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झारखंड के निजी क्षेत्रों में 75% स्थानीय को नौकरी देनी है, स्थानीयता का आधार ही तय नहीं

सत्ता पक्ष के विधायक नलिन सोरेन कमेटी के संयोजक बनाये गये हैं. कमेटी में विधायक प्रदीप यादव, नारायण दास, सुदिव्य कुमार सोनू और भूषण बाड़ा बतौर सदस्य शामिल किये गये हैं.

आनंद मोहन, रांची: झारखंड सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों में 40 हजार रुपये तक वेतनवाले पदों पर 75% स्थानीय लोगों को बहाल करने का कानून बनाया है. पिछले वर्ष आठ सितंबर को झारखंड विधानसभा ने इस विधेयक को पारित किया था. राज्यपाल रमेश बैस की मंजूरी के बाद यह कानून बन गया है. इधर, निजी क्षेत्रों के लिए किये गये प्रावधान के क्रियान्वयन को लेकर विधानसभा की विशेष कमेटी बनायी गयी है.

सत्ता पक्ष के विधायक नलिन सोरेन कमेटी के संयोजक बनाये गये हैं. कमेटी में विधायक प्रदीप यादव, नारायण दास, सुदिव्य कुमार सोनू और भूषण बाड़ा बतौर सदस्य शामिल किये गये हैं. निजी क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को बहाल करने का कानून तो बन गया, लेकिन स्थानीय कौन, इसको लेकर भ्रम की स्थिति है. कमेटी में शामिल विधायकों के सामने 1985 और 1932 का पेच हैं. स्थानीयता का आधार क्या होगा, यह विधेयक में साफ नहीं है. कमेटी के सदस्यों में भी असमंजस की स्थिति है.

राज्य सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता का मामला नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र के पाले में डाल दिया है. वहीं, पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार ने स्थानीयता की पहचान के लिए 1985 का कट ऑफ डेट तय किया था. पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार का अधिसूचना रद्द भी नहीं हुई है. इस मुद्दे पर कमेटी में शामिल सदस्यों की राय अलग है.

संयोजक नलिन सोरेन ने 30 जनवरी को कमेटी की बैठक बुलायी है़ संयोजक ने कहा कि हमारी कोशिश होगी कि 1932 को ही आधार बनाया जाये, लेकिन वह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि यह कैसे लागू हो सकता है, जबकि राज्य में इसको लेकर कोई नीतिगत फैसला नहीं हुआ है. कमेटी के दूसरे सदस्य का कहना था कि 1932 खतियान अबतक तय नहीं हुआ है़ कोई नया कानून नहीं बना है, तो ऐसे में पुराना कानून ही अस्तित्व में है.

1985 को आधार बना कर आरक्षण का लाभ देना होगा. विधायक प्रदीप यादव का कहना था कि जिलास्तर पर नियुक्ति का जो आधार है, उसी तर्ज पर इसे लागू होगा़ उन्होंने कहा कि 30 जनवरी को बैठक में इस पर चर्चा होगी.

विशेष समिति के संयोजक व सदस्यों की है अलग-अलग राय

40 हजार या सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित अधिसीमा तक सकल मासिक वेतन या मजदूरी वाले रिक्त पदों या रिक्त होनेवाले पर 75% स्थानीय लोग होंगे.

स्थानीय उम्मीदवारों के नियोजन के क्रम में प्रतिष्ठान के बनने के कारण विस्थापित, संबंधित जिलों के उम्मीदवार और समाज के सभी वर्गों का ख्याल रखेंगे.

कोई भी स्थानीय उम्मीदवार, इस अधिनियम के अधीन लाभों के उपभोग का तब तक पात्र नहीं होगा, जब तक वह अपने पोर्टल पर पंजीकृत नहीं करा लेता है.

जिलास्तर पर एक जांच कमेटी होगी. इसमें स्थानीय विधायक या नामित प्रतिनिधि, उप विकास आयुक्त, जिस अंचल में प्रतिष्ठान हैं वहां के अंचलाधिकारी, संबंधित जिला के श्रम अधीक्षक, संबंधित जिला के जिला नियोजन पदाधिकारी शामिल होंगे.

विशेष समिति के संयोजक व सदस्यों की है अलग-अलग राय

हमारी कोशिश होगी कि 1932 को ही स्थानीयता का आधार बनायें. हम स्थानीय लोगों को नौकरी देना चाहते हैं. हमारी कोशिश होगी कि झारखंडियाें को उनका हक मिले. कमेटी की बैठक में विचार-विमर्श होगा. बैठक के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी.

– नलिन सोरेन, कमेटी के संयोजक

स्थानीयता को लेकर कहीं कोई परेशानी नहीं है. जिला स्तर पर बहाली हो रही है. उसी आधार पर ही निजी कंपनियों को नियुक्ति करनी है. स्थानीय नीति नहीं है, इसको बोल कर टाला नहीं जा सकता है. सरकार ने नीति बनायी है, तो वह हर हाल में लागू होना चाहिए.

– प्रदीप यादव, कमेटी के सदस्य

स्थानीयता हमारा कमिटमेंट है. सरकार स्थानीय लोगों को नौकरी देना चाहती है, लेकिन इसको लेकर विभागीय व कंपनियों के स्तर पर लापरवाही बरती जा रही है. पूरे राज्य भर से मात्र 600 कंपनियों ने ही निबंधन कराया है. कमेटी सभी पहलुओं पर चर्चा करेगी.

-सुदिव्य कुमार, कमेटी के सदस्य

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