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खनन रिपोर्ट से झारखंड के स्टील उद्योग पर संकट

रांची : केंद्र ने सारंडा क्षेत्र में आयरन ओर खनन की सीमा तय करने से संबंधित इंडियन काउंसिल ऑफ फाॅरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आइसीएफआरइ) की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है. इसके लिए राज्य सरकार से सहमति भी नहीं ली. रिपोर्ट में स्टील उद्योगों के लिए सालाना 131 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत का आकलन […]

रांची : केंद्र ने सारंडा क्षेत्र में आयरन ओर खनन की सीमा तय करने से संबंधित इंडियन काउंसिल ऑफ फाॅरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आइसीएफआरइ) की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है. इसके लिए राज्य सरकार से सहमति भी नहीं ली. रिपोर्ट में स्टील उद्योगों के लिए सालाना 131 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत का आकलन किया गया है. अधिकतम 90 मिलियन टन तक के खनन की ही अनुमति देने की बात कही गयी है. इससे झारखंड को नुकसान होगा. दिल्ली में सितंबर के पहले सप्ताह में हुई बैठक में राज्य सरकार ने इसका विरोध किया था. पर अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
चार अप्रैल को स्वीकारा रिपोर्ट : एमबी शाह कमीशन की अनुशंसा के आलोक में आइसीएफआरइ ने सारंडा का अध्ययन कर 28 मार्च 2016 को अपनी रिपोर्ट (कैरिंग कैपसिटी स्टडी रिपोर्ट) केंद्र सरकार को सौंपी थी. राज्य सरकार का पक्ष सुने बिना ही चार अप्रैल 2016 को केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय के विशेषज्ञों के दल ने रिपोर्ट स्वीकार कर ली. रिपोर्ट में राज्य के वर्तमान और प्रस्तावित स्टील उद्योगों के लिए आयरन ओर का आकलन किया गया है. 15.054 मिलियन टन की वर्तमान उत्पादन क्षमता के हिसाब से राज्य के स्टील उद्योगों के लिए सालाना 24.058 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत बतायी गयी है. पर इन उद्योगों को उत्पादन क्षमता 15.054 मिलियन टन से बढ़ा कर 21.874 मिलियन टन करना है. इसमें 35 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत होगी.
इसके अलावा प्रस्तावित अतिरिक्त 60 मिलियन टन उत्पादन क्षमता वाले उद्योगों के स्थापित होने पर अतिरिक्त 96.2 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत होगी. इस तरह राज्य को सालाना कुल 131 मिलियन टन आयरन ओर की जरूरत होगी. सारंडा में वर्तमान आधारभूत संरचना के हिसाब से अधिकतम 64 मिलियन टन आयरन ओर का खनन किया जा सकता है. पर केंद्र की ओर से रिपोर्ट स्वीकार करने के बाद आधारभूत संरचना बढ़ाने के बाद भी अधिकतम 90 मिलियन टन खनन और ढुलाइ हो सकेगी.
82000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में से सिर्फ 8774.78 पर खनन हो सकेगा : आइसीएफआरइ ने अपनी रिपोर्ट में पूरे सारंडा को तीन हिस्सों में बांटा है. एक हिस्से को ‘एलिफैंट कॉरिडोर’ और दूसरे को ‘सघन वन’ के रूप में चिह्नित किया है. इन दोनों क्षेत्रों में खनन सहित अन्य सभी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया है. सघन वन क्षेत्र में वनों का घनत्व 70 प्रतिशत बताया गया है. तीसरे हिस्से में खनन की अनुमति देने की बात कही गयी है. खनन क्षेत्र को भी दो हिस्सों (जोन-वन और जोन-टू) में बांटा गया है. जोन-वन और जोन-टू में भी सघन वन क्षेत्र में खनन की अनुमति नहीं देने की बात कही गयी है.

जोन-वन में कुल 10670.52 हेक्टेयर क्षेत्र चिह्नित है. इनमें 25.21 प्रतिशत क्षेत्र को सघन वन (2690.30 हेक्टेयर) माना गया है. अर्थात जोन-वन में सिर्फ 7980.22 हेक्टेयर पर ही खनन किया जा सकता है. जोन-टू के लिए 2161.59 हेक्टेयर क्षेत्र चिह्नित है. इनमें 63.24 प्रतिशत (794.56 हेक्टेयर) को सघन वन मानते हुए खनन प्रतिबंधित किया गया है. अर्थात जोन-टू में सिर्फ 794.56 हेक्टेयर पर ही खनन किया जा सकता है. इस तरह खनन के लिए चिह्नित दोनों हिस्सों में से कुल 8774.78 हेक्टेयर पर ही खनन किया जा सकता है.

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