पीड़ा: पढ़ें या दो हजार के छुट्टे तलाशें?
दूसरे जिलों से आकर राजधानी रांची में अध्ययनरत छात्रों की स्थिति नोटबंदी के बाद से ही खराब है. छोटे नोटों की किल्लत की वजह से इन छात्रों की दैनिक जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं. किताबें और स्टेशनरी खरीदने के अलावा सबसे ज्यादा परेशानी परीक्षा शुल्क और ट्यूशन फीस देने में हो रही […]
दूसरे जिलों से आकर राजधानी रांची में अध्ययनरत छात्रों की स्थिति नोटबंदी के बाद से ही खराब है. छोटे नोटों की किल्लत की वजह से इन छात्रों की दैनिक जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं. किताबें और स्टेशनरी खरीदने के अलावा सबसे ज्यादा परेशानी परीक्षा शुल्क और ट्यूशन फीस देने में हो रही है. चूंकि एटीएम से 25 सौ रुपये तक की निकासी की सीमा तय है. इससे छात्रों का अधिकतर समय एटीएम से सौ-सौ के नोट निकालने में बीत रहा है. छात्र तो यहां तक कह रहे हैं कि जब पढ़ने बैठते हैं, तो सिलेबस की जगह जेहन में सौ के नोट घूमते हैं.
एक अनुमान के अनुसार राजधानी में 10 से 12 हजार बच्चे लॉज में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. लालपुर, सरकुलर रोड, नार्थ ऑफिस पाड़ा, करमटोली, हिनू, बिरसाचौक, एचइसी, मोरहाबादी, अपर बाजार, थड़पखना समेत अन्य इलाकों में ऐसे करीब एक हजार घर और लॉज हैं, जिनमें बच्चे किराये पर रहते हैं. चूंकि इन बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च अभिभावक ही वहन करते हैं, इसलिए हर महीने उन्हें एक सीमित राशि (5000 से 8000 रुपये के बची) ही मिलती है. इसमें लॉज का शुल्क और अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं. ये राशि बच्चों के खाते में ही ट्रांसफर होते हैं. फिलहाल बैंक से उस राशि को निकालने भी बच्चों को परेशानी हो रही है.
बैंकों में है छात्रों के सामान्य एकाउंट : बैंकों में भी छात्रों के लिए सामान्य एकाउंट ही है, जिसमें पांच सौ से एक हजार रुपये तक का बैलेंस रहना जरूरी है. निजी बैंकों में यह लिमिट 5000 रुपये की है. बैंकों ने वैसे छात्रों को रियायत दे रखी है, जो किसी न किसी संस्थान से शिक्षा ले रहे हैं. इन्हें आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रास सेटलमेंट) के माध्यम से पैसे भेजने, बैंक ड्राफ्ट बनाने में छूट दी जा रही है. अन्य बड़े बैंकों में जो सामान्य खाताधारकों के लिए शर्तें तय की गयी है, वही स्टूडेंट एकाउंट के लिए भी मान्य है. सप्ताह में 24 हजार रुपये तक की निकासी की सुविधा भी इन्हें मिल रही हैं.
दोस्त भी उधार नहीं दे रहे हैं : नोटबंदी में स्टूडेंट्स के हालात पूछे रहे हैं भइया…! हरी सब्जी खाये एक सप्ताह हो गया है. केवल आलू और सोयाबीन से दिन कट रहा है. वह भी दुकानदार की मेहरबानी से. कुछ दिन तो दोस्तों से पैसा मांग लेते थे. अब तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये हैं. बाजार में हरी सब्जी सस्ती है, लेकिन जेब में छुट्टे पैसा नहीं हैं. एटीएम जाते हैं दो हजार का नोट मिलता है. बाजार में तीन सौ रुपया का सामान भी लीजिए तो भी चेंज नहीं मिलता है. ये कहना है रामगढ़ से रांची आकर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वाले गुंजन कुमार का. गुंजन महज बानगी भर हैं. इनके साथ मिथुन, कुंवर, नितिन जैसे कई और विद्यार्थी हैं, जो नोटबंदी के बाद परेशानी झेल रहे हैं.
दो हजार की नोट बड़ी मुसीबत : बातचीत के क्रम में विद्यार्थी कहते हैं कि सरकार का यह कदम सही है. यह कदम वर्तमान परिस्थिति की जरूरत भी थी, लेकिन सरकार ऐसा करने से पहले गुप्त तैयारी भी करनी चाहिए थी. पहले कुछ दिनों तक तो इस इंतजार में रहे कि एटीएम से नोट मिलने लगेंगे. लेकिन अब नोट मिल भी रहे हैं, तो केवल दो हजार के. कहीं-कहीं सौ के नोट मिलते हैं. लेकिन वो भी बहुत कम एटीएम में. अब परेशानी का आलम यह हो गया है कि अकाउंट में पैसे हैं, लेकिन जितना एटीएम से निकलता है, उतना में काम पूरा नहीं होता. अब हमलोग पढ़ाई करें कि सौ-सौ के नोट की तलाश में एमटीएम की खाक छानें.
उधार मिलना हुआ बंद : यहां से एमसीए की पढ़ाई कर रहे रामगढ़ के नितिन कहते हैं कि जब तक हाथ में छुट्टे पैसे थे तब तक तो काम चल गया. बाद में दोस्तों को दो हजार से नोट दिखाकर तुरंत वापस करने का वादा कर छुट्टे पैसे ले लेते थे. अब वे भी मना कर रहे हैं. अब तक केवल सुने हैं कि पांच सौ का नोट भी है, लेकिन नोट है कैसा यह पता भी नहीं चलता. पहले से छुट्टा लेकर दूसरे बकायेदार को देते हैं, दूसरे से लेकर तीसरे को देते हैं. पर ऐसा कब तक चलेगा समझ नहीं आ रहा है? वहीं मिथुन का कहना है कि दुकानदार ने भी उधारी देने से मना कर दिया है. दो हजार के नोट देते हैं, तो उनका कहना होता है कि मेरे पास भी चेंज होगा तभी तो देंगे. अगर किसी एक को ही सभी चेंज दे देंगे तो बाकी को कैसे लाैटायेंगे? अगर ऐसा रहा तो बहुत अच्छा, बहुत लंबा नहीं चल पायेगा.
एटीएम की खाक छान रहे हैं : इसी ग्रुप के कुंवर गंझू, विनोद व निहाल कहते हैं कि अभी परीक्षाएं सिर पर हैं. हाल में जेपीएससी है, सचिवालय सहायक की मुख्य परीक्षा है, रेलवे की परीक्षा है. इन सब परीक्षाओं के लिए किताबें खरीदनी होती हैं. तीन सौ कि किताब आती है, जबकि जेब में होते हैं दो हजार के नोट. अब समझ लीजिए कि जरूरत की चीज भी खरीदना मुश्किल हो गया है. दिन भर किसी तरह काम चला लेते हैं और शाम होते ही एटीएम-एटीएम सौ का नोट खोजने जाते हैं. पढ़ने बैठते हैं, तो सिलेबस की जगह जेहन में सौ का नोट घूमता है.