माटी के लिए एकजुटता जरूरी : मरांडी

रांची: राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि यह आदिवासियों के लिए विकट समय है़ करो या मरो की लड़ाई के बिना यह संकट दूर नहीं हो सकती़ झारखंड को बाहरियों से आजाद कराना है़ हमें माटी के लिए एकजुटता दिखानी होगी़ वे झारखंड आदिवासी संघर्ष मोरचा द्वारा सोमवार को सीएनटी व एसपीटी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2016 1:01 AM
रांची: राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि यह आदिवासियों के लिए विकट समय है़ करो या मरो की लड़ाई के बिना यह संकट दूर नहीं हो सकती़ झारखंड को बाहरियों से आजाद कराना है़ हमें माटी के लिए एकजुटता दिखानी होगी़ वे झारखंड आदिवासी संघर्ष मोरचा द्वारा सोमवार को सीएनटी व एसपीटी एक्ट के प्रस्तावित संशोधन अध्यादेश-2016 और घोषित स्थानीयता नीति पर मेपल वुड में आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे़.

इस संगोष्ठी में पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की, पूर्व विधायक देवकुमार धान, पूर्व विधायक बहादुर उरांव, पूर्व एमएलसी छत्रपति शाही मुंडा व अन्य शामिल हुए़ अधिवक्ता रश्मि कात्यायन व रविंद्रनाथ राय ‘मणि बाबू’ ने कानूनी पहलुओं की जानकारी दी़ संगोष्ठी में आरइवी कुजूर, हिमांशु कच्छप, पूर्व मेयर रमा खलखो, प्रेमशाही मुंडा, अजय तिर्की, शिवा कच्छप, मोती कच्छप, अनिता गाड़ी, राजकुमार नागवंशी, पीसी मुरमू, जयंत अग्रवाल, उरबानुस मिंज, निर्मल समद, अरुण बरवा, सामुएल नाग, असफ टेटे, अटल खेस आदि थे.

जमीन पर नियंत्रण का अर्थ सामाजिक संरचना पर नियंत्रण
आदिवासी कानूनों के जानकार रश्मि कात्यायन ने कहा कि आदिवासी कभी भी अपनी जमीन पर अपना नियंत्रण न छोड़े़ं यदि क्षेत्र है, तभी आदिवासी है़ं दशकों पहले असम गये यहां के हजारों आदिवासियों को वहां अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है़ जमीन पर नियंत्रण का अर्थ सामाजिक संरचना पर नियंत्रण है़ सीएनटी एक्ट में 21 बी जोड़ कर यह प्रयास किया गया है कि सरकार के हाथ में गैर कृषि भूमि के विनियमन (रेगुलेशन) का अधिकार आ जाये़ सरकार इसके भौगोलिक क्षेत्र का निर्धारण कर पाये़ यह वस्तुत: अनुसूचित क्षेत्रों को तोड़ने का प्रयास है़ वर्तमान टीएससी बिहार के 1957 के कानून से संचालित है़ ट्राइबल जेनरल काउंसिल की बात होनी चाहिए, जिसमें समाज के हर तबके का प्रतिनिधित्व हो सकता है़.
स्थानीयता के निर्धारण में खतियान जरूरी
अधिवक्ता पांडेय रविंद्रनाथ राय ‘मणि बाबू’ ने कहा कि स्थानीयता के निर्धारण में खतियान की बात इसलिए जरूरी है, क्योंकि इसके कॉलम-टू में व्यक्ति की ‘नामियत, वल्दियत, कैमियत और सकूनियत’ अर्थात नाम, पिता का नाम, जाति, कहां के रहनेवाले हैं स्पष्ट रूप से दर्ज है़ संविधान में भी एेसे लोगों के संरक्षण की बात कही गयी है़ यदि आधार बदला जाता है, तब इसमें वैसे लोगों का भी समावेश हो सकता है, जो यहां की संस्कृति, भाषा, जाति विशेष से संबंध नहीं रखते़ सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन से सरकार की यही मंशा झलकती है कि वह पूंजीपतियों को लाभ देना चाहती है़ वर्तमान संधोधन अध्यादेश में सीएनटी एक्ट की धारा 49 में संशोधन कर जमीन अंतरण का मुंह चौड़ा किया गया है, वहीं 21 बी जोड़ कर जमीन की कृषि उपयोगिता को बदला जा रहा है़ ये दोनों बातें खतरनाक है़ं कार्यक्रम का संचालन डाॅ करमा उरांव ने किया़

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