मातृत्व हक कानूनी अधिकार है, न कि नये साल का तोहफा

रांची : नये साल की पूर्व संध्या पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने गर्भवती महिलाओं को मातृत्व हक देने के लिए एक देशव्यापी योजना की अस्पष्ट घोषणा की, पर उन्होंने इसको लागू करने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. इसकी समय सीमा, आवंटित बजट या सार्वभौमिक करने की रणनीति के बारे में भी नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2017 1:21 AM
रांची : नये साल की पूर्व संध्या पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने गर्भवती महिलाओं को मातृत्व हक देने के लिए एक देशव्यापी योजना की अस्पष्ट घोषणा की, पर उन्होंने इसको लागू करने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. इसकी समय सीमा, आवंटित बजट या सार्वभौमिक करने की रणनीति के बारे में भी नहीं कुछ कहा, जैसा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 2013 से करना है.

कानून की धारा 4बी पहले से ही सभी गर्भवती और धातृ महिलाओं को प्रत्येक बच्चे के लिए कम से कम 6000 रुपये के मातृत्व हक का वादा करती है, लेकिन तीन साल से केंद्र सरकार ने इस कानूनी दायित्व का सम्मान नहीं किया. अब इस कानूनी अधिकार को नये साल के तोहफे के रूप में प्रस्तुत कर जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है. उक्त बातें रोजी-रोटी अधिकार अभियान की संचालन समिति के सदस्य कविता श्रीवास्तव, दीपा सिन्हा, एनी राजा, कॉलिन गोंसेल्व्स, अरुणा रॉय, निखिल डे, जकिया सोनम आदि ने संयुक्त बयान जारी कर कही.

सदस्यों ने कहा कि यह संकेत मिल रहा है कि वित्त मंत्रालय मातृत्व हक के बजट में मात्र 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी करेगा, जबकि इस योजना के सार्वभौमीकरण के लिए सात गुना वृद्धि आवश्यक है. और तो और यह हक केवल उन महिलाओं को ही मिलेगा, जो गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) हैं. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का पूरी तरह से उल्लंघन होगा. सदस्यों ने आरोप लगाया है कि पिछले तीन वर्षों से देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं द्वारा बार-बार मांग के बाद भी सरकार ने इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना को देश के केवल 53 जिलों में पायलट के तौर पर जारी रखा है.

सदस्यों के अनुसार, सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का पालन करने के लिए इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना के तहत मिलनेवाले मातृत्व हक की राशि को 4000 रुपये से बढ़ा कर 6000 रुपये कर दिया, परंतु न तो इस योजना का कवरेज बढ़ाया गया और न ही इसके लिए आवंटित राशि. अभी भी यह राशि सालाना 400 करोड़ रुपये ही है, जबकि सभी पात्र महिलाओं को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के अनुसार मातृत्व हक मिलने के लिए सालाना 16000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की घोषणा की असली परीक्षा अगले महीने पेश होने वाले बजट में मातृत्व हक के लिए किये गये आवंटन में होगी.

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