सीएनटी-एसपीटी एक्ट के लिए भी खतरनाक है कैंपा कानून

कार्यक्रम.झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के 13वें वार्षिक सम्मेलन में बोले सुशील रांची : कैंपा कानून (कंपनसेटरी एफॉरेस्ट्रेशन फंड एक्ट/ क्षतिपूरक वन रोपण फंड अधिनियम) वनाश्रितों के लिए डेथ वारंट है़ यह कानून सिर्फ वनाधिकार ही नहीं, सीएनटी व एसपीटी एक्ट को भी प्रभावित करता है़ इस कानून के माध्यम से खनन कंपनियों को वनभूमि देने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 28, 2016 5:14 AM
कार्यक्रम.झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के 13वें वार्षिक सम्मेलन में बोले सुशील
रांची : कैंपा कानून (कंपनसेटरी एफॉरेस्ट्रेशन फंड एक्ट/ क्षतिपूरक वन रोपण फंड अधिनियम) वनाश्रितों के लिए डेथ वारंट है़ यह कानून सिर्फ वनाधिकार ही नहीं, सीएनटी व एसपीटी एक्ट को भी प्रभावित करता है़ इस कानून के माध्यम से खनन कंपनियों को वनभूमि देने का बड़ा षड्यंत्र चल रहा है़ इसके खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है़ उक्त बातें सारंडा क्षेत्र के सुशील बारला ने कही़सुशील बारला मंगलवार को गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज सभागार में झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के 13वें वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम का समापन 28 सितंबर बुधवार को होगा़
उन्होंने कहा कि सारंडा क्षेत्र 700 पहाड़ों का जंगल है और वहां रहने वाले अपनी आजीविका के लिए वनभूमि पर आश्रित है़ वर्ष 2000 से पहले वहां की 14,000 हेक्टेयर जमीन खनन के लिए दी गयी़ इसके बाद 10,000 हेक्टेयर भूमि दी गयी. 2006 में वनाधिकार कानून लागू होने के बाद वनाश्रितों द्वारा जीवन यापन के लिए वनभूमि का पट्टा मांगने पर कम पट्टा दिया जा रहा है़
संगठित होकर लड़ाई लड़नी होगी : कार्यक्रम में राजस्थान के वनाधिकार कार्यकर्ता विरेन लोबो ने कहा कि देश के सामुदायिक संसाधनों पर नियंत्रण के लिए छोटे किसान समुदाय, छोटे मछुआरा समुदाय, पशुपालक समुदाय और वनाश्रित समुदायों को संगठित होकर लड़ाई लड़नी होगी़ इस अवसर पर प्रो संजय बसु मल्लिक, बहादुर उरांव, वीएस रॉय डेविड, इंदु नेताम, गोपाल अय्यर, तुषार दास आदि लोग मौजूद थे.
वन रोपण से नष्ट हो रही जैव विविधता : जॉर्ज मोनीपली ने कहा कि वन विभाग द्वारा जंगल लगाने के नाम पर पुराने पेड़ काट दिये जाते हैं और सागवान के पेड़ लगाये जाते है़
उसके नीचे कोई और पौधा नहीं पनपता़ इससे जैव विविधता नष्ट होती है़ जेवियर कुजूर ने कहा कि पिछले साल कैंपा कानून के तहत वनभूमि लेने वाली कंपनियों ने केंद्र सरकार के पास 42,000 करोड़ रुपये जमा किये. इसमें 3039 करोड़ रुपये झारखंड के लिए आवंटित है़ इन पैसों से खाली पड़ी जमीन पर वनरोपण किया जायेगा़ वन विभाग उस वनभूमि पर भी वनरोपण कर देता है, जो गांव वालों की होती है़ राज्यपाल को वापस करेंगे वनभूमि का पट्टा : सुशील ने बताया कि पश्चिमी सिंहभूम के जिन लोगों को दावा के अनुरूप वनभूमि का पट्टा नहीं मिला है, वे नवंबर के पहले पखवारे में राज्यपाल को अपना पट्टा लौटायेंगे. सारंडा के केंद्र में 17 गांव हैं, जिसमें 431 परिवार के 1918 लोग रहते है़ वहां के ज्यादातर लोगों को पट्टा नहीं मिला है़ जिसे मिला भी है, तो 20 से 25 डिसमिल.

Next Article

Exit mobile version