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मुठभेड़ों की जांच में सीआइडी सुस्त
रांची: पुलिस के साथ मुठभेड़ की घटनाओं की जांच सीआइडी करती है. झारखंड में सीआइडी के पास मुठभेड़ के दर्जनों मामले लंबित हैं. पुलिस के सीनियर अफसर बताते हैं : मुठभेड़ के उन्हीं मामलों की जांच पूरी की जाती है, जिसमें पुलिस की गलती नहीं होती या जिन मामलों को लेकर पुलिस अफसरों को गैलेंट्री […]
रांची: पुलिस के साथ मुठभेड़ की घटनाओं की जांच सीआइडी करती है. झारखंड में सीआइडी के पास मुठभेड़ के दर्जनों मामले लंबित हैं. पुलिस के सीनियर अफसर बताते हैं : मुठभेड़ के उन्हीं मामलों की जांच पूरी की जाती है, जिसमें पुलिस की गलती नहीं होती या जिन मामलों को लेकर पुलिस अफसरों को गैलेंट्री अवार्ड मिलने की संभावना रहती है. अन्य मामलों की जांच के नाम पर सीआइडी के अधिकारी चुप्पी साधे रहते हैं.
मंगल होनहागा कांड : वर्ष 2010 में सारंडा में सीआरपीएफ और नक्सलियों के बीच कथित रूप से मुठभेड़ हुई थी. मुठभेड़ की इस घटना में एक ग्रामीण मंगल होनहागा की मौत हो गयी थी. इस मामले की जांच अभी तक सीआइडी ने पूरी नहीं की है. तब के सीनियर अफसरों ने मामले में सीआरपीएफ के अधिकारियों को मंगल होनहागा की हत्या के लिए जिम्मेदार माना था.
जांच भी अधूरी, विभागीय कार्यवाही भी रुकी : गुमला के गुरदरी में तीन सितंबर 2014 को पुलिस द्वारा ट्रक पर की गयी फायरिंग में दो-तीन ग्रामीण मारे गये थे. तत्कालीन डीआइजी ने मजदूर निलेश उरांव और हीरालाल उरांव की मौत के लिए स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ को जिम्मेदार ठहराया था. साथ ही कहा था कि घटना की वजह पैनिक फायरिंग और अभियान के नेतृत्व में कमी थी. स्पेशल ब्रांच ने भी ऐसी ही रिपोर्ट दी थी. इस मामले की जांच भी सीआइडी ने अभी तक पूरी नहीं की है. पुलिस मुख्यालय ने विभागीय कार्यवाही को भी स्थगित कर दिया.
फरजी मुठभेड़ की जांच भी रुकी :वर्ष 2014 में रांची पुलिस ने नक्सली प्रसाद लकड़ा को अनगड़ा थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया था. घटना में पुलिस ने कई सौ चक्र गोली चलाने की बात कही थी. गिरफ्तारी से पहले मुठभेड़ दिखायी गयी थी. कुछ दिन बाद रांची जोन के तत्कालीन आइजी ने अपनी रिपोर्ट में प्रसाद लकड़ा की गिरफ्तारी के दौरान मुठभेड़ और गोली चलने की बात को संदेहास्पद बताया था. इस मामले की जांच भी सीआइडी ने अभी तक पूरी नहीं की है.
सतबरवा मुठभेड़ : चौकीदार को बनाया स्वतंत्र गवाह
पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र में पिछले साल आठ जून को कथित मुठभेड़ में एक नक्सली समेत 12 लोगों की मौत के मामले की सीआइडी जांच भी अभी तक पूरी नहीं हुई है. इस बीच घटना से जुड़ी कुछ तसवीरें सामने आयीं, जिससे पुलिस की मुठभेड़ पर सवाल उठे हैं. जब्ती सूची से यह तथ्य भी सामने आया है कि पुलिस ने जिन दो लोगों को स्वतंत्र गवाह बताया है, वह असल में पुलिस विभाग के आदमी हैं. पुलिस ने जब्ती सूची में चौकीदार मजीद मियां और कृष्णा मांझी को गवाह बनाया, जबकि घटनास्थल पलामू शहर से 12-14 किमी की दूरी पर है और जिस सड़क के पास मुठभेड़ की घटना हुई थी, उस सड़क पर लोगों की आवाजाही भी बहुत होती है. जब्ती सूची दिन में तैयार की गयी थी. ऐसे में पुलिस को स्वतंत्र गवाह न मिलना मुठभेड़ पर सवाल खड़ा करता है. उल्लेखनीय है कि घटना से जुड़ी तसवीरों में एक हथियार में मैग्जीन और बोल्ट नहीं है, जबकि एक अन्य हथियार में बोल्ट है, लेकिन मैग्जीन नहीं. पुलिस ने जब्ती सूची में यह लिखा है कि जब्त किये गये सभी आठ हथियारों के बैरल से बारूद की गंध मिली है.
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