आयोजन: कार्यशाला में बीएयू के कुलपति ने कहा, किसानों के परंपरागत ज्ञान का हो इस्तेमाल

रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ जॉर्ज जॉन ने मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए किसानों के परंपरागत तकनीकी ज्ञान का अधिक इस्तेमाल करने पर जोर दिया है. कुलपति ने कहा है कि किसानों के खेत मेंं कम लागत वाले डोभा के निर्माण से सुखाड़ और पानी की कमी में भी अच्छी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2016 1:41 AM
रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ जॉर्ज जॉन ने मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए किसानों के परंपरागत तकनीकी ज्ञान का अधिक इस्तेमाल करने पर जोर दिया है. कुलपति ने कहा है कि किसानों के खेत मेंं कम लागत वाले डोभा के निर्माण से सुखाड़ और पानी की कमी में भी अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. किसानों की आमदनी को टिकाऊ बनाया जा सकता है. डोभा निर्माण के लिए स्थल चयन बहुत महत्वपूूर्ण है.
इसे खेत के निचले स्थान पर ऐसी जगह बनाना चाहिए,जहां खेत के दूसरे हिस्से से भी पानी रिस कर आ सके और जमा हो सके. कुलपति मंगलवार को यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड), कोलंबिया विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इंटरनेशनल प्रोजेक्ट ट्रस्ट (सीआइपीटी) और बीएयू द्वारा चलायी जा रही सफल गांव परियोजना के एक दिवसीय कार्यशाला में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि परियोजना के तहत रांची जिला के अनगड़ा प्रखंड के 10 गांवों में जल संरक्षण केंद्रीय आर्थिक विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है.
सफल परियोजना के नोडल पदाधिकारी डॉ ए बदूद ने कहा कि इन गांवों में तकनीकी हस्तक्षेप से 700 किसानों को लाभ पहुंचा है. सीआइपीटी के निदेशक डॉ कमल वत्ता ने कहा कि उनका ट्रस्ट कोलांबिया वाटर सेंटर का एक अंग है. झारखंड के अलावा पंजाब और गुजरात में पहले से काम कर रहा है.

पंजाब के लगभग 300 गांवों में योजना चली है. अगले पांच साल में झारखंड के पांच प्रखंडों में योजना चलाने का लक्ष्य है. बीएयू के कृषि डीन डॉ राघव ठाकुर ने कहा कि एक किलो चावल उगाने में 3500–5000 लीटर पानी खर्च होता है. सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से पानी की खपत में काफी कमी लायी जा सकती है. धन्यवाद ज्ञापन सीआइपीटी के कार्यक्रम प्रबंधक संदीप दीक्षित ने किया.

Next Article

Exit mobile version