नोटबंदी पर केंद्र सरकार की नीयत ठीक, प्रबंधन लचर

मनोज सिंह रांची : देश के जाने-माने चिंतक-विचारक केएन गोविंदाचार्य का मानना है कि भ्रष्टाचार और काला धन रोकने के लिए केवल नोटबंदी सक्षम माध्यम नहीं है. और भी कई तरीके हैं, जिससे सरकार भ्रष्टाचार रोक सकती है. इसके लिए राजनैतिक व्यवस्था में भी बदलाव होना चाहिए. चुनाव आयोग को सक्षम और मजूबत करना होगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 19, 2016 6:25 AM
मनोज सिंह
रांची : देश के जाने-माने चिंतक-विचारक केएन गोविंदाचार्य का मानना है कि भ्रष्टाचार और काला धन रोकने के लिए केवल नोटबंदी सक्षम माध्यम नहीं है. और भी कई तरीके हैं, जिससे सरकार भ्रष्टाचार रोक सकती है. इसके लिए राजनैतिक व्यवस्था में भी बदलाव होना चाहिए. चुनाव आयोग को सक्षम और मजूबत करना होगा. श्री गोविंदाचार्य एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने राजधानी आये थे. प्रभात खबर ने नोटबंदी, काला धन और भ्रष्टाचार पर उनकी राय जानी. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश :
अापकी नजर में नोटबंदी का क्या मतलब है?
करीब डेढ़ माह पहले भारत सरकार नोटबंदी लेकर आयी. इसके चार उद्देश्य बताये गये. पहला उद्देश्य जाली धन और आतंकवाद रोकना था. दूसरा काला धन, तीसरा काली संपत्ति (ब्लैक वेल्थ)और चौथा कैशलेस इकोनोमी को बढ़ावा देना था. नोटबंदी का वास्ता काली संपत्ति से नहीं है. काला धन और आतंकवाद वाले मुद्दे में इसकी कुछ उपयोगिता है. शेष विषयों पर सरकार की कार्य नीति अलग होनी चाहिए थी. कैशलेस इकोनोमी के लिए नोटबंदी जरूरी नहीं है. इसके स्थान पर इससे संबंधित आधारभूत संरचना विकसित करनी चाहिए. कानूनी प्रावधानों को मजबूत करना चाहिए. प्रशासनिक ढांचा मजबूत करना चाहिए. जहां तक काली संपत्ति का सवाल है, तो यह कैश इकोनोमी में छोटे हिस्से में है. यह दूसरे स्रोतों से बड़ी मात्रा में उपलब्ध है. इसमें जमीन-जायदाद, विदेशी निवेश आदि शामिल हैं.
तो फिर इसका फायदा क्या हुआ?
बहुत नहीं. हैसियत मंद लोगों ने काले धन को बैंक के अन्य स्रोतों से बचने का रास्ता निकाल लिया. काले धन को सफेद कर लिया. सामान्य जन को अनावश्यक तकलीफ झेलनी पड़ी. इसकी जगह सरकार को एक हजार के नोट बंद कर देने चाहिए. 500 नोटों का व्यवहार जारी रखना चाहिए. क्योंकि 10 साल पहले जो 100 रुपये का था, वह आज 500 रुपये के बराबर का है. सरकार को दो हजार रुपये के नोट बेढंगे तरीके से नहीं लाने चाहिए थे.
क्या सरकार की नीयत स्पष्ट नहीं थी?
नोटबंदी सरकार ने ठीक नीयत से ली थी. लेकिन, इसके पीछे सरकार का प्रबंधन लचर रहा. इसे और बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता था. इस कारण जन सामान्य को अनावश्यक रूप से तकलीफ झेलनी पड़ी. सरकार को भ्रष्टाचार पर केंद्रित करना है, तो लोकपाल व्यवस्था को ढांचागत रूप से सक्षम बनाना चाहिए.
क्या सरकार के इस कदम से आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा?
भ्रष्टाचार को बड़े पैमाने पर रोकने के लिए राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे में लाना होगा. राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाना होगा. चुनाव आयोग को अधिक से अधिक संपन्न बनाना चाहिए. राजनीतिक दलों को आइटी की छूट नहीं मिलनी चाहिए. राजनैतिक दलों को इस तरह निरंकुश रखना लोकतंत्र को कमजोर बनायेगा. अनैतिक लेन-देन राजनीतिक दलों का माध्यम बना गया है. इससे आर्थिक भ्रष्टाचार का खतरा बना रहेगा.
इससे बचने के क्या उपाय हैं?
इससे बचने के लिए चुनावों में धन-बल का उपयोग रोकना होगा. कानून को सख्त बनाना होगा. चुनाव आयोग को राजनैतिक दलों पर कार्रवाई का अधिकार देना होगा. मेरा तो मानना है कि राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न को ही समाप्त कर देना चाहिए. इवीएम में प्रत्याशियों के फोटो रहने चाहिए. इससे मतदाताओं के सामने प्रत्याशी की पहचान की संकट नहीं होगी. राजनैतिक दलों के गैर जवाबदेह आचरण के कारण संसदीय व्यवस्था को भी नुकसान हो रहा है.

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