कुड़ुख के विकास के लिए एकजुटता जरूरी : स्पीकर

रांची: विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने कहा कि कुड़ुख भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास के लिए हमें एकजुट होकर काम करने की जरूरत है़ सरकारी-गैरसरकारी नौकरी करनेवालों को भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए़ सरकार ने तोलोंग सिकि लिपि को मान्यता दी है़ अब शिक्षकों की जिम्मेवारी है कि सरकार के साथ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2016 1:50 AM
रांची: विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने कहा कि कुड़ुख भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास के लिए हमें एकजुट होकर काम करने की जरूरत है़ सरकारी-गैरसरकारी नौकरी करनेवालों को भी समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए़ सरकार ने तोलोंग सिकि लिपि को मान्यता दी है़ अब शिक्षकों की जिम्मेवारी है कि सरकार के साथ बैठक कर मैट्रिक तक इसकी पढ़ायी के लिए पाठ्यक्रम तैयार करे़ं भाषा के विकास व इसे पढ़ने वालों की मदद के लिए प्रखंडवार सूची तैयार कर स्वेच्छादान ले सकते है़ं विधानसभा अध्यक्ष मंगलवार को केंद्रीय पुस्तकालय, मोरहाबादी में आयोजित ‘उरांव/ कुड़ुख भाषा की दशा एवं दिशा’ विषयक सेमिनार में बोल रहे थे़ इसका आयोजन उरांव/ कुड़ुख भाषा साहित्य कला एवं संस्कृति परिषद तथा अद्दी अखड़ा द्वारा किया गया था.
दिशाविहीनता को रोकती है भाषा: इससे पूर्व जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के एचओडी डॉ करमा उरांव ने कहा कि हमारी बोली अब भाषा का रूप ले रही है़ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने पर इसे एक संवैधानिक पहचान मिलेगी़ भाषा एक ताकत है, जो समाज में आते भटकाव और दिशाविहीनता को स्वत: रोक देती है़ भाषा समाज में एकजुटता लाती है और आंतरिक क्रांति पैदा करती है़ राज्य में भाषा, संस्कृति, परंपराओं के आधार पर नौकरियां मिलनी चाहिए़.
अपनी भाषा में बात करने का लें संकल्प : डॉ करमा उरांव ने कहा कि विश्वविद्यालय व महाविद्यालय स्तर पर सभी जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अलग-अलग विभाग होने चाहिए़ प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर तक इन भाषाओं को मान्यता मिलनी चाहिए़ सरकारी नौकरियों में इन भाषाओं को वेटेज (वजन) दिया जाये़ संकल्प लें कि आज से कुड़ुख में ही बातचीत करेंगे़ शीतल उरांव ने कहा कि अविभाजित बिहार में 30 वर्ष पहले स्कूलों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाअों की पढ़ायी व शिक्षक नियुक्ति के लिए संकल्प जारी किया था, पर ऐसा नहीं हुआ है़
कार्यक्रम में डॉ शांति खलखो, विनोबा भावे विवि के पूर्व वीसी डॉ रविंद्रनाथ भगत, पूर्व सांसद दुखा भगत, तोलोंग सिकि लिपि के जनक नारायण उरांव, शरण उरांव, प्रो चौठी उरांव, भीखू उरांव, महेश कुजूर, महेश भगत, नारायण भगत व अन्य मौजूद थे़.

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