जरमुंडी में आइटीआइ भवन के निर्माण का मामला: इंजीनियरों ने ठेकेदार को 83 लाख का अनुचित लाभ पहुंचाया

रांची: आइटीआइ भवन के निर्माण में इंजीनियरों ने ठेकेदार को 83.06 लाख रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया. प्राक्कलन से अधिक काम के नाम पर व समय पर काम पूरा नहीं करने पर उससे दंड की वसूली नहीं कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया. जरमुंडी में आइटीआइ भवन के निर्माण के ऑडिट के बाद प्रधान महालेखाकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2016 1:13 AM
रांची: आइटीआइ भवन के निर्माण में इंजीनियरों ने ठेकेदार को 83.06 लाख रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया. प्राक्कलन से अधिक काम के नाम पर व समय पर काम पूरा नहीं करने पर उससे दंड की वसूली नहीं कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया. जरमुंडी में आइटीआइ भवन के निर्माण के ऑडिट के बाद प्रधान महालेखाकार ने इससे संबंधित रिपोर्ट सरकार को सौंपी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम नियोजन विभाग ने मार्च 2012 में जरमुंडी में आइटीआइ भवन बनाने का फैसला किया था. इसके आलोक में भवन निर्माण विभाग ने टेंडर का निबटारा कर 7.96 करोड़ की लागत पर निर्माण कार्य मेसर्स एसीएमइ को दिया. नवंबर 2012 में ठेकेदार के साथ किये गये एकरारनामा के तहत मई 2014 में निर्माण कार्य पूरा करना था. निर्माण कार्य से जुड़े दस्तावेज की जांच में पाया गया कि इंजीनियरों ने ठेकेदार से एस्टीमेट के मुकाबले ज्यादा काम दिखाया है और भुगतान किया है.ऑडिट में पाया गया कि एस्टीमेट के हिसाब से ठेकेदार को 3074.128 घन मीटर मिट्टी भरने का काम करना था.

हालांकि ठेकेदार द्वारा 3729.88 घन मीटर मिट्टी भरे जाने का उल्लेख किया गया है. 163.237 घन मीटर आरसीसी के मुकाबले 191.488 घन मीटर करने की बात मापी पुस्तिका में दर्ज है. इसी तरह 31.988 वर्ग मीटर के मुकाबले 49.747 वर्ग मीटर मार्बल का इस्तेमाल दिखाया गया है. इस तरह ठेकेदार को एस्टीमेट के मुकाबले मिट्टी भराई का काम 21 प्रतिशत, आरसीसी का काम 17 प्रतिशत और मार्बल का काम 56 प्रतिशत अधिक दिखा कर भुगतान किया गया है.

ऑडिट के दौरान पाया गया कि निर्माण कार्य अब तर पूरा नहीं हुआ है. सक्षम पदाधिकारी की ओर से काम पूरा करने के लिए समय भी नहीं बढ़ाया गया है. समय पर काम पूरा करने के लिए ठेकेदार से दंड के रूप में 79.67 लाख रुपये की वसूली भी नहीं की गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट टीम को कई दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराये गये़.

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