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झारखंड में महफूज हैं नॉर्थ-इस्ट के लोग, कहा यहां भय नहीं लगता

रांची/मांडरः भारत की अखंडता को तार-तार करनेवाले शख्स कभी गौर से अपने गिरेबां में नहीं झांकते. वे यह समझते ही नहीं कि भारत समासिक संस्कृति का वाहक है. समासिकता में ही इसकी आत्मा बसती है. ऐसी उदारता के कारण विश्व आज भी भारत की कीर्ति गाथा के सामने नतमस्तक होता है. लेकिन अपने ही देश […]

रांची/मांडरः भारत की अखंडता को तार-तार करनेवाले शख्स कभी गौर से अपने गिरेबां में नहीं झांकते. वे यह समझते ही नहीं कि भारत समासिक संस्कृति का वाहक है. समासिकता में ही इसकी आत्मा बसती है. ऐसी उदारता के कारण विश्व आज भी भारत की कीर्ति गाथा के सामने नतमस्तक होता है. लेकिन अपने ही देश में जब इस विशेषता की अक्षुण्णता पर आंच आने लगे तो फिर हम कहीं के नहीं रह पायेंगे.

मुट्ठी भर षड्यंत्रकारी अपने ही राज्य और क्षेत्र के बहुसंख्यक लोगों को दूसरी जगह टेढ़ी नजरों से सामना करने को मजबूर कर देते हैं. झारखंड इस मायने में एक आदर्श और सुनहली तस्वीर प्रस्तुत करता है. दिल्ली में नार्थ-इस्ट के लोगों के साथ मारपीट की घटना से झारखंड में जीवन गुजार रहे नॉर्थ-इस्ट के लोग चिंतित हैं. यहां नॉर्थ-इस्ट के कई लोग हैं, इनमें कई सरकारी व प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत हैं. काफी संख्या में विद्यार्थी यहां रह कर अध्ययन व अध्यापन कर रहे हैं. ये सभी यहां अलहदा और महफूज महसूस करते हैं. वे कहते हैं कि झारखंड में उन्हें हर तरह का सपोर्ट मिलता है. वे इसकी दुहाई देते हैं.

असम से वर्ष 2006 में रांची आया. यहां यूएनआइ में योगदान किया. उसके बाद ब्यूरो चीफ बना. वर्ष 2013 में केंद्रीय विवि में योगदान किया. झारखंड में आया, तो हिंदी नहीं जानता था. यहां के लोगों से ही सीखा. आज काम करने में कोई परेशानी नहीं होती है. सभी लोगों का भरपूर सहयोग मिलता है. झारखंड को कभी अलग नहीं समझा. इसके विकास में हर किसी को साथ निभाने की आवश्यकता है.

प्रशांत वोरा

वर्ष 2006 में असम से झारखंड आयी. विशेषकर रांची के डीपीएस स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षिका के रूप में योगदान किया. झारखंड में कभी महसूस नहीं हुआ कि हमलोग लोग आसाम से अलग जगह पर हैं. लोगों का पूरा सहयोग मिलता है. मेरे दोनों बच्चे भी यहीं पढ़ाई कर रहे हैं. कई जगहों पर नार्थ-इस्ट के लोगों के साथ बुरा व्यवहार गलत है. सभी भारत के ही निवासी हैं. एकता रहेगी, तो देश मजबूत होगा.

रूली

मेघालय से रांची सात माह पूर्व आया हूं. दिल्ली मे नार्थ इस्ट के छात्र नीडी के साथ जो हुआ़ वह बेहद दु:खद है़ भारत के छात्र विदेशों में पढ़ते हैं. उनके साथ वहां कोई घटना होती है तो हम अफसोस करते हैं, लेकिन अपने ही देश में इस तरह की घटना हो तो भारत के भविष्य के लिए यह अच्छा नहीं है़ हालांकि जहां मैं पढ़ता हूं वह इन सबसे दूर है. वहां किसी से कोई भेदभाव नहीं है. सभी मिलजुल कर रहते है़ यहां नार्थ इस्ट के कई छात्र-छात्रएं पढ़ते हैं, जिनमें से किसी को कभी कैम्पस के अलावा बाहर भी इस तरह की भावना देखने को नहीं मिलती है़

पेइनजनाइ मलाइ

असम से डेढ़ साल पहले केंद्रीय विवि रांची में आया. कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक है़ इसके बावजूद अपने ही देश मे नार्थ इस्ट के छात्रों से इस तरह का व्यवहार बहुत खराब है़ लेकिन यह सुखद है कि झारखंड में ऐसा कुछ नहीं है़ यहां के लोग बेहद अच्छे हैं और सभी दोस्ताना व्यवहार करते हैं.

अपूर्वा शर्मा राय

त्रिपुरा से चार साल पहले झारखंड आया हूं. यहां का माहौल बहुत ही अच्छा है. किसी प्रकार का भय नहीं है. सभी लोग मिलनसार हैं. दिल्ली में जो हुआ वह बहुत गलत हुआ़ झारखंड में कभी भी नार्थ इस्ट के छात्र अपने को असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.

सुबोदीप साहा

त्रिपुरा से झारखंड आये कई साल हो गये. दिल्ली मे जो हुआ बेहद बुरा हुआ़ यह कड़वी सचाई है कि नार्थ इस्ट के छात्रों के साथ दिल्ली के अलावा कई अन्य राज्यों में भी भेदभाव किया जाता है. लेकिन झारख्ांड-बिहार में ऐसा कुछ नहीं है़ हमलोग पढ़ने-लिखने आये हैं. सभी का सहयोग मिलता है. कहीं भी आते-जाते हैं, कोई भय नहीं लगता है. सभी लोग मिलनसार हैं.

नवनीता साहा

असम से रांची चार साल पहले ही आया हूं. यहां किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है. सभी लोग मिलजुल कर रहते हैं. कभी भी विद्वेष की भावना किसी में नहीं आयी. दिल्ली की घटना बेहद दुखद थी़ भारत एक है. इसे र्सिफ किताब व भाषण तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए़ यहां नार्थ इस्ट के छात्रों को कभी भी कोई शिकायत नहीं मिली.

दिव्याश्री कौशिक

गुवाहाटी का रहनेवाला हूं. झारखंड में आये तीन-चार साल हो गये. कभी भी अपने को असुरक्षित नहीं महसूस किया. सभी लोग एक जैसा रहते हैं. दिल्ली की घटना बेहद दु:खद है. झारखंड मे ऐसा कुछ नहीं है़ यहां नार्थ इस्ट के छात्र अपने को असुरक्षित महसूस नहीं करत़े यहां के लोगों का व्यवहार काफी दोस्ताना है़ अपने कॉलेज कैंपस से बाहर कई लोगों से दोस्ती है.

कौस्तुभ डे

मणिपुर से रांची आकर केंद्रीय विवि में टेक्निकल अस्सिटेंट के पद पर कार्यरत हूं. लगभग पांच साल हो गये. यहां कभी भी जगह को लेकर परेशानी नहीं हुई. कभी भी कोई परेशानी होती है, तो यहीं के लोग मदद भी करते हैं. कभी भी असुरक्षित नहीं रहा. दिल्ली की घटना बेहद अफसोसजनक है. हम यहां अपने-आप को बेहद सुरक्षित महसूस करते हैं.

अजैन्गा पामाई

छह माह पहले ही रांची में आकर मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही हूं. यहां के लोग अच्छे हैं. नस्ली भेदभाव या टिप्पिणी नहीं करत़े यहां वह सुरक्षित महसूस करते हैं. दिल्ली में पूर्वोत्तर के छात्र नीडो की हत्या ने उन्हें उद्वेलित तो किया, पर मन में किसी के प्रति घृणा नहीं भरी है़

तिगानलुंग रिखी पानम

मणिपुर से आठ माह पहले रांची में आकर मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू की है. यहां पर किसी तरह का भेदभाव महसूस नहीं किया़ दिल्ली की घटना ने उन्हें तो भयभीत नहीं किया, पर पूर्वोत्तर में रहनेवालों में भय और आशंका का संचार जरूर किया है़ वहां के अभिभावक को अब सतर्क रहना होगा. नॉर्थइस्ट के युवाओं की स्टाइल और लुक दूसरों से भिन्न होती है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि हम भारतीय नहीं हैं.

पीआर रिनशांग फिरेई

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