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एक साल में 74.02 करोड़ का हुआ घाटा

निगरानी की कमी से झारखंड में को-अॉपरेटिव बैंक हुए बेहाल जीवेश/मनोज िसंह4रांची jivesh.singh@prabhatkhabar.in झारखंड में अधिकतर को-अॉपरेटिव बैंकों में लूट मची है. बैंक के शीर्ष अधिकारियाें ने ऐसी स्थिति बना दी है कि आठ में से चार बैंक घाटे में चल रहे हैं. यह घाटा सिर्फ एक साल का है. अगर धनबाद काे-अॉपरेटिव बैंक काे […]

निगरानी की कमी से झारखंड में को-अॉपरेटिव बैंक हुए बेहाल
जीवेश/मनोज िसंह4रांची
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
झारखंड में अधिकतर को-अॉपरेटिव बैंकों में लूट मची है. बैंक के शीर्ष अधिकारियाें ने ऐसी स्थिति बना दी है कि आठ में से चार बैंक घाटे में चल रहे हैं. यह घाटा सिर्फ एक साल का है. अगर धनबाद काे-अॉपरेटिव बैंक काे अलग कर दिया जाये, ताे एक साल में इन बैंकाें काे 74.02 करोड़ का संयुक्त घाटा हुआ है. सबसे ज्यादा लाभ दुमका बैंक ने, तो सबसे ज्यादा घाटा देवघर बैंक ने पहुंचाया है. धनबाद बैंक एक ऐसा बैंक है, जिसका अपना अलग राज चलता है. उसने विलय के आदेश काे भी मानने से इनकार कर दिया है.
हालांकि धनबाद बैंक काे इसी अवधि में एक कराेड़ का लाभ हुआ है.
अधिकतर काे-अॉपरेटिव बैंकाें में अराजक स्थिति है. दस्तावेज बताते हैं कि कई बैंकाें में अफसराें ने अपने परिजनाें काे भर दिया, बैंक के ही कर्मियों काे लाेन दे दिया. इन बैंकाें का हिसाब स्पष्ट नहीं हाे सका है, पर सूत्र बताते हैं कि लाेन में जाे पैसे बांटे गये हैं, उनमें करीब साै कराेड़ रुपये डूब गये हैं या डूबनेवाले हैं. बैंकाें की यह स्थिति इसलिए हुई है, क्याेंकि इनकी निगरानी करनेवाला काेई नहीं. प्रशासनिक निगरानी के लिए कहीं उपायुक्त, तो कहीं डीडीसी को जवाबदेह बनाया गया है, पर उनके पास इतना समय नहीं कि वे रोज-रोज इनकी निगरानी कर सकें.
दूसरी अोर इन बैंकाें के विलय के लिए तीन सालाें से फाइल लटकी पड़ी है. इनका झारखंड स्टेट को-अॉपरेटिव बैंक में विलय होना है. इन बैंकाें की गहरी जानकारी रखनेवाले बताते हैं कि कई पूर्व प्रबंध निदेशक इन गड़बड़ियाें में शामिल रहे हैं. उन पर कराेड़ाें रुपये के गबन का आराेप है. इनमें से कई बरखास्त भी हाे चुके हैं, कई जेल गये, तो कुछ की संपत्ति भी जब्त की गयी. इन प्रयासाें के बावजूद बैंकाें की स्थिति में बहुत बदलाव नहीं दिखता.
शुरू से रहा विवाद
एकीकृत बिहार के दिनों से ही को-अॉपरेटिव बैंकों पर इलाकावार प्रभुत्ववाले लोग (अपवाद भी हैं) हावी रहे. वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद भी इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ. अधिकारियों ने किसानों को लोन देने में भी गड़बड़ी की. लाभुकों की जगह खुद लोन लेने में सब लगे रहे. इसका प्रमाण जमशेदपुर की बिस्टूपुर शाखा है. वर्ष 2013 के आंकड़ों के अनुसार, इस शाखा से 277 लोगों को लोन दिया गया था, जिनमें 147 बैंक के कर्मचारी थे.
एक अधिकारी ने चिकेन चिली पर लाखों खर्च दिखा कर हेराफेरी की. राज्य के कई आइएएस ने भी बैंक से लोन लिया अौर लौटाना भूल गये. बाद में मामला प्रकाश में आने पर लौटाया. गिरिडीह में तो बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक जॉर्ज अफ्रेम कुजूर व जिला सहकारिता पदाधिकारी तारियुस केरकेट्टा पर एफआइआर करनी पड़ी, तब जाकर पैसे की वसूली संभव हो पायी. इसके अलावा लगभग सभी शाखाओं से ऐसे लोन दिये गये, जिसके लाभुक का कोई पता-ठिकाना नहीं था. नतीजतन अधिकतर लोन की वसूली नहीं हो पायी. इसी कार्य संस्कृति के कारण दि डालटनगंज केंद्रीय बैंक दिवालिया हो गया.
व्यवस्था क्यों हुई फेल
जानकार सूत्रों के अनुसार, बैंक ने गरीब किसानों को लोन देने में भी हेराफेरी की, दिये एक हजार रुपये अौर कागज पर दिखा दिया 10 हजार. बीच के पैसे की हेराफेरी हो गयी. सहकारी बैंकों के बढ़ते वित्तीय घाटे को देखते हुए सरकार ऋण माफी योजना लायी थी. पर इसका इस्तेमाल फरजी व रिश्तेदार ऋणधारकों के लिए ज्यादा किया गया. दूसरी ओर ऋण वसूली का झूठा-सच्चा डाटा दिखाने के लिए बैंक के अधिकारियों ने कागज पर ही ऋण की वसूली दिखा दी अौर फिर उसी व्यक्ति को उतने ही पैसे का दूसरा ऋण देना दिखा दिया. इस प्रकार कागज पर ही ऋण वसूली अौर देने, दोनों का टारगेट पूरा कर लिया गया.
करीब तीन वर्ष पहले धनबाद बैंक के एक खाताधारी पुष्कर राय ने भी तत्कालीन पदाधिकारी धर्मदेव मिश्रा व अन्य अधिकारियों के खिलाफ तत्कालीन सहकारिता मंत्री हाजी हुसैन अंसारी व नाबार्ड, मुंबई के प्रबंध निदेशक सहित प्रधानमंत्री कार्यालय तक को पत्र भेजा था. इसमें श्री मिश्रा पर आरबीआइ के निर्देशों का उल्लंघन कर कई ऋण खातों को एनपीए घोषित कर वसूली का आरोप लगाये गये थे. श्री राय ने यह भी लिखा था कि अधिकारियों ने सही किसान की जगह गलत व्यक्ति को किसान दिखा कर ऋण माफी योजना का लाभ दे दिया था. इस पत्र के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कार्रवाई के लिए भी लिखा था.
कितने पर हुई कार्रवाई
जो हुए बरखास्त : गुमला सहकारिता बैंक के पूर्व एमडी अनिल कुमार सिन्हा व चंद्रेश्वर कांपर.
जिन पर हुई एफआइआर : गिरिडीह को-अॉपरेटिव बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक जॉर्ज अफ्रेम कुजूर, जिला सहकारिता पदाधिकारी तारियुस केरकेट्टा सहित 17 कर्मचारी. सारवां के शाखा प्रबंधक रमेश चंद्र राय व सहायक प्रमोद कुमार सिंह.
जिन पर हैं अन्य आरोप
तोपचांची के पूर्व शाखा प्रबंधक राम प्रसाद महतो (अब स्वर्गीय) पर वर्ष 2005 में एक करोड़ 25 लाख रुपये के गबन का था आरोप. उनकी संपत्ति बैंक ने अधिग्रहित कर ली थी. मामला न्यायालय में है. धनबाद बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक रमोद नारायण झा, शाखा प्रबंधक व अॉडिटर सहित 16 कर्मचारियों पर सरचार्ज का केस. देवघर को-अॉपरेटिव बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक रामकुमार प्रसाद के निलंबन की अनुशंसा व पैसा वसूलने का आदेश. इनके अलावा सैकड़ों ऋणधारकों पर भी सर्टिफिकेट केस हुआ है.
पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना : केवाइसी से संबंधित सामान्य प्रक्रिया पूरी नहीं करने के कारण राज्य के तीन केंद्रीय सहकारी बैंक क्रमश: गुमला-सिमडेगा, दुमका व धनबाद बैंक को पांच-पांच लाख का जुर्माना रिजर्व बैंक ने वर्ष 2014 में लगाया था.

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