रांची : झारखंड और हिंदी की प्रख्यात कथा लेखिका रोज केरकेट्टा के नये कहानी संग्रह ‘बिरुवार गमछा तथा अन्य कहानियां’ का लोकार्पण सूचना भवन सभागार में किया गया. इस अवसर पर उपन्यासकार फादर पीटर पॉल एक्का ने कहा कि डाॅ रोज केरकेट्टा ने आदिवासी समाज, उसकी संस्कृति, धरोहर व संघर्षों को गहराई से महसूस किया है़
शोधार्थी ऐसे आदिवासी लेखकों को भी शोध का विषय बनाये़ं कवयित्री-आलोचक डाॅ सावित्री बड़ाइक ने कहा कि डॉ रोज ने राष्ट्रीय फलक पर हमारी बुनकरी दिखायी है़ कथाकार-फिल्मकार शिशिर शिशिर टुडू ने कहा कि डॉ रोज एक सोशल एक्टिविस्ट भी है़ वंचित तबकों के अधिकारों पर मुखर रही है़ं
डॉ रोज केरकेट्टा ने कहा कि आदिवासियों के जीवन में दिन-प्रतिदिन आनेवाले अंतरद्वंद्व को रेखांकित करने का प्रयास किया है़ औद्योगिकीकरण के कारण आदिवासियों, कुम्हार, चीक- बड़ाइक जैसे लोगों की बहुत सारी चीजें समाप्त हो रही है़ं कार्यक्रम में मेघनाथ, महादेव टोप्पो, डॉ नारायण भगत, श्रावणी, अश्विनी कुमार पंकज, डॉ माया प्रसाद, ज्योति, जोआकिम तोपनो, मेरी सोरेंग, प्रवीर पीटर, डॉ सुनीता, वंदना टेटे व अन्य मौजूद थे़
11 कहानियां, मूल्य 250 रुपये
इस कहानी संकलन को प्रभात प्रकाशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है़ 143 पृष्ठ की इस पुस्तक की कीमत 250 रुपये रखी गयी है़ इसमें 11 कहानियां हैं, जिनमें प्रतिरोध, घाना लोहार का, फ्रॉक, फिक्स्ड डिपॉजिट, जिद, बड़ा आदमी, मां, से महुआ गिरे सगर राति, मैग्नोलिया पाइंट, रामोणी और बिरुवार गमछा शामिल है़