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लगातार घटती जा रही है कोयला की मांग

रांची: कोयला की मांग घट रही है. इस कारण कोयला कंपनियां उत्पादन भी कम कर रही हैं. एक-दो को छोड़ किसी भी कंपनी का उत्पादन लक्ष्य से अधिक नहीं है. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर कोयला की कमी को लेकर चिंता नहीं है. सभी पावर प्लांट व स्टील इंडस्ट्रीज के पास पर्याप्त कोयला है. कोयला […]

रांची: कोयला की मांग घट रही है. इस कारण कोयला कंपनियां उत्पादन भी कम कर रही हैं. एक-दो को छोड़ किसी भी कंपनी का उत्पादन लक्ष्य से अधिक नहीं है. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर कोयला की कमी को लेकर चिंता नहीं है. सभी पावर प्लांट व स्टील इंडस्ट्रीज के पास पर्याप्त कोयला है. कोयला का पर्याप्त भंडार होने के कारण मजदूर यूनियनें वेतन समझौता के लिए ज्यादा दबाव बनाने से बच रही हैं.
कोयला की मांग कम होने को लेकर विशेषज्ञ और यूनियनों के अपने-अपने तर्क हैं. पिछले साल कोल इंडिया ने अप्रैल से जून तक कुल 12.3 मिलियन टन कोयला इ-ऑक्शन के माध्यम से बेचा है. पिछले साल इस अविधि के दौरान करीब 14.5 मिलियन टन कोयला इ-ऑक्शन के माध्यम से बेचा गया था. पिछले साल इ-ऑक्शन के माध्यम से कोयले की कीमत बेस प्राइस से 40 गुना तक अधिक मिली थी. इस बार मात्र 20 फीसदी ही मिली है. पिछले साल इ-ऑक्शन में 17577 बिडर (बोली लगाने वाले) आये थे. इस बार यह संख्या मात्र 12881 है. कोल इंडिया के एक बड़े अधिकारी कहते हैं कि ऊपर से उत्पादन बढ़ाने का बहुत दबाव नहीं है. पहले कोयला की कमी होते ही दिल्ली, पंजाब, हरियाणा अंधेरे में हो जाता था. यहां पावर प्लांटों में कोयला झारखंड से ही जाता था. लेकिन, पिछले छह माह से स्थिति ऐसी नहीं है.
क्या है मांग कम होने का तर्क
कोल इंडिया के पूर्व निदेशक जेएन सिंह कहते हैं कि कोयला की मांग कम होने के कई कारण नजर आते हैं. भारत सरकार की ओर से जितने पावर हाउस चालू होने का पूर्वानुमान किया गया था, उतने प्लांट शुरू नहीं हो पाये. करीब-करीब 100 से अधिक स्पंज आयरन की कंपनियां बंद हो गयीं. इनको आयरन ओर नहीं मिल पा रहा था. भारत सरकार ने जितना औद्योगिक विकास सोचा था, उतना नहीं हो पाया. कई कंपनियों ने अच्छे ग्रेड के कोयला की कीमत कम कर दी है. इसके बावजूद ग्राहक नहीं मिल रहे हैं.
सीटू नेता आरपी सिंह कहते हैं कि सरकार झूठा प्रचार कर रही है कि औद्योगिक विकास हो रहा है. यह इसी बात से पता चलता है कि कोयला की मांग घट गयी है. बिजली की मांग घट गयी है. असल में देश मंदी के दौर में है. पहले प्रोडक्शन पर जीडीपी होता था. अब टैक्स जोड़ कर जीडीपी तय किया जा रहा है. यह लोगों में भ्रम पैदा करनेवाला है.
बीएमएस नेता पीके दत्ता बताते हैं कि भारत सरकार गैर पारंपरिक ऊर्जा के क्षेत्र में जिस तरह काम कर रही है, उसका असर कोयला की मांग पर पड़ा है. राजस्थान व गुजरात में सौर ऊर्जा इतनी हो रही है कि कोयला की मांग कम हो गयी है. बड़े पैमाने पर सीएफएल के प्रयोग से भी बिजली की खपत कम हुई है.

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