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बदहाली: आठ बार साइंस में फेल हुए आधे विद्यार्थी

रांची: इस वर्ष इंटर साइंस के रिजल्ट में गत वर्ष की तुलना में छह फीसदी की कमी आयी है. वहीं सरकार और स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग ने खराब रिजल्ट की मूल वजह तलाशने की जगह सतही कारणों की फेहरिस्त बनायी है. वर्ष 2011 में फेल छात्रों पर कृपा करते हुए कृपांक (ग्रेस मार्क्स) देकर […]

रांची: इस वर्ष इंटर साइंस के रिजल्ट में गत वर्ष की तुलना में छह फीसदी की कमी आयी है. वहीं सरकार और स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग ने खराब रिजल्ट की मूल वजह तलाशने की जगह सतही कारणों की फेहरिस्त बनायी है. वर्ष 2011 में फेल छात्रों पर कृपा करते हुए कृपांक (ग्रेस मार्क्स) देकर 16 हजार से अधिक विद्यार्थियों को 12वीं पास करा दिया गया था़ अब शिक्षकों पर कार्रवाई की जा रही है़ अब तक इंटर साइंस के खराब रिजल्ट की मूल वजह तलाशने की कोशिश नहीं की गयी़.
एक सिलेबस तीन एकेडमिक कैलेंडर : इंटर में एक सिलेबस के लिए तीन एकेडमिक कैलेंडर हैं. इंटर की पढ़ाई अंगीभूत कॉलेज, डिग्री संबद्ध कॉलेज, इंटर कॉलेज व प्लस-टू स्कूल में होती है. अंगीभूत कॉलेज व डिग्री संबद्ध कॉलेज विवि के अधीन संचालित होते हैं. ये दोनों कॉलेज विवि के कैलेंडर के अनुरूप संचालित होता है़ प्लस-टू स्कूल माध्यमिक शिक्षा निदेशालय व इंटर कॉलेज झारखंड एकेडमिक काउंसिल के कैलेंडर के अनुरूप संचालित होती है. पूरे राज्य में इंटर की पढ़ाई में एकरूपता नहीं है. अंगीभूत कॉलेज,प्लस-टू स्कूल व इंटर कॉलेज की अवकाश तालिका में भी एकरूपता नहीं है़ राज्य में इंटरमीडिएट में कब तक नामांकन हो व कक्षा कब से शुरू होगी, इसका कोई कट ऑफ डेट निर्धारित नहीं है.
11वीं में पास आधे 12वीं में हो जाते फेल : इंटर में 11वीं की पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति होती है़ 11वीं में शत-प्रतिशत विद्यार्थियों को पास कर दिया जाता है़ 11वीं में पास विद्यार्थी छह से सात माह बाद जब 12वीं की परीक्षा में शामिल होते है, तो आधे विद्यार्थी फेल हो जाते है़ं राज्य में 11वीं की परीक्षा कभी समय पर नहीं होती़ 11वीं की परीक्षा जून-जुलाई में होती है़ ऐसे में विद्यार्थी अगस्त में 12वीं में प्रमोट होते है़ नवंबर में परीक्षा फॉर्म जमा होने के बाद कक्षा बंद हो जाती है़ ऐसे में मात्र चार माह की पढ़ाई कर विद्यार्थी इंटर की परीक्षा में शामिल होते है़ इससे रिजल्ट प्रभावित होता है़.
प्लस-टू स्कूल में प्राचार्य नहीं : राज्य के 230 प्लस टू उच्च विद्यालय में किसी भी स्कूल में प्राचार्य नहीं है़ स्कूल उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक की देखरेख में चल रहा है़ 95 फीसदी से अधिक प्लस-टू उच्च विद्यालय में सभी विषय के शिक्षक नहीं है़ 171 प्लस-टू उच्च विद्यालय में भौतिकी व रसायनशास्त्र विषय के शिक्षक नहीं है़ इस कारण प्लस-टू उच्च विद्यालय में इंटर की पढ़ाई प्रभावित हो रही है़ प्लस-टू स्कूलों में प्रायोगिक कक्षा भी नहीं होती है़
शिक्षकों की योग्यता भी एक समान नहीं
राज्य में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए सिलेबस तो एक है, पर शिक्षकों की योग्यता अलग-अलग है. इंटर की पढ़ाई के लिए यहां पीजी पास शिक्षक से लेकर नेट व पीएचडी योग्यताधारी शिक्षक हैं. राज्य के अंगीभूत कॉलेजों के शिक्षक नेट पास व पीएचडी हैं. 200 इंटर कॉलेजों में लगभग पांच हजार शिक्षक हैं. इनमें 4500 शिक्षक बीएड की अर्हता नहीं रखते. सरकार ने शिक्षकों के वर्ष 2008 तक बीएड की डिग्री प्राप्त कर दिया़ प्लस-टू उच्च विद्यालय शिक्षक शिक्षक नियुक्ति के लिए संबंधित विषय में न्यूनतम 50 फीसदी अंक होना अनिवार्य है. इसके अलावा उनके लिए बीएड की डिग्री भी अनिवार्य है. 220 दिन का पाठ्यक्रम सौ दिन की पढ़ाई राज्य के विवि में लागू पाठ्यक्रम के लिए वर्ष में 180 दिन कक्षा संचालन आवश्यक है, जबकि इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए वर्ष में कम-से-कम 220 दिन. झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा अंगीभूत कॉलेजों में इंटर की पढ़ाई का सर्वे कराया गया था. इसमें पाया गया था कि अंगीभूत कॉलेजों में इंटर की पढ़ाई साै दिन की भी पढ़ाई नहीं होती़
सिस्टम में बदलाव की आवश्यकता : लक्ष्मी सिंह
झारखंड एकेडमिक काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मी सिंह के अनुसार राज्य में इंटर की पढ़ाई का सिस्टम फेल है़ अगर वर्तमान सिस्टम के तहत लगातार रिजल्ट खराब हो रहा है, तो इसमें बदलाव की आवश्यकता है़ सरकार को चाहिए की इसकी गहराई से समीक्षा करे़ रिजल्ट खराब होने के कारणों को दूर करे़ इंटरमीडिएट की वर्तमान पढ़ाई के सिस्टम से बेहतर पहले की पढ़ाई थी़ इंटरमीडिएट के खराब रिजल्ट का असर सीधे विद्यार्थी के कैरियर पर पड़ता है़ कैरियर के दृष्टिकोण से इंटर की पढ़ाई काफी महत्वपूर्ण है़ ऐसे में सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.
साइंस का वर्षवार रिजल्ट
वर्ष सफल विद्यार्थी
2006 43.09
2007 45.11
2008 50.29
2009 50.39
2010 30.33
2011 33.70
2012 48.37
2013 38.28
2014 63.65
2015 64.57
2016 58.36

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