खरीदता है 450 करोड़ की बिजली, वसूली सिर्फ 225 करोड़
उदय योजना में शामिल होने के बावजूद बिजली वितरण निगम को 265 करोड़ का घाटा योजना के तहत डीवीसी को मिले थे 4770 करोड़ रुपये, फिर हो गया 1500 करोड़ रुपये का बकाया सुनील चौधरी रांची : केंद्र सरकार द्वारा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए आरंभ की गयी उदय योजना का लाभ […]
उदय योजना में शामिल होने के बावजूद बिजली वितरण निगम को 265 करोड़ का घाटा
योजना के तहत डीवीसी को मिले थे 4770 करोड़ रुपये, फिर हो गया 1500 करोड़ रुपये का बकाया
सुनील चौधरी
रांची : केंद्र सरकार द्वारा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए आरंभ की गयी उदय योजना का लाभ लेने के बावजूद झारखंड बिजली वितरण निगम भारी घाटे में आ गया है. झारखंड देश का पहला राज्य था, जिसने उदय योजना के लिए करार किया था. इस योजना में सितंबर 2015 में झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड शामिल हुआ.
योजना के तहत जनवरी 2016 में 5553 करोड़ केंद्र सरकार से लोन लेकर डीवीसी का 4770 करोड़ और कोल इंडिया का 783 करोड़ रुपये बकाये का भुगतान किया था. तब डीवीसी के सारे बकाये का भुगतान कर दिया गया था. अब योजना के एक साल बाद ही दोबारा बकाया बढ़ गया है. ताजा जानकारी के अनुसार डीवीसी बकाया 1500 करोड़ रुपये का हो गया है. कोल इंडिया का बकाया भी 83 करोड़ रुपये का हो गया है. जबकि, योजना के समय कहा गया था कि यह योजना वितरण कंपनियों को बकाये के ब्याज से मुक्त करते हुए लाभ में लाने के लिए आरंभ किया गया है.
बिजली कंपनियों को ऋणमुक्त करने की थी योजना : केंद्र सरकार ने बिजली कंपनियों के ऋण मुक्ति योजना के तहत उदय योजना केंद्र सरकार ने आरंभ की. इसमें बिजली कंपनियों के भारी बकाये पर दिये जा रहे ब्याज से मुक्त कराने के लिए केंद्र सरकार ने पैकेज दिया था. ताकि बिजली कंपनियां पहले अपने बकाये का भुगतान कर दे फिर केंद्र सरकार से मिले कर्ज की राशि को कम सूद दर पर भुगतान करे. कहा गया था कि झारखंड को 1380 करोड़ रुपये का फायदा होगा.
परफार्मेंस सुधारने की दी गयी थी सलाह
जब झारखंड ने उदय योजना के लिए एमओयू साइन किया तभी परफार्मेंस सुधारने की सलाह भी केंद्र सरकार की तरफ से दी गयी थी. कहा गया था कि झारखंड बिजली वितरण कंपनी अभी औसतन 12-14 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण प्राप्त कर रहा है. उसे राज्य सरकार द्वारा आठ प्रतिशत ऋण दर पर ऋण लेने से डेब्ट सर्विसिंग में तत्काल 4-6 प्रतिशत का फायदा होगा. घाटा को कम करने के लिए वितरण कंपनी को निर्धारित समय सीमा में अपनी क्षमता में सुधार करना होगा. ताकि दोबारा हानि न हो सके. निगम को 2019 तक एटीएंडसी लॉस को 15 फीसदी तक लाना होगा. अभी एटीएंडसी लॉस 40 प्रतिशत के करीब है. वहीं बिजली आपूर्ति एवं बिल की वसूली के बीच गैप को 2018-19 तक एक समान करना है. पर इसके ठीक उलट अब घाटा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है.
राज्य सरकार रिसोर्स गैप देकर करती है इस घाटे की भरपाई
ग्रामीण इलाकों में कम दर पर बिजली उपलब्ध कराने के एवज में राज्य सरकार रिसोर्स गैप देती है. राज्य सरकार प्रत्येक माह औसतन 200 करोड़ के करीब रिसोर्स गैप देती है जिससे घाटे की भरपाई होती है.
हर माह 265 करोड़ से अधिक का घाटा
झारखंड बिजली वितरण निगम कंपनी को हर माह 250 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हो रहा है. उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाने के लिए अभी 2100 मेगावाट बिजली की जरूरत पड़ती है.
जिसमें 700 मेगावाट बिजली डीवीसी से ही 4.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से ली जाती है. शेष बिजली टीवीएनएल, एनटीपीसी, सेंट्रल पुल, आधुनिक और इनलैंड पावर से ली जाती है. वितरण निगम द्वारा अभी हर माह 450 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी जाती है. इसके एवज में राजस्व वसूली केवल 225 से 230 करोड़ की ही होती है. जबकि वेतन और स्थापना मद में भी 40 करोड़ रुपये प्रति माह खर्च होते हैं. यानी बिजली वितरण निगम को हर माह 265 करोड़ का घाटा हो रहा है. यानी हर दिन 8.83 करोड़ का घाटा हो रहा है.