चार महीने बाद भी बहाल नहीं हुआ खाद्य विश्लेषक

रांची: झारखंड में चार माह से खाद्यान्नों की जांच नहीं हो रही है. राज्य के इकलौते खाद्य विश्लेषक के 10 सितंबर को रिटायर होने के बाद से अभी तक दूसरे विश्लेषक को बहाल नहीं किया जा सका है. इस कारण राज्य में खाद्य पदार्थों की शुद्धता उपभोक्ताओं के भाग्य भरोसे है. जानकारी के अनुसार यहां […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2017 12:59 AM
रांची: झारखंड में चार माह से खाद्यान्नों की जांच नहीं हो रही है. राज्य के इकलौते खाद्य विश्लेषक के 10 सितंबर को रिटायर होने के बाद से अभी तक दूसरे विश्लेषक को बहाल नहीं किया जा सका है. इस कारण राज्य में खाद्य पदार्थों की शुद्धता उपभोक्ताओं के भाग्य भरोसे है. जानकारी के अनुसार यहां पहले खाद्य विश्लेषक थे डॉ जेके सिंह. अवकाश प्राप्ति की उम्र 65 वर्ष होने के बाद भी नयी बहाली की व्यवस्था नहीं कर श्री सिंह को ही दो साल का सेवा विस्तार दे दिया गया. पर इस दौरान भी नयी बहाली की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी.

09 सितंबर 2016 को सेवा विस्तार की अवधि समाप्त हो जाने के बाद से यहां काम बंद हो गया है. इस दौरान नये खाद्य विश्लेषक के लिए अक्तूबर 2016 में ही साक्षात्कार हुआ. एक उम्मीदवार उत्तर प्रदेश के डॉ मीणा का चुनाव भी विभागीय कमेटी ने कर लिया, साक्षात्कार भी हो गया, पर फाइल आज तक वित्त और मुख्यमंत्री कार्यालय से फाइनल नहीं हो सकी है. इस कारण राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला में कोई काम नहीं हो रहा. जांच नहीं होने के कारण कहीं से कोई सैंपल भी नहीं आ रहा, क्योंकि रखे-रखे सैंपल के खराब होने का डर बना रहता है. जानकारों का कहना है कि दशहरा-दिवाली जैसे पर्व बीत गये, कोई जांच नहीं हुई.

अलग विंग बना, पर व्यवस्था नहीं हुई : खाद्य पदार्थों में मिलावट पर रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग ने खाद्य प्रशासन के बदले खाद्य सुरक्षा आयुक्त कार्यालय का गठन किया. इसके लिए खाद्य सुरक्षा आयुक्त व संयुक्त सुरक्षा आयुक्त सहित 80 पद सृजित किये गये. इनके अलावा जांच प्रयोगशाला के लिए छह पद थे. पर आज भी नौ लोगों के भरोसे खाद्य सुरक्षा आयुक्त का कार्यालय और पांच लोगों के भरोसे प्रयोगशाला का काम चल रहा है. राज्य में मात्र दो खाद्य सुरक्षा अधिकारी हैं, इनमें से जमशेदपुर में गुलाब लकड़ा और हजारीबाग में संजय कुमार पदस्थापित हैं़ अन्य 22 जिलों का प्रभार अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (एसीएमओ) को है. विभाग के पास अपनी गाड़ी भी नहीं है. एक गाड़ी उपलब्ध करायी भी गयी थी, तो जर्जर होने के कारण उसका उपयोग नहीं हो पाया. कहीं जाना हो, तो कर्मी अपनी गाड़ी का उपयोग करते हैं.
क्या हो रही दिक्कत : प्रयोगशाला के काम नहीं करने के कारण जांच के लिए कहीं से कोई सैंपल नहीं आ पा रहा. इस कारण कोई मिलावट कर भी रहा है, तो उसकी गड़बड़ी पकड़ी नहीं जा पा रही. दशहरा व दिवाली के साथ-साथ कई मेले भी इस बीच में बीत गये, पर कहीं कोई कड़ाई नहीं हो पायी. सूत्रों के अनुसार कहीं-कहीं जांच तो की जाती है, पर प्रयोगशाला के काम नहीं करने के कारण वो सिर्फ फिजिकल एक्सरसाइज हो कर रह जाता है. कोई सैंपल नहीं लिया जाता क्योंकि उसकी जांच नहीं हो रही और खाद्यान्न का सैंपल ज्यादा दिन रखने से खराब होने का डर रहता है. गाड़ी नहीं होने के कारण विभागीय पदाधिकारी भी कहीं जा नहीं पाते. कम कर्मचारी होने का असर विभाग के काम पर पूरी तरह दिख रहा है.
यह भी था रास्ता : नये खाद्य विश्लेषक के नाम पर जब तक मुहर नहीं लग जाती, तब तक दूसरे राज्य के खाद्य जांच प्रयोगशाला से जांच करायी जा सकती थी, पर इसके लिए एक निश्चित फीस देनी होती है. इस फीस की व्यवस्था होनी चाहिए थी.

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