साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि डॉ केसरी ने अलग राज्य के आंदोलन के साथ-साथ भाषा-संस्कृति के आंदोलन को भी गति दी थी. जेवियर कुजूर ने कहा कि डॉ केसरी हमेशा कहते थे कि झारखंड में बौद्धिक ताकत की कमी है. अनिल अंशुमन ने कहा कि डॉ केसरी सभी जन आंदोलनों के साथ रहकर वर्तमान ग्लोबल कॉरपोरेट हमलों का विरोध करते रहे. जुगल पाल ने कहा कि रांची के अलबर्ट एक्का चौक से लेकर नेतरहाट के गांवों में चल रहे जन आंदोलनों तक में पहुंच जानेवाले वे एकलौते साहत्यिकार थे.
एमजेड खान व प्रो मिथिलेश ने कहा कि झारखंड आंदोलन को वैचारिक-सांस्कृतिक आधार देने में डॉ रामदयाल मुंडा के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी. वहीं हुसैन कच्छी ने केसरी जी को सरल इंसान बताया. इस अवसर पर शंभु महतो, शशिभूषण पाठक, बशीर अहमद, दामोदर तुरी, जेरोम जेराल्ड, सोनी तिरिया, शांति सेन, ऐति तिर्की, सुखदेव प्रसाद, अखिलेश, सबा परवीन, तरुण आदि मौजूद थे.