गुरु सम्मान में बोले सीएम रघुवर, शिक्षा का स्वरूप समान हो
प्रभात खबर के गुरु सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि वर्तमान में गुरु-शिष्य परंपरा का ह्रास हुआ है. इससे संबंधित कई घटनाएं हमें देखने व सुनने को मिलती हैं. हम सब को मिल इसमें बदलाव लाना है. समारोह में 69 स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षकों को सम्मानित किया गया. रांची: मुख्यमंत्री रघुवर […]
प्रभात खबर के गुरु सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि वर्तमान में गुरु-शिष्य परंपरा का ह्रास हुआ है. इससे संबंधित कई घटनाएं हमें देखने व सुनने को मिलती हैं. हम सब को मिल इसमें बदलाव लाना है. समारोह में 69 स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षकों को सम्मानित किया गया.
रांची: मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि हमें अपने संस्कार व व्यवहार से फिर से गुरु-शिष्य परंपरा को वापस लाना होगा. गुरु के बल पर ही हम आगे बढ़ सकते हैं. देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन को महान बनाने में गुरुजनों का अहम योगदान है. मुख्यमंत्री शनिवार को रिम्स के ऑडिटोरियम में प्रभात खबर की ओर से आयोजित गुरु सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा : मां व शिक्षक ही किसी व्यक्ति को महान बना सकते हैं. अगर हमें कर्मयोगी बनना है, तो हमें हर हाल में मां और शिक्षक का सम्मान करना होगा.
सरकार ने शिक्षा पर किया है फोकस : मुख्यमंत्री ने कहा : अमीर-गरीब के बच्चों की शिक्षा का स्वरूप एक समान होना चाहिए, ताकि सरकारी स्कूल के बच्चों में हीन भावना नहीं आये. सरकारी स्कूल के शिक्षकों व बच्चों को निजी स्कूलों में बुला कर वहां के वातावरण से अवगत करना चाहिए. ऐसा करने से सरकारी स्कूल के शिक्षक और छात्र भी यहां के अनुशासन का अनुसरण कर सकते हैं.
इसकी शुरुआत रांची से होनी चाहिए. उन्होंने कहा : राज्य में गरीबी का मुख्य कारण है अशिक्षा. सरकार बनने के बाद हमने शिक्षा को फोकस किया है. हमें राज्य से गरीबी को समाप्त करने के लिए सभी को शिक्षित करना होगा.
सरकारी स्कूल के बच्चे अब नीचे नहीं बैठेंगे : मुख्यमंत्री ने कहा : यह दुर्भाग्य है कि आजादी के 70 साल बाद भी झारखंड के सिर्फ 10 हजार सरकारी स्कूल में ही बेंच-डेस्क हैं. सरकार ने सभी स्कूलों में बेंच-डेस्क लगाने का फैसला किया है. अब सरकारी स्कूल के बच्चे नीचे बैठ कर नहीं पढ़ेंगे. उन्होंने कहा : आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में शिक्षा ने व्यवसायीकरण का रूप ले लिया है. अमीर लोगों के बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हैं और गरीब का बच्चा नगरपालिका के स्कूल में जाता है. इस धारणा को बदलने की जरूरत है.