औषधीय गुणों के साथ एथनिक फूड सहजता से होते हैं उपलब्ध
कांके रोड में आदिवासी फूड एंड कुजिन का उदघाटन रांची : परंपरागत आदिवासी/एथनिक फूड औषधीय गुणों से भरपूर है. यह सहज उपलब्ध है अौर इनमें पोषक तत्वों की भी भरमार है. इन्हें बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है. उक्त विचार रविवार को इंडीजिनस इनीशियेटिव संस्था के तत्वावधान में आदिवासी/एथनिक फूड पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में […]
कांके रोड में आदिवासी फूड एंड कुजिन का उदघाटन
रांची : परंपरागत आदिवासी/एथनिक फूड औषधीय गुणों से भरपूर है. यह सहज उपलब्ध है अौर इनमें पोषक तत्वों की भी भरमार है. इन्हें बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है. उक्त विचार रविवार को इंडीजिनस इनीशियेटिव संस्था के तत्वावधान में आदिवासी/एथनिक फूड पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में उभरे.
मौके पर कांके रोड में इंडीजिनस इनीशियेटिव के द सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ आदिवासी फूड एंड कुजिन का उदघाटन भी हुआ. कार्यक्रम में ट्राइबल एडवायजरी काउंसिल के सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि आदिवासी समाज के परंपरागत खाद्य पदार्थ आज हमारी युवा पीढ़ी के लिए भी अजूबा हो गये हैं. हमारे पूर्वज चाकौड़ साग, गोड़ा धान खाकर अस्सी-नब्बे वर्ष तक जीते थे. यह भोजन सबसे बढ़िया ऑर्गेनिक फूड है. उन्होंने कहा कि ट्राइबल एडवायजरी काउंसिल की अगली बैठक में आदिवासी भोजन परोसा जायेगा अौर इन्हें प्रमोट भी किया जायेगा.
इंडीजिनस इनीशियेटिव के फाउंडर प्रभाकर तिर्की ने कहा कि आज दुनिया के विकसित देश भी वापस पुराने ट्रेडिशन की अोर लौट रहे हैं. परंपरागत आदिवासी भोजन को कई स्थानों पर एथनिक फूड के नाम से प्रमोट किया जा रहा है. इस तरह के भोजन में पोषक तत्वों की कमी नहीं है अौर ये सहज उपलब्ध हैं.
जो मड़ुआ का आटा यहां दस रुपये में बिकता है, दिल्ली जैसे शहरों में वह सौ रुपये में बिक रहा है. इसी तरह चाकौड़ साग, बेंग साग आदि में अौषधीय गुण मौजूद हैं. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आरपी सिंह रतन ने आदिवासी भोजन के अौषधीय गुणों के बारे में हो रहे शोध अध्ययन की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि झारखंड में डेढ़ सौ प्रकार के साग मिलते हैं. गोड़ा धान अौर मड़ुआ ज्यादा देर तक शरीर में रहता है. यह शारीरिक श्रम करने वालों के लिए अच्छा है. यहां आदिवासी समुदाय मछली प्रिजर्वेशन के 25 से अधिक तरीके जानते हैं. सनई के फूल में कैंसर रोधी तत्व पाये जाते हैं.
सेंटर की संचालिका अरुणा तिर्की ने कहा कि हम अपने झारखंडी भोजन को पुन: समाज के बीच लोकप्रिय बनाना चाहते हैं. आज की नयी पीढ़ी इस भोजन को खाना नहीं चाहती है. इस सेंटर के जरिये हम झारखंडी भोजन को प्रमोट कर सकेंगे. नेशनल हेल्थ मिशन की प्रोग्राम को-आॅर्डिनेटर अकई मिंज ने कहा कि मकई, गंगई खाकर गांव के लोग अपना जीवन यापन करते आये हैं. कोरवा आदिम जनजाति के लोग गेठी कांदा खाते हैं, इससे पेट दर्द दूर होता है. इसी तरह से गोंदली की खीर भी सेहत के लिए काफी अच्छा है.
पैक्स के स्टेट मैनेजर जोनसन टोपनो ने कहा कि कुछ दशक पहले तक आदिवासी समुदाय में अपनी भाषा, खान-पान के बारे में दूसरों को बताने में हिचक होती थी. पर अब हमें पता है कि पूरी दुनिया में अॉर्गेनिक फूड को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है. हमारा परंपरागत भोजन ज्यादा ऑर्गेनिक है अौर सेफ भी. कार्यक्रम का संचालन सीडब्ल्यूसी की सुरभि शर्मा ने किया. मौके पर बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे.