मलूटी मंदिरों के जीर्णोद्धार कार्य पर विवाद, काम बंद
रांची: दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी गांव में है मंदिरों का समूह. नष्ट हो रहे इन मंदिरों का इन दिनों जीर्णोद्धार चल रहा है. पर शुरुआती चरण में ही इसमें विवाद हो गया है और काम अभी बंद है. दरअसल, मलूटी के स्थानीय निवासी, इतिहासकार व लेखक तथा एसपी कॉलेज, दुमका के प्राचार्य […]
रांची: दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड के मलूटी गांव में है मंदिरों का समूह. नष्ट हो रहे इन मंदिरों का इन दिनों जीर्णोद्धार चल रहा है. पर शुरुआती चरण में ही इसमें विवाद हो गया है और काम अभी बंद है.
दरअसल, मलूटी के स्थानीय निवासी, इतिहासकार व लेखक तथा एसपी कॉलेज, दुमका के प्राचार्य डॉ सुरेंद्र झा ने ही सबसे पहले जीर्णोद्धार के तरीके पर सवाल उठाया था. मलूटी मंदिरों पर किताब लिखने वाले डॉ झा दिल्ली में मलूटी पर प्रजेंटेशन देने वाली उस टीम में भी शामिल थे, जिसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने इन मंदिरों के जीर्णोद्धार को मंजूरी दी थी. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्तूबर-2015 को संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्य का अॉनलाइन उदघाटन किया था.
इसलिए उठाये जा रहे हैं सवाल : मलूटी मंदिरों का जीर्णोद्धार ‘इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट’ कर रही है. डॉ सुरेंद्र झा के अनुसार यह संस्था इस काम के लिए नयी है और इसे जीर्णोद्धार का अनुभव कम है. उन्होंने सितंबर 2015 में शिकायत की थी कि जिस मूल रूप में ये मंदिर बने हैं तथा इनमें जो निर्माण सामग्री लगी है, उससे हटकर इसके जीर्णोद्धार की नयी शैली अपनायी जा रही है. यह किसी पुरातात्विक धरोहर को उसके मूल रूप में संरक्षित न करना तथा भविष्य में इसकी मजबूती को खतरे में डालना है. डॉ झा ने यह लिखित शिकायत मुख्यमंत्री सहित प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी. इसके बाद इसकी जांच अॉर्कियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इंडिया (एएसआइ) से कराने का निर्णय लिया गया. एएसआइ के क्षेत्रीय निदेशक पीके मिश्रा ने मलूटी जाकर वहां चल रहे कार्य पर अपनी रिपोर्ट खेलकूद व कला संस्कृति विभाग से संबद्ध पुरातत्व विभाग को सौंपी है.
जानें मलूटी मंदिरों के बारे में : करीब 350 मीटर की परिधि में अवस्थित मिट्टी (टेरा कोटा) के बने इन मंदिरों का अपना अलग आकर्षण है. मलूटी के मंदिरों का इतिहास 18वीं शताब्दी से शुरू होता है. तब तत्कालीन राजा बाज बसंत के मन में मलूटी को मंदिरों का शहर बनाने का विचार आया. उसी दौरान वहां मिट्टी के मंदिर बनने शुरू हुए. इसके बाद 19वीं सदी की शुरुआत तक यहां कुल 108 मंदिर बना दिये गये. समय के साथ देख-रेख के अभाव में कुछ मंदिर नष्ट हो गये. अब यहां बचे 62 मंदिरों का जीर्णोद्धार व संरक्षण किया जाना है.
राजपथ पर दिखे थे मलूटी के मंदिर : झारखंड को पहचान देनेवाले इन मंदिरों को पूरे देश ने तब देखा, जब गणतंत्र दिवस (26 जनवरी-2015) की परेड में झारखंड की ओर से मलूटी के मंदिरों की झांकी राजपथ पर निकली थी. इन मंदिरों के महत्व को देखते हुए ही भारत सरकार ने इनके संरक्षण व जीर्णोद्धार के लिए 13वें वित्त आयोग के जरिये धन मुहैया कराया है. पहले चरण में राजोरबारी क्षेत्र के 20 मंदिरों का संरक्षण किया जाना है. यह काम राज्य सरकार की अोर से इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट नाम की संस्था को मिला है. पहले चरण के इन 20 मंदिरों का जीर्णोद्धार वर्ष 2018 के अंत तक कर लेने का लक्ष्य है. इसके बाद दूसरे चरण का काम शुरू होगा. अभी दो मंदिरोंं का कार्य लगभग पूर्ण हुआ है तथा काम बंद है.
मैंने पूरी रिपोर्ट पढ़ी नहीं है, पर यह मालूम है कि इसमें जीर्णोद्धार व संरक्षण कार्य के रेक्टिफिकेशन (सुधार) की बात कही गयी है. हमलोग 15 जुलाई को मलूटी जा रहे हैं. वहां मंदिरों की स्थिति देखने के बाद ही आगे कुछ कहा जा सकता है़
अशोक कुमार, नवनियुक्त निदेशक, पुरातत्व
मलूटी मंदिरों के जीर्णोद्धार कार्य में सफेद सीमेंट व कहीं-कहीं लोहे का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. टेराकोटा के मंदिरों के जीर्णोद्धार का यह तरीका सही नहीं कहा जा सकता. रिपोर्ट में क्या है, यह देखने के बाद यदि जरूरत हुई, तो फिर से पीएमअो को शिकायत करूंगा.
डॉ सुरेंद्र झा, मलूटी मंदिरों के विशेषज्ञ व इतिहासकार
सीमेंट का इस्तेमाल मंदिर के फाउंडेशन में किया जा रहा है. दरअसल मंदिरों में फाउंडेशन है ही नहीं. एएसआइ ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ यह सुधार करने को कहा है कि मंदिरों के ऊपरी हिस्से (शिखारा) को सुरखी-चूना के मूल रंग में ही रहने दिया जाये, उसे अलग से रंगा न जाये. बस यही बात है.
एसडी सिंह, राज्य प्रमुख, इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट