क्यों न आपके खिलाफ कार्रवाई की जाये

रांची : पंचायती राज एवं एनआरइपी विभाग की सचिव वंदना डाडेल को सोशल मीडिया पर सरकार के विरुद्ध टिप्पणी महंगी पड़ रही है. कार्मिक विभाग ने सोमवार को श्रीमती डाडेल को स्पष्टीकरण जारी किया है. उनसे पूछा गया है कि क्यों नहीं उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाये. श्रीमती डाडेल को 15 दिनों में जवाब देने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2016 5:47 AM
रांची : पंचायती राज एवं एनआरइपी विभाग की सचिव वंदना डाडेल को सोशल मीडिया पर सरकार के विरुद्ध टिप्पणी महंगी पड़ रही है. कार्मिक विभाग ने सोमवार को श्रीमती डाडेल को स्पष्टीकरण जारी किया है. उनसे पूछा गया है कि क्यों नहीं उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाये. श्रीमती डाडेल को 15 दिनों में जवाब देने के लिए कहा गया है. निर्धारित समय में जवाब नहीं देने पर उनके विरुद्ध एकपक्षीय कार्रवाई की जायेगी.
अखिल भारतीय सेवा नियमावली का उल्लंघन : सरकारी अधिकारी द्वारा सोशल मीडिया पर सरकार के विरुद्ध की गयी टिप्पणी कर्तव्य परायणता का उल्लंघन माना जाता है. सोशल मीडिया पर सरकार के विरुद्ध वक्तव्य देना अखिल भारतीय सेवा आचरण नियमावली 1968 के नियम 3(1) और 7(1) के प्रावधानों का भी उल्लंघन है. सोशल मीडिया पर पोस्ट को लेकर पहले केंद्र और बाद में राज्य सरकार आदेश जारी कर चुकी है.सभी सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को सरकार और व्यवस्था के विरुद्ध टिप्पणी करने के मामले में सचेत किया जा चुका है.
अफसरों के सोशल मीडिया पोस्ट पर सरकार की पहली कार्यवाही
झारखंड में किसी सरकारी अफसर या कर्मचारी द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट के बाद की जा रही कार्यवाही का यह पहला मामला है.वंदना डाडेल ने इसके पहले भी अपने फेसबुक पोस्ट पर खुद के आदिवासी होने को ट्रांसफर-पोस्टिंग से जोड़ते हुए पोस्ट किया था. आइएएस अधिकारी अमित कुमार और अबु इमरान की पत्नियां भी अपने पतियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर फेसबुक पर पीड़ा जाहिर कर चुकी हैं. हालांकि, अब तक किसी मामले में राज्य सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी थी.
क्या है मामला : वंदना डाडेल ने 20 अक्तूबर को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया था. उन्होंने लिखा था : जब सरकारी कार्यक्रमों में भी आदिवासियों के धर्म और धर्म परिवर्तन पर टिप्पणी होने लगे, तो मन में सवाल उठना वाजिब है. क्या इस राज्य में आदिवासियों के पास स्वेच्छा से, सम्मान से अपना धर्म चुनने का अधिकार भी अब नहीं रह गया है? आखिर क्यों अचानक आदिवासियों के धर्म पर औरों को चिंता होने लगी है., जबकि अशिक्षा, बेरोजगारी, कुपोषण जैसी कितनी ही गंभीर समस्याओं से समाज जूझ रहा है.

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