से रांची आये थे. अब रांची से कोलकाता जा रहे हैं. अपने परिवार के करीब. वह अकेले अपने देस नहीं जा रहे, बल्कि उनके साथ एक पूरी विरासत है. झारखंड की दुर्लभ प्राकृतिक छटा व यहां के लोगों की सादगी उनके कैमरे में कैद, उनके साथ रहेंगे. झारखंड में गुजरे वर्षो का इतिहास, घटनाएं व इनके चित्र भी वह अपने साथ ले जायेंगे. वहीं हमारे साथ होंगी विशु दा की यादें.
जिज्ञासा होगी कि यह विशु नंदी हैं कौन? सीधा जवाब तो यह होगा कि वह एक फोटोग्राफर (छायाकार) हैं. रांची व झारखंड में अपने पेशे के माहिर शख्स. पर विशु दा ने हाड़-मांस की वैसी कई शख्सियतों का सान्निध्य पाया है, जिन्हें दुनिया महान व मशहूर कहती है, पूजा करती है. सबके नाम सुन कर किसी भी आम इनसान को उनसे रस्क हो सकता है. विशु दा ने जिन्हें बचपन में देखा, बड़े होने पर जिनकी तसवीरें लीं, जिनके साथ वक्त बिताया, उनमें महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, सुभाषचंद्र बोस, परमहंस योगानंद व जयप्रकाश नारायण से लेकर मोरारजी देसाई, मदर तेरेसा व इंदिरा गांधी जैसी विभूतियां शामिल हैं. वहीं किशोर कुमार, शर्मिला टैगोर, उत्तम कुमार, आशा भोंसले, एसडी बर्मन, राहुल देव बर्मन, ऋषि कपूर, बप्पी लाहिड़ी व भूपेन हजारिका जैसे संगीतकार, गायक व सिने कलाकारों के भी वह करीब रहे. किशोर दा से तो उनकी कई मुलाकात है. विशु दा ने उनकी एक तसवीर भी खींची थी, जो खुद किशोर दा को बहुत पसंद थी. बंगला फिल्म लुको चोरी में किशोर कुमार के गाये एक गीत में भी विशु दा का जिक्र है. दरअसल गीतकार गौरी प्रसन्न मजूमदार ने विशु दा के अल्हड़पन के लिए बस यूं ही तुकबंदी वाले अंदाज में लिख मारा था. इसे उस फिल्म में ले लिया गया था. गीत का अंतरा था..ओपड़ार विशु नंदी, दिन राते आटे फंदी …
विशु दा का जन्म अविभाजित बंगाल के जसोर में 12 अप्रैल 1929 को हुआ. पिता अक्षय कुमार नंदी व माता सुशीला देवी दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे. स्वतंत्रता सेनानी व महान संत श्री अरविंद से भी उनके संबंध थे. माता एक पत्रिका भी निकालती थीं- मातृ मंदिर. बाद में पिता कोलकाता चले आये. विशु दा का बचपन कोलकाता में ही बीता. वर्ष 1951 में वह पहली बार रांची आये. झारखंड की प्राकृतिक छटा ही इन्हें यहां खींच लायी थी. खूबसूरत धरा, पेड़, पहाड़, जंगल तथा वन्य प्राणियों के इसी आकर्षण ने विशु दा को झारखंड में ही बसने पर मजबूर कर दिया. अपनी छोटी बहन को लेकर वर्ष 1974 में वह स्थायी रूप से रांची चले आये. एक मकान किराये में लिया व रहने लगे. इसके बाद तो घूमना ही उनकी फितरत रही. इस दौरान उन्होंने चर्च रोड में एक स्टूडियो (बाद में वर्ष 1988 में थड़पखना में) खोल ली. शनिवार-रविवार को स्टूडियो बंद कर बेतला व नेतरहाट चल देते थे. वहां की प्राकृतिक सुंदरता तथा वन्य प्राणियों पर विशु दा के कैमरे ने अनगिनत बार फोकस किया है. अब तक करीब 50 बार वह बेतला, नेतरहाट जा चुके हैं. इसके अलावा मैकलुस्कीगंज व दलमा सहित झारखंड के हर इलाके में वह घूमते रहे हैं. देश के कोने-कोने का भी भ्रमण हो चुका है. दो बार अमेरिका-यूरोप भी गये.
बीच में मुंबइया फिल्मों में फोटोग्राफर बनने के लिए सोचा. संभवत: 1962 की बात है, वह मुंबई चले गये. साथ में थी आकाशवाणी, कोलकाता के निदेशक की हेमंत दा के नाम लिखी सिफारिशी चिट्ठी. चिट्ठी लेकर विशु दा मुंबई (खार) में हेमंत दा से मिले. एक बार हेमंत विशु दा को फिल्मीस्तान ले गये. हिंदी फिल्म दुर्गेश नंदिनी पर काम चल रहा था. यहीं विशु दा ने राहुल देव बर्मन को पहली बार देखा. तब राहुल बच्चे थे. स्टूडियो में घुसते ही राहुल ने हेमंत दा का चरण स्पर्श किया. करीब तीन वर्ष गुजारने के बाद एक दिन जब विशु को यह बताया गया कि कम से कम आठ वर्ष मुंबई में संघर्ष करना होगा. इसके बाद ही फोटोग्राफी नहीं, कैमरा छूने की इजाजत मिलेगी. संघर्ष की ऐसी कठिन राह की उम्मीद विशु दा को नहीं थी. उन्होंने कोलकाता लौटने का फैसला किया, पर फिल्मी दुनिया व फिल्मी कलाकारों का आकर्षण कम नहीं हुआ.
इनसे जुड़ी कई यादें हैं विशु दा के पास. एक बार कोलकाता में ग्रामोफोन की एक मशहूर दुकान पर सचिन देव बर्मन भी पहुंचे. विशु दा से कहा कि आज मछली मारने चला जाये. सब लोग एक खुली कार में कोलकाता शहर से 30 किमी दूर डायमंड हार्बर पहुंचे. वहां दिन भर मछली मारी. विशु दा ने यह खुलासा भी कर दिया कि एक भी मछली पकड़ी नहीं गयी थी. लौटते वक्त रात हो गयी थी. करीब आठ बज रहे थे. रास्ते में ही गाड़ी पंक्चर हो गयी. ड्राइवर ने टायर खोली व उसे ठीक कराने शहर ले गया. इधर, खुली कार की सीट खोल कर जमीन पर डाल दी गयी. दोनों वहीं लेट गये और बर्मन दा ने करीब दो घंटे तक हिंदी-बांग्ला गीत नन स्टॉप गाया. वह चांदनी रात व एसडी बर्मन का साथ बिशु दा को आज तक याद है. एसडी बर्मन की लगभग सभी तसवीरों में वह धोती-कुर्ता पहने नजर आते हैं, पर बर्मन दा की मछली मार तसवीर, जो विशु दा ने खींची है, उसमें दादा जिंस नुमा पैंट व टी-शर्ट में हैं. विशु दा ने इस तसवीर को अपनी आत्मकथा तीन थेके तेरासी (तीन से 83 तक) में ही सार्वजनिक करने का सोचा है. यह किताब जनवरी के अंत तक प्रकाशित हो जायेगी. तब उनके बारे में कई और अनकही, अनजानी बातें लोग जान सकेंगे. (बातचीत पर आधारित)