सिमरिया: जल संसाधन ने पकड़ी गड़बड़ी, निगरानी की क्लीन चिट
रांची: सिमरिया बाढ़ सुरक्षात्मक तटबंध निर्माण में हुई गड़बड़ी के मामले में निगरानी प्राथमिकी नहीं दर्ज करेगी. निगरानी की तीन इंजीनियरों के दल ने निर्माण में गड़बड़ी नहीं होने की रिपोर्ट दी, जिसके बाद यह फैसला किया गया. निगरानी के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गयी है. दूसरी तरफ जल संसाधन विभाग के […]
रांची: सिमरिया बाढ़ सुरक्षात्मक तटबंध निर्माण में हुई गड़बड़ी के मामले में निगरानी प्राथमिकी नहीं दर्ज करेगी. निगरानी की तीन इंजीनियरों के दल ने निर्माण में गड़बड़ी नहीं होने की रिपोर्ट दी, जिसके बाद यह फैसला किया गया. निगरानी के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गयी है. दूसरी तरफ जल संसाधन विभाग के 25 इंजीनियरों के दल ने निर्माण में भारी गड़बड़ी और बिना काम भुगतान की बात कही थी. बांध निर्माण का यह मामला विधायक संजय प्रसाद व विजेता कंस्ट्रक्शन से जुड़ा हुआ है.
जल संसाधन विभाग द्वारा करायी गयी जांच रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने निगरानी को बांध निर्माण में हुई गड़बड़ी की जांच का आदेश दिया था. निगरानी ने इसके लिए तकनीकी सेल का गठन किया. इसमें रामानंदन राजीव (अधीक्षण अभियंता) राजीव वर्मा (कार्यपालक अभियंता ) और सत्येंद्र नाथ पांडेय को शामिल किया गया. इस टीम ने बांध के 855 में से बतौर नमूना 10 ही चेन की जांच की और निर्माण में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होने की रिपोर्ट सौंपी. इंजीनियरों के इस दल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि विधायक संजय प्रसाद की पत्नी से जुड़ी कंपनी ‘महालक्ष्मी इंजीकाम’ ने काम नहीं किया है. काम विजेता कंस्ट्रक्शन ने किया है. निगरानी के इन तीन इंजीनियरों की रिपोर्ट के बाद निगरानी विभाग ने मामले की समीक्षा की.
इसके बाद निगरानी एडीजी नीरज सिन्हा ने 10 अगस्त 2013 को निगरानी आयुक्त को पत्र लिखा. उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि जल संसाधन विभाग और निगरानी कोषांग की तकनीकी जांच रिपोर्ट अलग अलग है. निगरानी विभाग अपने तकनीकी कोषांग की जांच से चलता है. विभाग का तकनीकी जांच रिपोर्ट गलत है. इसलिए गलत तकनीकी जांच रिपोर्ट देनेवालों के विरुद्ध भी नियमानुसार कार्रवाई की जानी चाहिए.
जल संसाधन विभाग ने सिमरिया बाढ़ सुरक्षात्मक तटबंध की तीन बार जांच करायी. इस दौरान तटबंध के सभी 855 चेन की जांच की गयी. पहली जांच समिति में दो अधीक्षण अभियंता,एक कार्यपालक अभियंता और एक तकनीकी सलाहकार थे. इस समिति ने जांच के दौरान निर्माण कार्यों में गड़बड़ी पायी. विभाग द्वारा बनायी गयी दूसरी जांच समिति में एक मुख्य अभियंता,दो अधीक्षण अभियंता और एक कार्यपालक अभियंता थे. इस समिति द्वारा जांच के दौरान अन्य आठ अभियंता उपस्थित थे. इस समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में तटबंध निर्माण के गड़बड़ी पायी. विभाग ने जल संसाधन विभाग के तत्कालीन संयुक्त सचिव संजीव लोचन की अध्यक्षता में तीसरी जांच समिति बनायी. इसमें दो कार्यपालक अभियंता को शामिल किया गया.
इसके अलावा जांच के समय विभाग ने दूसरे 10 इंजीनियर मौजूद थे. इसके अलावा विजेता कंस्ट्रक्शन और महालक्ष्मी इंजीकाम के दो लोग उपस्थित थे. इनकी उपस्थिति में हुई जांच में भी गड़बड़ी पायी गयी. विभाग जांच में बिना काम के ही 2.52 करोड़ रुपये के भुगतान और काम बंद होने की अवधि में भी काम के नाम पर भुगतान का मामला पकड़ में आया. जांच के दौरान इलाहाबाद बैंक ने महालक्ष्मी इंजीकाम के खाते में रुपये के हस्तांतरण से संबंधित ब्योरा देने से इनकार कर दिया. विजेता कंस्ट्रक्शन ने जांच समिति के समक्ष महालक्ष्मी इंजीकाम से किराये पर मशीन लेने की बात स्वीकार की. महालक्ष्मी इंजीकाम ने भी किराये पर ही मशीन देने की बात स्वीकार की. मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन विभागीय सचिव एसके शतपथी ने निगरानी जांच की अनुशंसा की थी.
सीआइडी जांच की मांग की गयी थी
तटबंध निर्माण में हुई गड़बड़ी की सीबीआइ जांच से मांग की गयी थी. इसमें कहा गया था तटबंध का काम केंद्र के आर्थिक सहयोग से किया गया है. केंद्र सरकार ने निर्माण कार्य की गुणवत्ता की जांच के लिए भारतीय सिंचाई अनुसंधान केंद्र को अधिकृत किया था. इसके बावजूद तटबंध की जांच स्थानीय इंजीनियर से करायी गयी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान निगरानी को भी नोटिस जारी किया गया था. निगरानी ने मामले की जांच जारी होने की बात कही थी. निगरानी ने दूसरी बार शपथ पत्र दायर कर निर्माण में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं पाये जाने की बात कही है. याचिका दाता ने निगरानी के इस कार्रवाई को चुनौती दी है.