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जिसकी एक आवाज पर बंद होता था झारखंड, वह बेच रहा आलू -प्याज

विनोद भगत, झारखंड आंदोलनकारियों में बड़ा नाम़ आजसू के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष. अपने जमाने के धाकड़ नेता. आंदोलन के जमाने में इनकी तूती बोलती थी़ इनके एक आह्वान पर झारखंड बंद होता था़ आज राजधानी के मोरहाबादी में आलू-प्याज बेच रहे है़ं झारखंड अलग राज्य की लड़ाई और फिर राजनीति में चलते-चलते थक गये विनोद […]

विनोद भगत, झारखंड आंदोलनकारियों में बड़ा नाम़ आजसू के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष. अपने जमाने के धाकड़ नेता. आंदोलन के जमाने में इनकी तूती बोलती थी़ इनके एक आह्वान पर झारखंड बंद होता था़ आज राजधानी के मोरहाबादी में आलू-प्याज बेच रहे है़ं झारखंड अलग राज्य की लड़ाई और फिर राजनीति में चलते-चलते थक गये विनोद ने यह काम शुरू किया. विनोद चाहते, तो आज की राजनीति के दौर में कुछ नहीं, तो राजनीतिक बिचौलिये का काम कर मौज की जिंदगी जीते़ खाने-कमाने का जुगाड़ लगा लेते, लेकिन उन्होंने स्वाभिमान को गिरवी नहीं रखा और मामूली सा व्यवसाय कर लिया़ विनाेद, राज्य गठन से पहले झारखंड स्वशासी परिषद (जैक) के सदस्य भी रहे आैर कई महत्वपूर्ण विभाग इनके पास थे. वह लोहरदगा से िवधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं.
रांची : मोरहाबादी में आंदोलनकारी विनोद भगत की दुकान सुबह-सुबह सज जाती है़ आलू, प्याज, अदरक और लहसुन की दुकान. एक कप चाय के साथ दुकानदारी शुरू होती है़ शनिवार को प्रभात खबर विनोद की दुकान पर पहुंचा़ आंदोलन की बात हुई, तो वह अपने पुराने लय में आ गये़ यह पूछने पर कि आलू-प्याज की दुकान क्यों लगा ली…विनोद कहते हैं : हालात ही ऐसे हो गये है़ं अब के दौर में राजनीति करना संभव नहीं है़.
जमीन से जुड़ा हू़ं किसान परिवार से हूं, इसलिए किसानों का काम कर रहा हू़ं अपना काम करने में कोई शर्म नहीं है़ आज जमीन खत्म हो रही है़ किसान लाचार है़ं बुंडू, राहे, तमाड़, मांडर सब जगह टमाटर फेंका जा रहा है़ दो कोल्ड स्टोरेज बना कर सरकार अपनी उपलब्धि गिना रही है़.
किसान की चिंता किसी को नहीं है़ हमारे झारखंडी प्रोसेसिंग प्लांट क्यों नहीं लगा सकते़ सरकार बाहर से आदमी खोजती है़ यह बताने पर कि सरकार आंदोलनकारियों को चिह्नित कर रही है, आयोग बनाया है़ …विनोद कहते हैं : मैं आंदोलनकारी हूं, यह बताने के लिए क्या आयोग के पास जाना होगा? सुना है देवशरण भगत भी आयोग का सदस्य बन गया है़ कभी मुलाकात करने नहीं आया़ आयोग आंदोलनकारी से पता-ठिकाना पूछ रही है़ आंदोलनकारी पुलिस के डर से अपना ठिकाना बदलते रहते थे़ कहां-कहां का पता बतायेंगे़ विनोद भगत कहते हैं कि सरकार की नीति समझ में नहीं आती़ आदिवासी-मूलवासी विधायक, सांसद बन जाते है़ं सदन में पार्टी के डर से बोलते नहीं है़ं ऐसे लोगों को जनप्रतिनिधि बनने का कोई हक नहीं है़ उनको सोचना चाहिए कि उनके माता-पिता ने किस हाल में जिंदगी गुजार दी़ अब ये चकाचक गाड़ी में घूम रहे है़ं किसान के घर में केवल नमक खरीद कर आता था़. सब अपने खेत में होता था़ आज क्या हालात है़ इस सब्जी बाजार में सुबह से शाम तक आदिवासी-मूलवासी मां-बहन सब्जी बेचती है़ं दिन भर में तीन सौ नहीं कमा पाती़ इनके बारे में कौन सोच रहा है़ महिला को अधिकार देने की बात करते है़ं बड़ी-बड़ी बात होती है़ पेटीएम से लेन-देन की बात करते है़ कैशलेस का पाठ पढ़ाया जा रहा है़ घर में खाने के लिए नहीं है़ गांव में लोग पूछते हैं : ई पेटीएम कइसन दिखवउला़ गाछ जइसन कि हाथी, बंदर जइसन, इस हालात में क्या होगा़ लोगों की आवश्यकता समझने की जरूरत है़.
बाबूलाल-बंधु पहुंचे मिलने, की बात : शनिवार को झाविमो नेता बाबूलाल मरांडी और बंधु तिर्की मोरहाबादी में विनोद भगत के आलू-प्याज की दुकान में पहुंचे़ नेताओं ने विनोद भगत का हाल-चाल लिया़ उनकी राजनीतिक सक्रियता खत्म होने की वजह पूछी़ झाविमो नेता काफी देर तक उनकी दुकान में बैठे़ इस दौरान विनोद अपनी दुकानदारी भी करते रहे़.
प्लास्टिक से घेर कर बनाया ठिकाना
विनोद भगत अपने एक आंदोलनकारी साथी अजीत के साथ दुकान चलाते है़ं विनोद बताते हैं कि आंदोलन के दिनों बम-बारूद खूब चलता था़ अजीत माहिर था़ दुकान के पीछे प्लास्टिक से घेर कर रहने-खाने का ठिकाना बनाया है़ यहां सोने के लिए बिछावन और खाना बनाने की सामग्री रखी है़ हालांकि विनोद बताते हैं कि बगल की ही बस्ती में उनका एस्बेस्टस का मकान है़.

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