प्रकृति की पूजा है सरहुल
प्रकृति की पूजा है सरहुल:::::::फोटो स्कैन कर मिलेगा:::::: रेणु तिर्की झारखंड की गोद में प्राकृतिक हरियाली, पलास फूल की लालीमा, कोयल की कुक मन को मोहती है़ सरई फूल की खुशबू से झारखंड का कोना-कोना महक उठता है़ सरहुल महापर्व में प्रकृति सखुआ वृक्ष की पूजा कर नववर्ष का आरंभ होता है़ चैत शुक्ल पक्ष […]
प्रकृति की पूजा है सरहुल:::::::फोटो स्कैन कर मिलेगा:::::: रेणु तिर्की झारखंड की गोद में प्राकृतिक हरियाली, पलास फूल की लालीमा, कोयल की कुक मन को मोहती है़ सरई फूल की खुशबू से झारखंड का कोना-कोना महक उठता है़ सरहुल महापर्व में प्रकृति सखुआ वृक्ष की पूजा कर नववर्ष का आरंभ होता है़ चैत शुक्ल पक्ष अमावस्या की द्वितीया तिथि में सरहुल की पूजा की जाती है़ पूजा के एक दिन पहले गांव का पाहन राजा और पाइन मोरा उपवास कर पंजरी मिट्टी पूजा के लिए लाते हैं. पाइन भोरा गांव के नदी व तालाब से नये घड़ा में पानी भर कर गांव के सरना स्थल में रखता है़ दूसरे दिन पाहन राजा, पाइन भोरा एवं गांव के समस्त लोग, बड़े बुजुर्ग घर के पुरुष उपवास कर अपने-अपने घर में पूजा कर के सरना स्थल लोटा में पानी लेकर जाते हैं. गांव का पाहन भोरा और लोग सरना स्थल में जुटते हैं. पाहन राजा मां सरना, धर्मश बाबा, सिंगबोगा और गांव के देवी-देवता को स्मरण कर राज्य, जिला, गांव, देश की सुख-समृद्धि, अच्छी बारिश और अच्छी खेती के लिए कामना करते हुए प्राकृतिक मां सरना की पूजा करता है़ पाहन राजा नया सूप, अरवा चावल, धुवन और प्रसाद से पूजा करता है़ सहजन, लौकी, कटहल, फुटकल, बड़हर, कोपनार, फूल आदि की सब्जी बना कर और मीठी रोटी पहले धरती मां प्रकृति को नैवेद चढ़ा कर पूजा संपन्न की जाती है. तीसरे दीन फूलखोंसी की जाती है. पाहन राजा पाइन भोरा भोरा घड़ा में पानी और सूप में सरई फूल लेकर सरना स्थल से शुरू कर गांव के समस्त घरों में जाकर पंजरी मिट्टी की छाप छोड़ता है और घर के दरवाजे में सरई फूल खोंसता है़ घर के लोग पाहन राजा का पैर कांसा थाली में लोटा के पानी से धोकर आशीर्वाद लेते हैं. सरहुल का गीत -पुस-माघ बित गेल,फगुआ बिति गेल,देखतो दादा सरहुल कर मांदर बाजी गेल़ रेणु तिर्की, भाजपा झारखंड प्रदेश अनुसूचित जनजाति मोरचा कार्यायल मंत्री ……………………………..खौलते तेल में हाथ से रोटी छानते हैं पाहनसरहुल पूजा मानव जाति के लिए पालनकर्ता के रूप में महान शक्ति के प्रतीक, सूर्य और धरती के शुभ विवाह का पर्व है़ सरहुल पर सूर्य और कन्या रूपी धरती के प्रतीक स्वरूप पाहन और उसकी धर्मपत्नी के बीच विवाह रचाया जाता है़ पाहन की भक्ति व निष्ठा की शक्ति सरहुल के अवसर पर तब नजर आती है, जब वह सरहुल के प्रसाद की रोटी को सरना स्थल पर खुद अपने हाथों से खौलते तेल में छानता है़ सरहुल के दिन पाहन सरना स्थल में रखे घड़ों में पानी का स्तर देख कर यह भविष्यवाणी करते हैं कि वर्षा और फसल कैसी होगी़ अच्छा शिकार मिलेगा या नही़ं यह भी बताते हैं कि इस वर्ष कौन सी फसल उपयुक्त होगी़ सरहुल के बाद ही खेतों में खाद- बीज डालने का काम शुरू होता है़ महेश भगत, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विवि —————————एकजुटता का संदेश देने वाला त्योहार है सरहुलतसवीर राज वर्मा सरहुल झारखंड के आदिवासी मूलवासियों का एक पवित्र है. प्रकृति के इस पर्व में सारे भेदभाव दूर हो जाते हैं. इस त्योहार में निकाली गयी इसकी शोभायात्रा सबसे खास होती है. सभी जाति व धर्म के लोग इस शोभायात्रा में बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं. राजेंद्र प्रसाद, अध्यक्ष सदान मोरचा सरहुल मूलत: प्रकृति का त्योहार है. इस त्योहार को आदिवासी मूलवासी भक्तिभाव से मनाते हैं. प्रकृति के इस पर्व का इंतजार आदिवासी मूलवासियों को सालों भर रहता है. त्योहार के दौरान निकाली गयी शोभायात्रा में सारे समुदाय के लोग भाग लेते हैं. साथ ही जमकर नाचते गाते हैं. डॉ राजाराम महतो, शिक्षाविद सह अध्यक्ष कुरमाली भाषा परिषद प्रकृति पर्व सरहुल पूरे राज्य में धूमधाम से मनाया जाता है. और शोभायात्रा में नाचते गाते आदिवासियों और मूलवासियों की एकजुटता देखते ही बनती है. सरहुल की शोभायात्रा में सदानों की भागीदारी शुरू से ही रही है. इस संबंध को और मजबूत करने की जरूरत है. और राज्य को खुशहाल बनाना है. शीतल ओहदार, अध्यक्ष, कुरमी विकास मोरचा —————————