हर महीने का खर्च पांच करोड़, कमाई सिर्फ ढाई करोड़

खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (माडा) अपने खर्च का आधा भी नहीं कमा पा रहा है. कर्मियों को 30 माह से वेतन नहीं मिल रहा है. राज्य का यह संस्थान अब तक अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहा हैं. इनके जिम्मे पूर्व में जो काम थे, उनमें से कई काम अब बंद हो गये हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 24, 2016 8:16 AM
खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (माडा) अपने खर्च का आधा भी नहीं कमा पा रहा है. कर्मियों को 30 माह से वेतन नहीं मिल रहा है. राज्य का यह संस्थान अब तक अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहा हैं. इनके जिम्मे पूर्व में जो काम थे, उनमें से कई काम अब बंद हो गये हैं.
माडा एक स्वतंत्र एजेंसी है, जिसके संचालन पर सरकार की ओर से कोई राशि खर्च नहीं करने का प्रावधान है. यह रियायती दर पर विभिन्न सेवाएं राज्य सरकार को उपलब्ध कराता है. इसके बदले में कभी कभार सरकार से उसे आर्थिक मदद मिल जाती है.
धनबाद/रांची : माडा में अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन पर प्रतिमाह 2.25 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. कोर्ट के आदेश पर प्रतिमाह 1.75 करोड़ रुपये सेवानिवृत्त कर्मियों का बकाया भुगतान होता है. जलापूर्ति प्लांट के मेंटेनेंस पर 75-80 लाख प्रतिमाह का खर्च होता है. यानी कुल मिला कर प्रति माह पांच करोड़ रुपये से अधिक का खर्च है.
वर्तमान में माडा के आय का मुख्य स्रोत जलापूर्ति व नक्शा है, जिससे प्रति माह लगभग 2.5 करोड़ की आय होती है. बाजार फीस से आय अब होना शुरू हुआ है. माडा में आय की राशि तिमाही होती है. इसलिए अत्यधिक खर्च के कारण हर माह माडा कर्ज के बोझ से दबता जा रहा है. यही वजह है कि माडा में कर्मियों का 30 माह का वेतन अब तक बकाया हो चुका है और यह क्रम जारी है .
10 साल से बोर्ड का गठन नहीं : माडा में बोर्ड का गठन 2006 के बाद अब तक नहीं हुआ है.
इसके अंतिम अध्यक्ष विधायक फुलचंद मंडल थे. प्रथम अध्यक्ष सह एमडी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कृष्ण पाटंकर थे. माडा में एमडी का पद पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को मिलता था. 1996 के बाद बोर्ड गठित नहीं होने की स्थिति में एमडी का पद राज्य सेवा के अधिकारियों से भरना शुरू हो गया. बोर्ड का गठन नहीं होने की स्थिति में पहले सदस्य की भूमिका में रहनेवाली राज्य सरकार के हाथ माडा की पूरी संचालन व्यवस्था आ गयी. ऐसे में राज्य सरकार माडा से अपना फायदा तो उठाती रही, लेकिन इसकी संचालन व्यवस्था दुरुस्त रखने के प्रति उदासीन रही.
माडा की आय का स्रोत एक-एक कर बंद होता गया. इसके संचालन के लिए नये रास्ते नहीं खोले गये. पहले मिले आय के कुछ स्रोत भी न्यायिक प्रक्रिया में अटके रहने के कारण कम हो गये. बाजार फीस, लैंडलूज टैक्स इसके उदाहरण है.
झरिया पुनर्वास योजना जो माडा एक्ट के तहत माडा के अधिकार क्षेत्र का था उसे भी फायदे के लिए राज्य सरकार ने अपने जिम्मे में ले लिया. राज्य सरकार का माडा के प्रति अन्यायपूर्ण रवैया का यह ताजा उदाहरण है.
अवैध कमाई का अड्डा भी
माडा में अवैध कमाई की गणित का स्रोत मुख्य रूप से जलापूर्ति कनेक्शन व नक्शा पास करने के एवज रिश्वतखोरी है. जलापूर्ति के प्रति कनेक्शन में पांच हजार से 20 हजार रुपये की आमदनी होती है. नक्शा पास करने में दस हजार से लेकर लाखों तक की कमाई है. पहले खाद्य सामग्रियों की जांच की आड़ में भी नाजायज होती थी, लेकिन यह सुविधा अब बंद हो चुकी है.
माडा के कार्य : अपने क्षेत्र में दस लाख की आबादी के लिए जलापूर्ति करना, भवन का नक्शा पास करना, स्वास्थ्य सेवा में एकमात्र सफाई.
जो सेवाएं बंद कर दी गयीं
लाइसेंसिंग, लोक विशलेषक प्रयोगशाला से खाद्य सामग्री व जल की जांच-पड़ताल व धनबाद नगर निगम क्षेत्र का नक्शा.

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