रांची: इस साल माननीयों की परेशानियां बढ़ी. किसी को सजा हुई, तो कुछ के घर छापे भी पड़े. इसके बावजूद कुछ की किस्मत चमकी और मंत्री बन बैठे. कोई आवाज का नमूना देने से करता रहा है, तो कोई भागा फिर रहा है. कुछ लोग चपरासी से अफसर बन गये. जांच शुरू हुई, पर चपरासी से अफसर बनने का राज फाश नहीं हुआ. वर्ष 2013 सीबीआइ बनाम माननीयों के लिए याद किया जायेगा. करीब 17 साल बाद एक बड़े नेता को चारा घोटाले में सजा सुनायी गयी.
हॉर्स ट्रेडिंग की जांच ने विधायकों की परेशानियां बढ़ा दी है. जिन विधायकों के घर छापे पड़े, उनमें से तीन की किस्मत चमकी और मंत्री बन बैठे. जांच के दायरे में फंसे कुछ विधायकों ने सीबीआइ को अपनी आवाज का नमूना दिया, पर मंत्री जी ने इससे इनकार कर दिया.
मामला सीबीआइ अदालत पहुंचा. अदालत ने आवाज का नमूना देने का आदेश दिया. मंत्री जी ने इसे ऊपरी अदालत में चुनौती दे डाली. बेचारी सीबीआइ अदालत के फैसले के इंतजार में बैठी है. साथ ही इस उलझन में भी है कि मंत्री बने संदिग्धों के साथ कैसे पेश आये? अभी कुछ करे या मंत्री की कुरसी जाने तक इंतजार में बैठी रहे. एक विधायक पर वोट के बदले 1.25 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगा. अदालत ने विधायक को पकड़ने का आदेश दिया, पर वह पकड़ से बाहर है.
जांच के दायरे में फंसे विधायक खुद को बचाने की कोशिश में लगे हैं. दूसरी तरफ सीबीआइ उन्हें कानूनी शिकंजे में फंसाने की जुगत लगा रही है. चूहे और बिल्ली का खेल जारी है. पता नहीं इस खेल का अंजाम क्या होगा? इसी साल कुछ और लोगों की किस्मत चमकी. वे चपरासी से अफसर बन गये. चपरासी में नियुक्त होकर आइएसएस का वेतन पाने के इस अनोखे फारमूले का राज क्या है? इसे जानने के लिए न्यायिक आयोग बना. तीन माह में राज फाश करने का हुक्म जारी हुआ. जांच शुरू हुई, पर अधूरी रही और राज की बात राज ही रह गयी.